Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel
सुंदर सी फुलवारी

kanchan chauhan, poem

सुंदर सी फुलवारी| Sundar si phulwari

सुंदर सी फुलवारी मां -पिता की दुनिया बच्चे हैं,बच्चों की दुनिया मात- पिता ।रिश्ते बदलें पल- पल में ,मां -पिता …


सुंदर सी फुलवारी

मां -पिता की दुनिया बच्चे हैं,
बच्चों की दुनिया मात- पिता ।
रिश्ते बदलें पल- पल में ,
मां -पिता कभी नहीं बदलते हैं।
बच्चों के भाव बदलते हैं,
हरदम बस उलझे रहते हैं।
तुलना की इनकी आदत है,
खुद को कम आंका करते हैं।
मां -पिता के प्यार पर शंका कर,
खुद का मन दुःख से भरते हैं।
ये दौर सभी के जीवन में,
आता है, और घर कर जाता है।
शंका के बादल जब घेरे मन को,
फिर प्यार नहीं दिखता इनको।

तुलना जब करने लगते हैं,
अपनापन बिल्कुल खो जाता,
बचपन के वो प्यारे रिश्ते,
दुश्मन से भी बद्तर लगते हैं।
तेरे – मेरे के इस चक्कर में ,
मां -पिता भी बंटते जाते हैं।
मां -पिता ने सपने देखे थे,
इक सुंदर सी फुलवारी के,
उन सपनों को अनदेखा कर,
सब अपने सपने देखते हैं,
इक सुंदर सी फुलवारी के।
मां -पिता की कोई जगह नहीं,
उस सुंदर सी फुलवारी में।

वक्त फिर से लौट कर आता है,
सपना फिर से टूटा करता है,
इक सुंदर सी फुलवारी का।
सोचा था पढ़ लिख कर मानव,
समझेगा इस पीड़ पराई को।
अहसान हमेशा यह मानेंगा,
मां -पिता ने कष्टों को झेला है,
तब जाकर जीवन जीने का,
सलीका सीख वो पाया है।

अफसोस ये आज भी है हमको,
वो आज भी सीख ना पाया है,
औरों के दर्द में तड़प जाना।
जाने कब मानव सीखेगा,
कब सपना यह पूरा होगा,

जो देखा था मां-पापा ने
इक सुंदर सी फुलवारी का।

About author




कंचन चौहान,बीकानेर

Related Posts

Tum ho meri mohabat rahogi meri

March 5, 2021

Tum ho meri mohabat rahogi meri बारिशों के बूँद सा टपकता रहातुम भी रोती रही मैं भी रोता रहाप्यार तुझको

Chaman ki suman ibadat ho tum-geet

February 16, 2021

                      गीत चाहतो में मेरे , चाहत हो तुमजिन्दगी के

Ab aur na aise satao sanam

February 14, 2021

poem जब से तुझ से  जुड़ा  फूल सा खिल  गया  सूखे  मधुबन में जैसे   कँवल   खिल  गया अकेले  पन  में 

Achhe din

February 8, 2021

 कविताअच्छे दिन बात    महिलाओं      की   सुरक्षा     का       हो या           कुपोषित 

Sach pagli hme tumhi se pyar hai

February 8, 2021

 कविता जब देखता हूं जिधर  देखता हूं  दिख  जाती  हो मोटे मोटे किताबों के काले काले शब्दों में दिख जाती

Har vade par asha kiya na kro

February 8, 2021

 ग़ज़ल हर   वादे   पर   आशा   किया   ना   करो पराधीन    होकर     जिया      ना     करो लगी है

Leave a Comment