Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, lekh

सिंधी सेवादारी मंडल के प्रणेता को सैल्यूट – 21वीं पुण्यतिथि

चिट्ठी न कोई संदेश ना जाने कौनसा देश जहां तुम चले गए सिंधी सेवादारी मंडल के प्रणेता को सैल्यूट – …


चिट्ठी न कोई संदेश ना जाने कौनसा देश जहां तुम चले गए

सिंधी सेवादारी मंडल के प्रणेता को सैल्यूट – 21वीं पुण्यतिथि 7 अगस्त 2023 पर विशेष

सिंधी सेवादारी मंडल के प्रणेता को सैल्यूट - 21वीं पुण्यतिथि

मानवीय जीव की पहचान धन दौलत से नहीं बल्कि सामाजिक व मानवीय सेवा के गुणगान से आदिअनादि काल तक होती है – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

गोंदिया – वैश्विक स्तर पर आदि-अनादि काल से ज्ञात अज्ञात, चिन्हित अदृश्य ऐसे हजारों की संख्या में महामानव महापुरुष हुए हैं जिनका गुणगान सारी दुनियां में किया जाता है क्योंकि उन्होंने अपना जीवन केवल ख़ुद और अपने परिवार और अपने राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनियां के लिए निछावर कर दिया, जिससे मानवीय जीवो को अनगिनत फायदे हुए जिसमें से कई को हम जानते हैं परंतु दुर्भाग्यपूर्ण कि अनेकों अज्ञात व अदृश्य भी ऐसे महामानव हो सकते हैं जिनकी सेवाएं पटल पर ज्ञात नहीं हो सकी जिसके कारण वे वैश्विक परिपेक्ष में अदृश्य रहे। महामानव की सेवाओंको चिन्हित कर अंतरराष्ट्रीय मंचों संस्थाओं द्वारा उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों, अवार्डों से नवाजा जाता है, इनमें नोबेल पुरस्कार एक ऐसा है जो दुनियां का सबसे बड़ा अवार्ड है। ठीक उसी तरह हर देश राज्य जिला शहर और सामाजिक स्तरपर भी अनेक सेवाभावी महामानव होते हैं जो अपने देश राज्य जिले और शहर समाज के लिए अपना पूरा जीवन निछावर कर देते हैं जिससे उनकी उस सेवा स्तर पर उस राज्य से समाज तक चैनल में उनका बड़ा योगदान होता है। हालांकि वह किसी अवार्ड या पुरस्कार या सम्मान के मोहताज नहीं होते उनका धर्म कर्म सिर्फ सेवा ही रहता है। ऐसे ही हमारे गोंदिया शहर के सिंधी समाज की सेवा में जमीनी स्तर से जुड़ा नाम स्वर्गीय सनमुख़दास जी भावनानी हैं, जिन्होंने अपनां जीवन समाज सेवा में समर्पित कर दिया उन्हें समाज में उस्ताद के नाम से जाना जाता है। चूंकि 7 अगस्त 2023 को उनकी 21वीं पुण्यतिथि है इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से उनकी सेवाओं की चर्चा करेंगे कि मानवीय जीव की पहचान धन दौलत से नहीं बल्कि सामाजिक व मानवीय सेवा से आदि अनादि काल तक उनके गुणगान से होती है ताकि सेवा क्षेत्र में समर्पित रहने वालों को एक प्रेरणा मिल सके और सेवा रूपी फूलों में से कोई एक फूल लेकर अपने जीवन में अपनाकर लोक परलोक को सफल बनाएं।

 
साथियों बात अगर हम किसी भी क्षेत्र में निस्वार्थ सेवा के गुणों की शुरुआत की करें तो मेरा मानना है कि वह बड़े बुजुर्गों से फ्लो होती है। स्वर्गीय सनमुखदास जी को भी इन की प्रेरणा प्रख्यात समाजसेवी काका चोइथराम जी गलानी से मिली और फिर उनके ही सानिध्य में उन्होंने एक अनोखा सेवा कार्य शुरू किया जिसमें समाज के किसी जीव की अगर मृत्यु हो जाती है तो उनकी जानकारी सभी समाज बंधुओं को उनके घर घर में जाकर देना कि उनकी मृत्यु हुई है एवं उनका अंतिम संस्कार इतने बजे है। दूरदृष्टि से दूर के लोगों को टेलीफोन द्वारा इसकी सूचना भी दी जाती थी प्राथमिक स्तरपर उन्होंने अकेले कार्य शुरू किया फिर काका चोइथराम जी से मिलकर कुछ समाजसेवियों को साथ लेकर पूरे शहर के समाज में शुरुआत की सूचना निशुल्क सेवा भाव से पहुंचाते थे। स्वाभाविक रूप से यदि हम कोई सेवा इतनी विशालता से करते हैं तो हमारे खिलाफ चार विरोधी भी खड़े हो जाते हैं, जिसमें हमें अपनी सेवाओं का दायरा बढ़ाने में प्रोत्साहन मिलता है, इसी वाक्यात के साथ उन्होंने सिंधी सेंट्रल पंचायत के अध्यक्ष पद का नामांकन भरा तो स्वाभाविक रूप से कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि एक गरीब अगर तन मन से सेवा करता है तो अच्छे-अच्छे उसके साथ खड़े हो जाते हैं परंतु यहां कुछ विपरीत हुआ कि वह सिर्फ 66 वोटों से चुनाव हार गए परंतु उन्होंने सेवा कार्य नहीं छोड़ा बल्कि एक संगठन सिंधी सेवादारी मंडल की स्थापना की जिसका काम किसी की मृत्यु हो जाने पर उसकी सूचनाएं पूरे समाज तक पहुंचाना और उसका पूरा क्रियाकर्म उसके परिवार के साथ मिलकर कराना इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था, जिसमें स्व काका चोइथराम गलानी, स्व बुध्रमल चुगवानी, स्व गामनदास पर्यानी स्व गुलाब छतानी स्व आरके साइकिल, धर्मदास चावला, कमल लालवानी इत्यादि अनेक सेवादारों से मिलकर उत्साह पूर्वक सफलताओं की बुलंदियों तक पहुंचाया पर, होनी को कौन टाल सकता है, 7 अगस्त 2002 को वह काल के ग्रास में समा गए। उसके कुछ वर्षों बाद उनके अनेक सेवादारी सहयोगी भी काल के ग्रास में समा गए। परंतु सिंधी सेवादारी मंडल आज भी उसी जोश और सेवाओं के साथ अपनी सेवाएं युवा सेवादारियों के साथ उसी सेवा समर्पित भाव के साथ जारी रखे हुए है जो समाज के सामने एक मिसाल है, इसका संचालन आज के युवा साथी कर रहे हैं।

 
साथियों उस्ताद के भजन कीर्तन के भाव की करें तो कुछ मंदिरों आश्रम विशेष रूप से भाई किशनचंद् जी के टिकाने में भजन कीर्तन करते थे परंतु विशेषता यह थी कि उन्होंने वहां से कभी भी एक रुपया भी नहीं उठाया। कीर्तन के दौरान उनके साज़ों पर जो भी पैसे आते थे वह आश्रम या मंदिर की दान पेटी में डाल देते थे। विशेष यह कि अपनी कोई भेटा भी नहीं लेते थे उनके साथ साज़ भी निशुल्क बजाते थे। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि किसी भी परिवार खानदान की जो अच्छाई या बुराई है होती है वह आगे की पीढ़ियों में भी झलकती है, यह हम अपनी आंखों से देख रहे हैं कि उनके भजन और कीर्तन की स्तुति उनके पोतेनिखिल भावनानी में समाई है जो मात्र 4 वर्ष की उम्र से ही बिना किसी तकनीकी रूप से सीखने के गॉड गिफ्टेड के रूप में उनको मिली है। हारमोनियम से लेकर ढोलक तक अच्छे से से बजा लेते हैं। शब्द कीर्तन भजन करते हुए देखा जा सकता है। उनके अपने पैतृक गुरु के सत्संग घर हरे माधव दरबार में उनकी सेवाएं को देखा जा सकता है। वहां अपने पैतृक धरोहर कि एक रुपया भी नहीं उठाना है सभी दान पेटी में डालना है वाली प्रथा को कायम रखे हैं।

 
साथियों बात अगर हम समाज में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर सेवाओं की करें तो भले ही इसकी शुरुआत उस्ताद नें की परंतु इस दिशा में आज समाज में अनेक संस्थाएं शुरू होकर कार्य कर रही है जिसमें सेवाओं का अपना अपना दायरा है। किसी के परिवार में मृत्यु होती है तो एक संस्था उसका अंतिम संस्कार तक भोजन की व्यवस्था, एक दिशा संगठन चाय पानी की सेवा करती है, सिंधी सेवादारी मंडल दाह संस्कार की व्यवस्था, एक संस्था द्वारा उस परिवार के आंगन में शेड की व्यवस्था की जाती है। एक संस्था द्वारा पगड़ी रस्म की व्यवस्था की जाती है, मुखी साहब नारी चांदवानी द्वारा व्हाट्सएप के माध्यम से मृत्यु की सूचना पूरे समाज में देने की व्यवस्था सहित अनेक अनेक संस्थाएं हैं जो अपनी अपनी सेवाएं दे रही है, जो तारीफ़ के काबिल है। मेरा मानना है कि इन सेवाओं को देश के हर समाज द्वारा अपने-अपने स्तर पर मृतक जीव के शोक संतप्त परिवार वालों तक पहुंचाना श्रेष्ठ मानवीय सेवा है, जिससे इस लोक में तो सुख समृद्धि के रूप में फल प्राप्त होता ही है बल्कि परलोक में भी इसका पुण्य मिलने की कहावत को नकारा नहीं जा सकता।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चिट्ठी न कोई संदेश ना जाने कौनसा देश जहां तुम चले गए।सिंधी सेवादारी मंडल के प्रणेता को सैल्यूट – 21वीं पुण्यतिथि 7 अगस्त 2023 पर विशेष।मानवीय जीव की पहचान धन दौलत से नहीं बल्कि सामाजिक व मानवीय सेवा के गुणगान से आदिअनादि काल तक होती है।

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 

किशन सनमुख़दास भावनानी 
 गोंदिया महाराष्ट्र

Related Posts

कविता- भारत देश महान, मेरी आन बान शान

September 13, 2023

कविता-भारत देश महान, मेरी आन बान शान चांद पर पहुंचे अब सूरज की मिलेगी कमान जी20 सफ़ल हुआ पूरे हुए

अकड़ में रहोगे तो रास्ते भी ना देख पाओगे

September 13, 2023

सुनिए जी ! मुस्कराइएगा, सबको खुशी पहुँचाइएगा और गुरुर को भूल जाइएगा अकड़ में रहोगे तो रास्ते भी ना देख

मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करें

September 11, 2023

आओ प्रकृति के साथी बनें आओ मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करें मानवीय जीवन को पर्यावरण के खतरों से बचाने

जहां प्रयत्नों की ऊंचाई ज्यादा होती है,

September 11, 2023

जहां प्रयत्नों की ऊंचाई ज्यादा होती है, वहां किस्मत को भी झुकना पड़ता है हिम्मत और कोशिशों के बल पर

भारतीय संस्कार | bharteey sanskar par kavita

September 11, 2023

भावनानी के भाव भारतीय संस्कार भारतीय संस्कार हमारे अनमोल मोती है प्रतितिदिन मातापिता के पावन चरणस्पर्श से शुरुआत होती है

भारत का दुनियां में आगाज़

September 11, 2023

भारत का दुनियां में आगाज़ आज का भारत जो कहता है उसे दुनियां कल की आवाज़ मानती है युवा भारत

PreviousNext

Leave a Comment