Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Virendra bahadur

सुपरहिट कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला | Superhit Kanhaiyalal

सुपरहिट कन्हैयालाल: कर अच्छा तो हो अच्छा ओटीटी प्लेटफॉर्म एम एक्स प्लेयर पर ‘नाम था कन्हैयालाल’ नाम की एक डाक्यूमेंट्री …


सुपरहिट कन्हैयालाल: कर अच्छा तो हो अच्छा

सुपरहिट कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला | Superhit Kanhaiyalal

ओटीटी प्लेटफॉर्म एम एक्स प्लेयर पर ‘नाम था कन्हैयालाल’ नाम की एक डाक्यूमेंट्री रिलीज हुई है। अगर आज किसी सिनेमा प्रेमी ने पूछा कि उसने कन्हैयालाल का नाम सुना है? तो मुमकिन है कि दस में से नौ लोग पलट कर सवाल करें कि ‘अरे यह कौन है?’ जब उन्हें महबूब खान सर्जित नरगिस की फिल्म ‘मदर इंडिया’ के दुष्ट जुनूनखोर हिलाल की याद दिलाएंगे तो संभव है कि उन्हें कन्हैयालाल की याद आ जाए।
लगभग 50 साल तक दिलीप कुमार, देव आनंद, अशोक कुमार, मनोज कुमार, सुनील दत्त, राजेन्द्र कुमार, अक्षय ऊर्जा, धर्मेन्द्र, जितेन्द्र, अमिताभ बच्चन जैसे टाॅप सितारों के साथ काम करने वाले कन्हैया लाल का नाम ऐसे कलाकरों में शामिल है, जो अपने परफार्मेंस से सिनेमाप्रेमियों को बहुत प्रभावित किया गया था, पर दुर्भाग्य से बड़ी तेजी से गुमनामी के परदे के पीछे खो गए थे। पवन कुमार ने निर्देशन किया है। डाक्यूमेंट्री में अमिताभ बच्चन, नासिरुद्दीन शाह, बोमन ईरानी, ​​बोनी कपूर, जावेद सशर्त, रणधीर कपूर, सलीम खान, अनुपम खेर, जानी लीवर, पंकज त्रिपाठी, पेंटल, बीलबल जैसे कलाकारों ने अपनी तरह से कन्हैया लाल को याद किया है।
आख़िर कौन थे कन्हैयालाल? पूरा नाम कन्हैयालाल चतुर्वेदी। जन्म 1910 में, स्थान वाराणसी। उनके पिता पंडित भैरोदत्त चौबे वहां सनातन धर्म नाटक समाज के नाटक चल रहे थे। यह मंडली अलग-अलग शहरों में नाटक कर रही थी। 9 साल के कन्हैयालाल को इसमें मजा आया तो पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर पिता के साथ जुड़ गए। उनकी मूल पसंद लिखना था। (और इसी वजह से मुंबई की हिंदी फिल्म जगत में आई थी)। पर पिता की मृत्यु के बाद वह स्वयं नाटक मंडली चलाने लगे थे।
उनके बड़े भाई पंडित संकठाप्रसाद तब तक मुंबई में कनेक्शन हो चुके थे और मूल फिल्मों में काम करने लगे थे। वाराणसी में नाटकमंडली का काम ढंग से नहीं चल रहा था, इसलिए बड़े भाई और मां के कहने पर कन्हैयालाल मुंबई आ गए थे। वह मुंबई काम करने नहीं आए थे। उन्होंने सोचा था कि मुंबई में ड्रामा-फिल्में लिखकर पैसा कमाएं। डाक्यूमेंटरी में तो यह इशारा है कि बड़े भाई जहां चले गए हैं, यह पता करने के लिए मां ने कन्हैयालाल को मुंबई भेजा था। जबकि मुंबई आ कर वह वहीं के हो कर चले गए थे।
फिल्मों की शुरुआत को लेकर दो-तीन बातें हैं। एक बात के होश से अरदेश्र ईरानी, ​​चिमन देसाई और अंबालाल पटेल की सागर मूवीटोन फिल्म कंपनी की फिल्म ‘सागर का शेर’ (1937) में एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में पहली बार काम किया था। इस फिल्म में महबूब खान की भी एक छोटी सी भूमिका थी। बाद में महबूब खान ने कन्हैयालाल को ‘सुपरस्टार विलन’ बना दिया था। सागर मूवीनेट में उनके बड़े भाई के जुड़ाव पर उन्हें काम मिला था। उस समय मेहताना 35 रुपए मिलते थे।
कंपनी की दूसरी गुजराती लेखक कन्हैयालाल मुंशी की कहानी पर बनी फिल्म ‘झूल बदन’ (1938) थी। इस फिल्म के हीरो पर्ललाल (दिलीप कुमार की ‘देवदास’ में चुन्नी बाबू की भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था) के पिता की भूमिका निभाने वाले कलाकार शूटिंग में नहीं आए तो पर्ललाल ने स्टूडियो में घूम रहे कन्हैयालाल से कहा कि कैमरे के सामने तुम हो जाओ। पर्ललाल कन्हैयालाल से 11 दिन बड़े थे। 28 साल के कन्हैयालाल ने इस फिल्म में अपने पिता की भूमिका निभाई थी। उसी साल ‘ग्रामोफोन टीचर’ नाम की दूसरी फिल्म आई, जिसमें सुरेन्द्र नाम का हीरो था। इसमें कन्हैयालाल की छोटी सी भूमिका भी थी।
1939 में कंपनी की तीसरी फिल्म ‘साधना’ आई। इसमें (कालेज की छोटी) शोभना समर्थ और बिबो (इशरत सुल्तान जो बाद में पाकिस्तान जा कर एक्टिंग करने लगी थी) जैसी बड़ी स्टार बनी थी। इसमें चिमनलाल देसाई ने कन्हैयालाल से संवाद लेखनवाए थे। उन पर संवाद सुनाता है कि फिल्म के नायक प्रेम आदिब (गांधीजी द्वारा एकमात्र एकमात्र फिल्म ‘राम राज्य’ में वे राम बने थे) के दादा की भूमिका के लिए कन्हैया लाल को खड़ा कर दिया था। फिल्म सफल हुई थी।
इन तीन फिल्मों में उनकी भूमिकाओं पर ध्यान दिया जा रहा है। पर युवा कन्हैयालाल अब तक ‘बूढ़े’ की भूमिका में बंध चुके थे। सालों बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने मजाक करते हुए कहा था, “फिल्म बनाने में उन्हें पिता की जगह दादा की भूमिका करने का प्रमोशन मिला था।”
इसमें जो बाकी था महबूब खान ने पूरा कर दिया था। बाद में ब्लॉकबस्टर फिल्म देने वाले महबूब खान ने कन्हैयालाल में एक दुष्ट खलनायक दिखाई दिया। 1939 में आई उनकी फिल्म ‘एक ही रास्ता’ में उन्होंने पहली बार कन्हैयालाल को बांके नाम के एक दलाल की भूमिका में लिया था, जो फिल्म की नायिका का अपहरण कर एक धनवान को बेच देता है।
उसी साल सागर मूवी बंद हो गई। इसके कलाकार चिमनलाल देसाई ने युसुफ के साथ राष्ट्रीय स्टूडियो में भाग लिया। इसी नेशनल स्टूडियो के सहयोग से महबूब खान ने 1940 में ‘औरत’ फिल्माई थी। इसमें ब्यासखोर सुखीलाल की भूमिका में उन्होंने कन्हैयालाल को लिया था। 17 साल बाद 1957 में महबूब खान ने हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी हिट फिल्म ‘मदर इंडिया’ बनाई थी। इसी ‘औरत’ फिल्म का रीमेक बनाया गया था। इसमें उर्दू नाटकों से आई सरदार शर्त (जिसके साथ महबूब खान ने विवाह किया था) ने राधा की भूमिका की थी। रामू की भूमिका सुरेंद्र ने की थी और बिरजू की भूमिका जैकब ने की थी। ‘मदर इंडिया’ में ये भूमिकाएँ: नरगिस, राजेंद्र कुमार और सुनील दत्त ने की थी।
‘मदर इंडिया’ में महबूब खान ने ‘औरत’ का स्कैन बड़ा कर दिया था। कहानी, इसकी ड्रेन, आर्टिस्ट, लोकेशंस और सिनेमेटोग्राफ़ी की दृष्टि से विशाल (लार्जर डेन लाइफ) मूवी बनाने की परंपरा में ‘मदर इंडिया’ पहली फिल्म है।
काम की अभिनय क्षमता का ही यह गवाह था कि महबूब खान ने ‘औरत’ के सभी अभिनेताओं में से केवल कन्हैयालाल को ही ‘मदर इंडिया’ में दोहराया था। गरीबी में बेटे को बड़ा करती है और गांव के दुष्ट व्याजखोर के वश में गई बग सुहाग की रक्षा करती नरगिस के लिए ‘मदर इंडिया’ माइलस्टोन साबित हुई थी। इसमें कन्हैयालाल के लिए पहले ‘औरत’ और फिर ‘मदर इंडिया’ टर्निंग पॉइंट बन गया। उस जामने में जब पुरानी फिल्मों का रीमेक नहीं बनाया गया था, तब ऐसा दुस्साहस महबूब खान ने पहली बार किया था। इसलिए ही नहीं, उन्होंने भी उसी भूमिका में लिया था।
इसका पूरा श्रेय कन्हैयालाल को जाता है। उस जमाने के नो-नोनसेंस फिल्म एनालिटिक बाबूराव पटेल ने ‘औरत’ फिल्म में कन्हैयालाल के लिए काम किया था, “ब्याजखोर सुखीलाल की भूमिका में दुश्मनी पैदा करने में कन्हैयालाल सफल रहे हैं।”
कन्हैयालाल ने अपनी भूमिका में ऐसी जान डाल दी थी कि महबूब खान ने ‘मदर इंडिया’ में ही अपनी भूमिका दोहराई और कन्हैयालाल ने भी इसका लाभ उठा कर सुखीलाल में ‘चार चांद’ लगा दिया। जैसे गब्बर सिंह के लिए ‘शोले’ और अमरीश पुरी के लिए ‘मिस्टर इंडिया’ का करियर सबसे अच्छा साबित हुआ था, उसी तरह कन्हैयालाल के लिए ‘मदर इंडिया’ का एक इतिहास पहुंच गया था। इसके बाद उन्हें जो भी फिल्में मिलीं, उन सभी में कहीं न कहीं सुखीराम जैसा ही दिखावा करने वाले दिखाई दे रहे थे। उनकी यह सफलता ही उनके लिए गले का फांस बन गई थी। सुखीलाल का ऐसा प्रभाव था कि फिल्म निर्माता उन्हें किसी अन्य भूमिका में देखने को तैयार नहीं थे।
इसके बाद 1967 में मनोज कुमार की ‘उपकार’ में लाला धनीराम, 1967 में दिलीप कुमार की ‘राम और श्याम’ में मुनीम जी और 1965 में मनोज कुमार की ‘हिमालय की गोद में’ में घोबाबाबा की भूमिका में कन्हैयालाल को दर्शकों ने बहुत कुछ देखा अधिनिर्णय था। 1981 में संजीव कुमार, शबाना, मिथिल चक्र, राज बब्बर और नासिरुद्दीन शाह की ‘हम पांच’ फिल्म में उन्होंने नयनसुख की भुमिका में ‘सुखीलाल’ जैसी किस्मत का परचम दिया था।
‘हम पांच’ की शुटिंग के दौरान वह बुरी तरह जख्मी हो गए थे। लंबे समय तक देखने पर पड़ा रहने के बाद वह खड़ा हो गया, पर यह चोट के लिए उसकी मौत साबित हुई। एक साल बाद 14 अगस्त 1981 को कन्हैयालाल दुनिया छोड़ गए थे।
उन पर हो रही डाक्यूमेंट्री में उन्हें गोल कर के एक गाना भी बनाया गया है, ‘पहन के धोती कुर्ते का जामा…’ सुखीलाल से ले कर अन्य सभी पात्रों में, कन्हैयालाल उनके ट्रेडमार्क धोती और कुर्ता में दर्शकों को हमेशा याद रखने के लिए रह गए हैं। 1972 में राजेश-मुमताज की फिल्म ‘दुश्मन’ में गांव के दुष्ट व्यवसायी दुर्गाप्रसाद की भूमिका थी। इसमें उनका एक संवाद बहुत मशहूर हुआ था- कर अच्छा तो हो सकता है। बातचीत सामान्य थी, पर कन्हैयालाल ने इसे इस तरह कहा था कि यह लोगों के मन में बैठ गया था। वास्तविक जीवन में वह भले ही बहुत आदमी थे। शायद इसीलिए जल्दी दिए गए।

About author 

वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336

वीरेन्द्र बहादुर सिंह
जेड-436ए सेक्टर-12,
नोएडा-201301 (उ0प्र0)
मो-8368681336


Related Posts

जहां प्रयत्नों की ऊंचाई ज्यादा होती है,

September 11, 2023

जहां प्रयत्नों की ऊंचाई ज्यादा होती है, वहां किस्मत को भी झुकना पड़ता है हिम्मत और कोशिशों के बल पर

भारत का दुनियां में आगाज़

September 11, 2023

भारत का दुनियां में आगाज़ आज का भारत जो कहता है उसे दुनियां कल की आवाज़ मानती है युवा भारत

इंडिया बनाम भारत | India vs bharat

September 7, 2023

इंडिया बनाम भारत – भारत की बात बताता हूं भारतीय संविधान में इंडिया, दैट इज भारत का पहले से ही

दीवार और हाजी मस्तान | Diwar and Haji mastan

September 7, 2023

सुपरहिट  दीवार और हाजी मस्तान  आज खुश तो बहुत होगे तुम  अंडरवर्ल्ड पर फिल्में बनाने का चलन मूल तो हालीवुड

Teacher’s day 5 september special

September 4, 2023

शिक्षक दिवस 5 सितंबर 2023 पर विशेष शिक्षक मानवीय व्यक्तित्व निर्माता हैं इसलिए अपनी शिक्षण क्षमताओं में विकास और छात्रों

आध्यात्मिक जीवन अपनाकर दिव्य आनंद के द्वार खोलें

September 2, 2023

वैज्ञानिक विज्ञान वस्तु भोग के दलदल में डालता है और आध्यात्मिक हमें बाहर निकलता है आओ आध्यात्मिक जीवन अपनाकर दिव्य

PreviousNext

Leave a Comment