Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Aalekh, Bhawna_thaker

कब तक

 “कब तक” कब तक हम सालों-साल बाल गोपाल की मूर्ति को पालने में झूलाते रहेंगे?  क्या किसी को रुबरु होने …


 “कब तक”

कब तक हम सालों-साल बाल गोपाल की मूर्ति को पालने में झूलाते रहेंगे? 

क्या किसी को रुबरु होने का मन नहीं करता?

क्यूँ न जात-पात और धर्म को परे रखकर सिर्फ़ मानवता का मूल्य तय करें। क्यूँ न राग, द्वेष, ईर्ष्या, लोभ और मोह को अलविदा कहते अपनेपन का अलख जगाएं। गर ये चमत्कार हो जाए तो

सच में कृष्ण जन्म लेंगे, सतयुग का उद्भव होगा और सुद्रढ़ समाज का निर्माण होगा। कोई तो हिम्मत करो इस राह पर चलने की।

हम मौका ही नहीं देते कृष्ण को उनका संभवामि युगे युगे वाले वचन को पूरा करने का। सिर्फ़ पाखंड को पोषते मनमानी किए जा रहे है, और महज़ मूर्ति का लालन पालन किए जा रहे हैं। हम मंदिरों और मूर्तियों में ढूँढ रहे है जिनको, क्या पता वो हमें ढूँढ रहा हो सत्य, अहिंसा परमो धर्म की व्याख्याओं में कहीं। या अपनापन, भाईचारे और अखंडता की नींव में कहीं।

क्यूँ न आत्म-मंथन करें, कहाँ मिलेंगे कृष्ण को हम? झूठ, फरेब, लोभ, लालच, ईर्ष्या के मवाद तले लद चुके है हम, जहाँ से कुरेदकर खुद कृष्ण भी हमें नहीं ढूँढ पाएँगे। हमें खुद को कृष्ण के लायक बनाना होगा जो मुश्किल बहुत-बहुत मुश्किल है। 

कृष्ण तो कण-कण में है, पर हमारी द्रष्टि के आगे पर्दा पड़ा है “मैं” का, “माया” का और “अहंकार” का जब तक वो पर्दा हटेगा नहीं तब तक कृष्ण साक्षात हमारे सामने होंगे फिर भी पहचान नहीं पाएँगे हम। कलयुगी इंसान का पाखंड देख कृष्ण भी हंसता होगा। कृष्ण की जन्म भूमि और कर्म भूमि को हमने रक्त रंजीत कर दिया है, मानवता रहित कर दिया है, बाँट दिया है जात-पात और धर्म के कतरों में। कहाँ से जन्म लेंगे कृष्ण ऐसी नापाक मिट्टी में।

हम और कई जन्मों तक यूँहीं बाल गोपाल की मूर्ति को ही हर साल झूलाते रहेंगे, क्यूँकि हम जरूरत पड़ने पर कृष्ण से सिर्फ़ मांगते रहे है, दिया कुछ नहीं, हम भक्त नहीं भिखारी है। सौदा करते है कृष्ण से, भगवान मेरा ये काम कर दो मैं इतना चढ़ावा चढ़ाऊँगा। हम छलिये को ही छलने निकले है। कृष्ण को चढ़ावा नहीं हमसे नि:स्वार्थ भाव और भक्ति चाहिए, एक नकलंक आत्मा चाहिए, साफ़ मन और ऋजु दिल चाहिए, सुदामा सा दोस्त चाहिए, कृष्ण को हमारा भरोसा चाहिए।

पर शायद हमारी लकीरों में कृष्ण संगम लिखा ही नहीं, क्यूँकि गोप-गोपियाँ बनने के लिए बहुत कुछ त्यागना होता है। और तिनका भर भी छोड़ने की हमारी फ़ितरत ही नहीं, जिस दिन हर जीव के भीतर मोह की जगह त्याग अग्रसर होगा, उस दिन मूर्ति की जगह साक्षात्कार होगा।

About author

(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

Related Posts

राष्ट्रीय माल ढुलाई (लॉजिस्टिक) नीति का शुभारंभ

September 18, 2022

 राष्ट्रीय माल ढुलाई (लॉजिस्टिक) नीति का शुभारंभ  दुनियां में आत्मनिर्भर होते भारत की मेक इन इंडिया गूंज का आगाज़  पीएम

मेंढक बाहर निकल रहे है

September 17, 2022

“मेंढक बाहर निकल रहे है” जिस तरह छह महीने मिट्टी में दबे रहने वाले मेंढक बारिश के आते ही, बरसात

नवयुवाओं सस्ती नहीं ये जिंदगी

September 17, 2022

नवयुवाओं सस्ती नहीं ये जिंदगी रोज अखबार पढ़ने की मेरी आदत साथ ही रोज़ टेलीविजन पर केवल खबरों को देखना

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

September 17, 2022

“कोशिश करने वालों की हार नहीं होती” “नहीं झुकी ज़माने की जबर्दस्ती के आगेहवाओं के ख़िलाफ़ बहने वाली वामा हूँ,

चलो अब मुखर हो जाएँ

September 17, 2022

“चलो अब मुखर हो जाएँ” ये कैसे समाज में जी रहे है हम जब भी सोचते है हमारे आस-पास हो

राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर 2022 पर विशेष

September 13, 2022

राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर 2022 पर विशेष Pic credit -freepik.com आओ हिंदी भाषा को व्यापक संचार का माध्यम बनाएं

PreviousNext

Leave a Comment