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शिक्षा एक अलग जीवन का प्रवेश द्वार है-किशन सनमुखदास भावनानी

शिक्षा एक अलग जीवन का प्रवेश द्वार है! बच्चों के जीवन के शुरुआती वर्षों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आगे चलकर बच्चों …


शिक्षा एक अलग जीवन का प्रवेश द्वार है!

शिक्षा एक अलग जीवन का प्रवेश द्वार है
बच्चों के जीवन के शुरुआती वर्षों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आगे चलकर बच्चों की क्षमता को कई तरह से प्रभावित करती है

सभी बच्चों के शुरुआती बचपन की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है – किशन भावनानी गोंदिया

 – आज के बच्चे हमारे कल के सुनहरे भारत की नीव और भविष्य हैं। साथियों बच्चा जब इस अनमोल प्राकृतिक सृष्टि में जन्म लेता है चाहे वह लड़का हो या लड़की, दोनों की एक जैसी शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक जरूरतें होती हैं। सीखने की क्षमता दोनों में बराबर होती है। दुलार, ध्यान और बढ़ावे की जरूरत दोनों को होती है। उस दिन से, दोनों माता-पिता के साथ ही परिवार के दूसरे सदस्यों को भी बच्चों की देखभाल में शामिल किये जाने की ज़रूरत है। पिता की भूमिका खास तौर पर महत्वपूर्ण होती है। पिता प्यार, लगाव और उत्तेजना पाने की बच्चे की जरूरतें पूरी करने के प्रयास को सुनिश्चित कर सकता है कि बच्चे को अच्छी शिक्षा, अच्छा पोषण मिले और उसकी सेहत की सही देखभाल हो। पिता सुरक्षित और हिंसा से मुक्त वातावरण को भी सुनिश्चित कर सकता है। पिता घरेलू काम में भी हाथ बंटा सकता है, खास कर तब जब मां बच्चे को दूध पिला रही हो। साथियों बात अगर हम बच्चों के शिक्षा की करें तो शिक्षा एक अलग जीवन का प्रवेश द्वार है!!! बच्चों के जीवन की शुरुआती वर्षों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आगे चलकर बच्चों की क्षमता को कई तरह से प्रभावित करती है!!! साथियों वैसे सभी बच्चों के शुरुआती बचपन की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच एक मौलिक अधिकार भी है। साथियों बात अगर हम एक छोटे के गांव, शहर और मेट्रोसिटी के प्राथमिक स्कूलों की करें तो इन तीनों कैटेगरी में हमें अलग-अलग फर्क महसूस होगा जहां गांव में बच्चा एक अपूर्ण बुनियादी ढांचे में अपनी पढ़ाई करते हैं, वही शहरों और मेट्रोसिटी में प्री प्ले क्लास से लेकर आगे की कक्षाओं में निजी संचालित स्कूलों में बेहद आधुनिक बुनियादी ढांचे में शिक्षा ग्रहण करते हैं!!! यही कारण है कि बच्चा ज़ब आगे की क्लास के लिए गांव से शहर, मेट्रोसिटी में आते हैं तो पहले से शिक्षा में पिछड़े और पिछड़े हो जाते हैं क्योंकि कारण यह है कि उन बच्चों को शुरुआती बचपन की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच नहीं हो पाई, जो आगे चल कर बच्चों की क्षमता को कई तरह से प्रभावित करती है!! इसलिए हम देखते हैं कि उच्च शिक्षा डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, आईएएस आईपीएस परीक्षाओं के लिए तो मेट्रोसिटी में विद्यार्थी आते ही हैं परंतु आज प्राथमिक शिक्षा भी शहरों और मेट्रोसिटी में दिलाने की माता-पिता की कोशिश रहती है!!! जिससे गरीब परिवार पूर्ण नहीं कर पाते इसलिए, अब समय आ गया है कि गांवों और छोटे शहरों में भी बच्चों की शुरुआती शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण देने का मौलिक अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए जिसके लिए शिक्षा की आधुनिक सुविधाओं को गांव तक पहुंचाने मज़बूत रणनीतिक रोडमैप बनाने की ज़रूरत है। साथियों दिनांक 16 दिसंबर 2021 को पीएमकी आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसीपीएम) भारत में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट जारी की जिसमें एक बच्चे के समग्र विकास में शिक्षा के शुरुआती वर्षों के महत्व को रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और निपुण भारत के दिशा निर्देशों की भूमिका को भी रेखांकित किया गया है। साथियों बात अगर हम पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा दिनांक 16 दिसंबर 2021 को इस संबंध में जारी रिपोर्ट की करें तो पीआईबी के अनुसार, शुरुआती बचपन की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच सभी बच्चों का एक मौलिक अधिकार है। एक बच्चे के जीवन के शुरुआती वर्षों को उनके सामने आने वाली सामाजिक आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और तकनीकी बाधाओं की पृष्ठभूमि में समझने की ज़रूरत है, जो आगे चलकर बच्चे की क्षमता को कई तरह से प्रभावित करते हैं। इस अवसर पर आयोजित पैनल चर्चा के दौरान ईएसी-पीएम के ने कहा,शिक्षा सकारात्मक बहिर्भावों की ओर ले जाती है और विशेष रूप से शुरुआती वर्षों के दौरान दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। उपचारात्मक कार्रवाई के लिए साक्षरता और संख्यात्मकता में मौजूदा योग्यताओं और राज्यों के बीच विविधताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता सूचकांकइस दिशा में पहला कदम है, जो भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 10 साल से कम उम्र के बच्चों में बुनियादी शिक्षा की समग्र स्थिति की समझ पैदा करता है। इस सूचकांक में 41 संकेतकों वाले पांच आधार शामिल हैं। ये पांच आधार हैं – शैक्षणिक बुनियादी ढांचा, शिक्षा तक पहुंच, बुनियादी स्वास्थ्य, सीखने के परिणाम और शासन। वहीं, भारत सतत विकास लक्ष्यों- 2030 को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। शून्य भूख, अच्छा स्वास्थ्य व कल्याण और शिक्षा तक पहुंच विशिष्ट लक्ष्य हैं, जिनका मापन बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता सूचकांक के साथ किया गया है। एक बच्चे की मजबूत बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) कौशल विकसित करने की जरूरत है। एफएलएन बुनियादी पढ़ने, लिखने और गणित कौशल के बारे में है। शुरुआती शिक्षा के वर्षों में पिछड़ना, जिसमें प्री-स्कूल और प्राथमिक शिक्षा शामिल है, बच्चों को अधिक कमजोर बनाते हैं, क्योंकि यह उनके सीखने के परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। सीखने के बुनियादी वर्षों से संबंधित मौजूदा मुद्दों के अतिरिक्त कोविड-19 महामारी ने भी बच्चे की समग्र शिक्षा में प्रौद्योगिकी के महत्व को रेखांकित किया है। इसे देखते हुए भारत में पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक कक्षाओं में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी बच्चों की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी शिक्षा पर ध्यान देना इस समय की जरूरत है। पूरे भारत में राज्यों के विकास के विभिन्न स्तरों और उनके बच्चों की अलगअलग जनसंख्या आकार को देखते हुए, बेहतर विश्लेषण प्राप्त करने में सहायता के लिए राज्यों को विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत किया गया। पूरे देश में विभिन्न राज्यों को उनकी बाल जनसंख्या यानी दस वर्ष और उससे कम आयु के बच्चे के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। कुछ राज्य खास पहलुओं में दूसरों के लिए रोलमॉडल के रूप में काम कर सकते हैं, लेकिन उन्हें भी अपनी चुनौतियों का समाधान करते हुए अन्य राज्यों से सीखने की जरूरत है। यह बात न केवल अच्छा प्रदर्शन करने वालों के लिए बल्कि खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों पर भी लागू होता है। उदाहरण के लिए, छोटे राज्य में केरल का सबसे अच्छा प्रदर्शन है, लेकिन यह कुछ कम अंक वाले राज्यों से भी सीख सकता है, जैसे कि आंध्र प्रदेश (38.50), जिसका शिक्षा तक पहुंच के मामले में केरल (36.55) से बेहतर प्रदर्शन है।शिक्षा तक पहुंच एक ऐसा मुद्दा है, जो राज्यों की ओर से त्वरित कार्रवाई की मांग करता है। बड़े राज्यों जैसे कि राजस्थान (25.67),गुजरात (22.28) और बिहार (18.23) का प्रदर्शन औसत से काफी नीचे है। वहीं, पूर्वोत्‍तर राज्यों को उनके बेहतर प्रदर्शन के चलते उच्चतम अंक प्राप्त हुए हैं। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि शिक्षा एक अलग जीवन का प्रवेश द्वार है!!! बच्चों के जीवन के शुरुआती वर्षों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आगे चलकर बच्चों की क्षमता को कई तरह से प्रभावित करती है तथा सभी बच्चों के शुरुआती बचपन की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है।

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र


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