Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, lekh

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सभी नागरिकों को बराबरी के हक़ का वैश्विक आगाज़ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला अमेरिका में नस्ल के आधार …


सभी नागरिकों को बराबरी के हक़ का वैश्विक आगाज़

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

अमेरिका में नस्ल के आधार पर शिक्षण क्षेत्र में एडमिशन पर रोक – फैसले के वैश्विक स्तरपर दूरगामी परिणामों की संभावना

सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ मिलना जायज़ है – हर व्यक्ति की काबिलियत स्किलिंग और एक्सपीरियंस को प्राथमिकता देना ज़रूरी – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर आदि अनादि काल से आम जनता पर नेतृत्व की श्रृंखला चली आ रही है हमने अपने बड़े बुजुर्गों से सुने और इतिहास में जरूर पढ़े होंगे कि हमारी पिछली अनेक पीढ़ियों पर राजा महाराजाओं ने नेतृत्व किया फिर भारत और कुछ मुल्कों पर अंग्रेजों ने शासन किया फ़िर 1947 से राजनीतिक नेतृत्व की श्रृंखला शुरू हुई, लोकतंत्र की स्थापना हुई, पार्टियों की संख्या में विस्तार हुआ, कंपटीशन बड़ाऔर यहां से शुरू हुआ वोट बैंक की राजनीति का सफ़र जो आज हम चरम सीमा पर देख रहे हैं कि सामाजिक, धार्मिक, जातीय वर्ग और समुदाय में विभाजित होता जा रहा है जिसे ध्रुवीकरण की संज्ञा दी जा रही है, यहां तक की शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य सहित अनेक क्षेत्रों में आरक्षण का मुद्दा छाया रहता है माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 50 फ़ीसदी की सीमा तय की है परंतु अनेक राज्यों ने इस सीमा को लांघ लिया है याने अध्यादेश या अधिसूचना जारी कर किसी ना किसी चतुराई से न्यायालय आदेशों को साइड कर दिया जाता है। हालांकि उन्हें यह अधिकार भी संविधान ने ही दिया है परंतु मेरा मानना है कि हर व्यक्ति की काबिलियत स्किलिंग और एक्सपीरियंस तथा गुणवत्ता को प्राथमिकता देना चाहिए नकि रंगभेद जात पात या धार्मिक परिपेक्ष का से लेना चाहिए बल्कि सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ दिया जाना जायज है, हम इससे चार कदम आगे बढ़े तो कानून की स्थिति में सामाजिक धार्मिक और जातीय परंपराओं को छोड़कर सभी के लिए समानता से लागू होना चाहिए जैसे यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्देका आजपूरे भारत में आगाज हो रहा है। हालांकि अभी ड्राफ्ट भी नहीं आया है परंतु बैठकें, डिबेट, बयानबाजी अपनी चरम सीमा पर है। इस बीच दिनांक 29 जून 2023 को इसी जात पात रंगभेद पर अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया कि नस्ल के आधार पर शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई है जिससे पूरे विश्व में सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ मिलने का वैश्विक आगाज़ हुआ है, जो पूरी दुनियां के लिए एक मिसाल कायमकरेगा जिसका अर्थ हम यूसीसी को सख्ती से लागू करने और हर क्षेत्र के आरक्षण को समाप्त करने से भी लगा सकते हैं। हालांकि हर देश में इसकी एक संवैधानिक प्रक्रिया होती है जिसकी ओर दुनियां को कदम बढ़ाने का समय आ गया है जिसे रेखांकित करना ज़रूरी है चूंकि अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज दुनियां के लिए रोडमैप रोल मॉडल बन गया है, इसीलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,सभी नागरिकों को बराबरी के हक़ का वैश्विक आगाज़।
साथियों बात अगर हम दिनांक 29 जून 2023 केअमेरिकन सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले की करें तो,गुरुवार को यूनिवर्सिटी एडमिशन में रेस यानी नस्ल और जाति के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की बेंचने ये फैसला सुनाया।अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकियों (ब्लैक) और अल्पसंख्यकों को कॉलेज एडमिशन में रिजर्वेशन देने का नियम है। इसे अफर्मेटिव एक्शन यानी सकारात्मक पक्षपात कहा जाता है।सुप्रीम कोर्ट एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयरएडमिशंस की पिटीशन पर सुनवाई कर रहा था। इस ग्रुप ने हायर एजुकेशन के सबसे पुराने प्राइवेट और सरकारी संस्थानों और खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी की एडमिशन पॉलिसी के खिलाफ 2 याचिकाएं लगाई थीं। उन्होंने तर्क दिया था कि ये पॉलिसी व्हाइट और एशियन अमेरिकन लोगों के साथ भेदभाव है। चीफ जस्टिस बोले- रंग नहीं बल्कि स्किल्स एक्सपीरिएंस से काबिलियत साबित होती है। चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने फैसला सुनाते हुए कहा-लंबे वक्तसे कईयूनिवर्सिटीज ने ये गलत धारणा बना रखी थी कि किसी व्यक्ति की काबिलियत उसके सामने आने वालीचुनौतियां उसकी स्किल्स, एक्सपीरिएंस नहीं बल्कि उसकी त्वचा का रंग है।हावर्ड यूनिवर्सिटी कीएडमिशन पॉलिसी इस सोच पर टिकी है कि एक ब्लैक स्टूडेंट में कुछ ऐसी काबिलियत है जो व्हाइट स्टूडेंट्स में नहीं है। सीजे ने कहा- इस तरह की पॉलिसी बेतुकी और संविधान के खिलाफ है। विश्वविद्यालयों के अपने नियम हो सकते हैं लेकिन इससे उन्हें नस्ल के आधार पर भेदभाव का लाइसेंस नहीं मिल सकता। जस्टिस रॉबर्ट्स ने कहा कि जिन जजों ने इस फैसले पर असहमति जताई है वो कानून के उस हिस्से को अनदेखा कर रहे हैं, जिसे वो नापसंद करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा- अफर्मेटिव एक्शन अमेरिका के संविधान के खिलाफ है जो सभी नागरिकों को बराबरी का हक देता है। अगर यूनिवर्सिटी में एडमिशन कुछ वर्ग के लोगों को फायदा दिया जाएगा तो ये बाकियों के साथ भेदभाव होगा, जो उनके अधिकारों के खिलाफ है। अमेरिका में अफर्मेटिव एक्शन 1960एस में लागू किया गया था। इसका मकसद देश में डायवर्सिटी को बढ़ावा देना और ब्लैक कम्युनिटी के लोगों के साथ भेदभाव को कम करना था। सुप्रीम कोर्ट अमेरिका की यूनिवर्सिटीज में इस पॉलिसी का दो बार समर्थन कर चुका है। पिछली बार ऐसा 2016 में हुआ था। हालांकि, अमेरिका की 9 स्टेट्स पहले ही नस्ल के आधार पर कॉलेजों में एडमिशन पर रोक लगा चुकी हैं। इनमें एरिजोना, कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, जॉर्जिया ओकलाहोमा, न्यू हैम्पशायर, मिशिगन, नेब्रास्का और वॉशिंगटन शामिल हैं। नस्ल के आधार पर एडमिशन देने की नीति पहली बार 1960 के दशक में अस्तित्व में आई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्टूडेंट्स फार फेयर एडमिशन का पक्ष लिया, जो इसका मुखर आलोचक रहा है। रूढ़िवादी कार्यकर्ता एडवर्ड ब्लम ने इसका गठन किया था। नार्थ कैरोलिना मामले में वोट 6-3, जबकि हार्वर्ड मामले में 6-2 था।
साथियों बात अगर हम अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर वर्तमान और पूर्वराष्ट्रपतियों के बयानों की करें तो राष्ट्रपति बाइडेन बोले- फैसला गलत, देश में अब भी भेदभाव जारी हैं।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति बाइडेन ने आपत्ति जताई है। मीडिया के मुताबिक, उन्होंने कहा- मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असहमत हूं।अमेरिका ने दशकों से दुनियां के सामने एक मिसाल पेश की है। ये फैसला उस मिसाल को खत्म कर देगा। उन्होंने कहा कि इस फैसले को आखिरी शब्द नहीं माना जाता सकता है। अमेरिका में अब भी भेदभाव बरकरार है। ये फैसला इस कड़वी सच्चाई को नहीं बदल सकता है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, यह अमेरिका के लिए महान दिन है। असाधारण क्षमता वाले लोगों और हमारे देश के लिए भविष्य की महानता सहित सफलता के लिए आवश्यक सभी चीजों को आखिरकार पुरस्कृत किया जा रहा है। हमारे प्रयासों को दोगुना करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा- ये शानदार दिन है। जो लोग देश के विकास के लिए मेहनत कर रहे हैं उन्हेंआखिरकार इसका फल मिला है। बराक ओबामा पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बयान में कहा कि सकारात्मक कार्रवाई नीतियों ने उन्हें और उनकी पत्नी मिशेल सहित छात्रों की पीढ़ियों को यह साबित करने की अनुमति दी थी कि हम उनके है, तर्क दिया कि ये नीतियां यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक थीं कि नस्ल या नस्ल की परवाह किए बिना सभी छात्रों को सफल होने काअवसर मिले। उन्होंने कहा,सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के मद्देनजर, अब हमारे प्रयासों को दोगुना करने का समय आ गया है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सभी नागरिकों को बराबरी के हक़ का वैश्विक आगाज़।अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला।अमेरिका में नस्ल के आधार पर शिक्षण क्षेत्र में एडमिशन पर रोक – फैसल का वैश्विक स्तरपर दूरगामी परिणामों की संभावना।सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ मिलना जायज़ है – हर व्यक्ति की काबिलियत स्किलिंग और एक्सपीरियंस को प्राथमिकता देना ज़रूरी है।

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 
गोंदिया महाराष्ट्र 

Related Posts

Samasya ke samadhan ke bare me sochne se raste milte hai

August 25, 2021

समस्या के बारे में सोचने से परेशानी मिलती है – समाधान के बारे में सोचने से रास्ते मिलते हैं किसी

Scrap policy Lekh by jayshree birmi

August 25, 2021

स्क्रैप पॉलिसी      देश में प्रदूषण कम करने के लिए सरकार कई दिशाओं में काम कर रही हैं,जिसमे से प्रमुख

Afeem ki arthvyavastha aur asthirta se jujhta afganistan

August 25, 2021

 अफीम की अर्थव्यवस्था और अस्थिरता से जूझता अफगानिस्तान– अफगानिस्तान के लिए अंग्रेजी शब्द का “AAA” अल्ला ,आर्मी, और अमेरिका सबसे

Lekh by jayshree birmi

August 22, 2021

 लेख आज नेट पे पढ़ा कि अमेरिका के टेक्सास प्रांत के गेलवेस्टैन काउंटी के, जी. ओ. पी. काउंसील के सभ्य

Desh ka man Lekh by jayshree birmi

August 22, 2021

 देश का मान जब देश यूनियन जैक की कॉलोनी था तब की बात हैं। उस समय में भी देश को

Kahan hai swatantrata by jayshree birmi

August 22, 2021

 कहां है स्वतंत्रता खुशी मानते है हम दुनिया भरकी क्योंकि अब आया हैं स्वतंत्रता का ७५ साल, यानी कि डायमंड

Leave a Comment