Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, lekh

श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है

पितृपक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2023 पर विशेष श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध …


पितृपक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2023 पर विशेष

श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है

श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ - जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है

मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में धरती पर आते हैं और श्राद्ध को ग्रहण कर हमें आशीर्वाद देते हैं – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत मान्यताओं प्रथाओं परंपराओं और गहरी आध्यात्मिकता में आस्था रखने वाले देश के रूप में प्रसिद्ध है। अनेक कारणों में से यह भी एक कारण है की पूरी दुनियां से सैलानी भारत भ्रमण पर आते है जो इन प्रथाओं परंपराओं आध्यात्मिकता को देख उनसे प्रेरणा लेने की कोशिश करते हैं। आधुनिक विज्ञान के इस डिजिटल युग में जहां मानव चांद पर मानव कॉलोनी बनाने की ओर बढ़ गए हैं, सूर्य को अपनी मुट्ठी में लेने के प्रयास हो रहे हैं, मानव का स्थान अब रोबोट ले रहा है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनियां हदें पार कर रही है, वहीं भारत जैसा आस्था का प्रतीक देश अपनी परंपरागत आस्था शैली में 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2023 तक सच्चे मन से एवं श्रद्धा से श्राद्ध मनाकर अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त कर रहा है। मान्यता के अनुसार इस दौर में हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में धरती पर आते हैं और श्राद्ध को ग्रहण करहमें आशीर्वाद देते हैं। चूंकि यह 15 दिवसीय श्राद्ध शुरू हो गए हैं, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से, चर्चा करेंगे, श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।

साथियों बात अगर हम पितृपक्ष या श्राद्ध कीकरें तो,पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से शुरू होकर पितृमोक्षम अमावस्‍या तक चलते हैं। 29 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो गए है, जो कि 14 अक्‍टूबर को खत्‍म होगा। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को याद कर उनकी आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. देश की प्रमुख जगहों जैसे हरिद्वार, गया आदि जाकर पिंडदान करने से पितृप्रसन्न होते हैं। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि विधान से अनुष्ठान किए जाते हैं।पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती ह। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध के अनुष्ठानों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है, प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं।

 जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृतव्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। 
पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था प्रेत है क्यों की आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया भूख और प्यास का अतिरेक होता है। सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम काजीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैंनिर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है। अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित हैउसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है।
पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य केअनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है। इसके फलस्वरूपपरिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी,संकट धन में बरकत न होना,सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं। यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ अपने माता-पिता तथा अन्य ज्येष्ठ जनों का अपमान न करें। 
प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें। यदि इन सभी क्रियाओं को करने के पश्चात् पितृ दोष से मुक्ति न होती हो तो ऐसी स्थिति में किसी सुयोग्य कर्मनिष्ठ विद्वान ब्राह्मण से श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा करवायें। वैसे श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा कोई भी श्रद्धालु पुरुष अपने पितरों की आम शांति के लिए करवा सकता है। इससे विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

साथियों बात अगर हम हमारे पूर्वजों के हमारे आसपास होने के संकेतों की करें तो,(1) पितृ पक्ष में कौए का विशेष महत्व माना है. माना जाता है कि इन दिनों में पितर कौवों के रूप में धरती पर आते हैं और जल-अन्न ग्रहण करते हैं। पितृ पक्ष के दौरान अगर कौआ आपके घर में आकर भोजन ग्रहण करता है तो इसका मतलब है कि आपके पूर्वज आपके आसपास मौजूद हैं और आप पर उनकी दया दृष्टि है।(2)श्राद्ध के दिनों में अगरआपको अपने घर के आसपास अचानक से काला कुत्ता दिखाई देता है, तो यह आपके आसपास पितरों की मौजूदगी का संकेत हो सकता है. पितृ पक्ष के दौरान काले कुत्ते को पितरों का संदेशवाहक माना जाता है। इन दिनों में काले कुत्ते का दिखना एक शुभ संकेत माना जाता है. इसका मतलब है कि आपके पितृ आपसे प्रसन्न हैं।(3)पितृ पक्ष के दौरान आपको घर में बहुत सारी लाल चीटियां दिखाई दें तो यह भी पितरों के आसपास होने का संकेत है. माना गया है कि आपके पितृ चीटियों के रूप में आपसे मिलने आते हैं. ऐसे में आपको चीटियों को आटा खिलाना चाहिए। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।(4)पितृ पक्ष के दौरान अगर घर में लगी तुलसी अचानक से सुखने लगे तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आपके पूर्वज आपके आसपास ही कहीं हैं। तुलसी का सूखना इस बात का भी संकेत है कि आपके पूर्वज किसी बात पर आपसे नाराज हैं. ऐसे में पितरों की शांति के लिए उपाय करने चाहिए।(5)हिंदू मान्यताओं के अनुसार पीपल पर पितरों का भी वास होता है. आपके घर में अगर अचानक से पीपल का पेड़ निकल आए तो यह पितरों के आसपास मौजूद होने का संकेत होता है। ऐसे में आपको पीपल पर जल अर्पित करना चाहिए और पितृ दोष से मुक्ति के लिए उपाय करने चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पितृपक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2023 पर विशेष।श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में धरती पर आते हैं और श्राद्ध को ग्रहण कर हमें आशीर्वाद देते हैं।

About author

kishan bhavnani

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 

किशन सनमुख़दास भावनानी 

Related Posts

Kitne ravan jalayenge hum by Jay shree birmi

October 23, 2021

कितने रावण जलाएंगे हम? कईं लोग रावण को महान बनाने की कोशिश करतें हैं,यह कह कर माता सीता के हरण

Rista me chhal by Jayshree birmi

October 22, 2021

 रिश्ता में छल कुछ दिन पहले गांधीनगर गुजरात  के मंदिर की गौ शाला में किसी का १० माह के बालक

Sharad purinima by Jay shree birmi

October 22, 2021

 शरद पूर्णिमा अपने देश में ६ ऋतुएं हैं और हर ऋतु का अपना महत्व हैं।जिसमे बसंत का महत्व ज्यादा ही

Gujrat me 9 ratein by Jay shree birmi

October 22, 2021

 गुजरात में नौ रातें  हमारा देश ताहेवारों का देश हैं ,तहवार चाहे हो ,सामाजिक हो या धार्मिक हो हम देशवासी

Khud ko hi sarvshreshth na samjhe by Sudhir Srivastava

October 22, 2021

 खुद को ही सर्वश्रेष्ठ न समझें                         ✍ सुधीर

Kitne ravan jalayenge hum ? By Jayshree birmi

October 15, 2021

 कितने रावण जलाएंगे हम? कईं लोग रावण को महान बनाने की कोशिश करतें हैं,यह कह कर माता सीता के हरण

Leave a Comment