Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Ankur_Singh, story

कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan

कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan प्रेम बाबू का बड़ा बेटा हरिनाथ शहर में अफसर के पद पर …


कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan

कहानी –कलयुगी विभीषण | story - kalyugi vibhishan

प्रेम बाबू का बड़ा बेटा हरिनाथ शहर में अफसर के पद पर तो छोटा बेटा रामनाथ सामाजिक कार्यों से अपने कुल परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे थे। पुरानी जमींदारी के नाते क्षेत्र में उनके परिवार का रुतबा भी खूब था। प्रेम बाबू के अकूत संपत्ति और उनके परिवार की एकता से उनके विरोधी खूब ईर्ष्या करते और अक्सर उनके परिवार में फूट डालने की योजना बनाते और हर बार नाकामयाब भी रहते।
प्रेम बाबू के स्वर्गवास के बाद आये दिन उनके दोनों बेटों में छोटी-छोटी बातों पर कहासुनी और मनमुटाव सा होने लगा, जिसकी भनक प्रेम बाबू के विरोधियों को लगी। उनके विरोधी इस मनमुटाव को उचित अवसर में तब्दील करने के लिए दोनों भाइयों के बीच फूट डालने की योजना में लग गए। चूँकि, हरिनाथ नौकरी के कारण ज्यादातर शहर में रहते थे और गाँव के माहौल से उतनी अच्छी तरह से वाफिक नहीं थे। हरिनाथ के इसी कमजोरी का फायदा उठा प्रेम बाबू के विरोधी उन्हें रामनाथ के खिलाफ भड़काने लगे और हर छोटी-मोटी बातों पर कोर्ट कचहरी जाने के लिए उकसाने लगे। हरिनाथ को भी उनकी बातें प्रिय लगने लगी और वह हर मामले में रामनाथ को कोर्ट कचहरी में घसीटने लगा। हरिनाथ के इस कृत्य पर उसके परिवार और रिश्तेदारों ने खूब समझाया पर हरिनाथ ने उनकी बातें दरकिनार करते हुए अपना ये कृत्य बरकरार रखा।
एक पुरानी कहावत है कि, “जिस घर के सदस्यों को अपनो से ज्यादा बाहरी प्रिय लगने लगे, समझ लेना उस घर की बर्बादी निश्चित हैं।” यहाँ भी ये कहावत चरितार्थ हुई। पहले जो लोग हरीनाथ को रामनाथ के खिलाफ भड़काते थे अब वही लोग धीरे-धीरे प्रेम बाबू की संपत्ति को हड़पने लगे। रामनाथ जब विरोध करता तो उसके विपक्षी कहते- “यह हमारे दोस्त हरिनाथ की भी संपत्ति हैं, अकेले तुम्हारी नहीं है।”
हरिनाथ भी लोगों के ख़ास बनने के चक्कर में चुप्पी साधे अपनी पैतृक संपत्ति गवाता रहा और प्रेमबाबू के विरोधी उनके बेटों के इस झगड़ों का लाभ उठाकर उनकी संपत्तियों पर कब्जा करते रहे। उधर प्रेमबाबू के दोनों बेटे सुकून और सम्मान की जिंदगी छोड़, आए दिन कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने लगे।
एक दिन सब कुछ गंवा देने के बाद हरिनाथ को भी ठगे जाने का अहसास हुआ और उसने एक रिश्तेदार से कहा- “मुझे आज महसूस हो रहा है कि विरोधियों के बहकावे में आकर मैंने बाबू जी (प्रेमबाबू) के सम्मान और संपत्ति को मिट्टी में मिला दिया। “
“हरि (हरिनाथ), हम तो शुरू में ही कृष्ण बनके संधि का पैगाम लाये थे जिससे तुम दोनों भाइयों में महाभारत जैसी कोई अप्रिय घटना ना हो। परन्तु, उस समय तुमने कलयुगी विभीषण बनके राम (रामनाथ) का साथ नहीं बल्कि रावण (प्रेम बाबू के विरोधियों) का साथ चुना।”- हरिनाथ के रिश्तेदार ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
हरिनाथ ने भी अपने किये पर पछतावा हुआ और उसने अगली सुबह गीले-शिकवे भुलाकर अपने भाई रामनाथ को गले लगाने का निश्चय किया।

About author 

Ankur Singh
अंकुर सिंह
हरदासीपुर, चंदवक
जौनपुर, उ. प्र.

Related Posts

LaghuKatha – peepal ki pukar | पीपल की पुकार

December 30, 2023

लघुकथा  पीपल की पुकार ‘दादी मां दादी मां, आपके लिए गांव से चिट्ठी आई है’, 10 साल के पोते राहुल

Story – mitrata | मित्रता

December 28, 2023

मित्रता  बारिशें रूक गई थी, नदियाँ फिर से सीमाबद्ध हो चली थी, कीचड़ भरे मार्गों का जल फिर से सूरज

Story – prayatnsheel | प्रयत्नशील

December 28, 2023

प्रयत्नशील भोजन के पश्चात विश्वामित्र ने कहा, ” सीता तुम्हें क्या आशीर्वाद दूँ, जो मनुष्य अपनी सीमाओं को पहचानता है,

Story – praja Shakti| प्रजा शक्ति

December 28, 2023

प्रजा शक्ति  युद्ध का नौवाँ दिन समाप्त हो चुका था। समुद्र तट पर दूर तक मशालें ही मशालें दिखाई दे

Story- bhagya nirmata |भाग्य निर्माता

December 28, 2023

भाग्य निर्माता काली अँधेरी रात में राम जाग रहे थे, यह वर्षा ऋतु उन्हें शत्रु प्रतीत हो रही थी ।यह

Ram Sita aur laxman ka sapna| राम , सीता और लक्ष्मण का सपना

December 28, 2023

राम , सीता और लक्ष्मण का सपना  पूर्णाहुति के पश्चात ऋषि पत्नी मंच पर खड़ी हो गईं , “ आप

Leave a Comment