Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Laxmi Dixit, lekh

विपासना: बोधि का ध्यान | 10 days of vipasna review

विपासना: बोधि का ध्यान | 10 days of vipasna review  कुछ दिनों पूर्व विपासना के अंतरराष्ट्रीय केंद्र धम्मगिरी, इगतपुरी में …


विपासना: बोधि का ध्यान | 10 days of vipasna review 

विपासना: बोधि का ध्यान | 10 days of vipasna review

कुछ दिनों पूर्व विपासना के अंतरराष्ट्रीय केंद्र धम्मगिरी, इगतपुरी में 10 दोनों का कोर्स करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ध्यान साधना तो मैं बचपन से करती थी परंतु इस वर्ष मां के देहांत के कारण जीवन में एक एकांत उतर आया था और दीवाली जैसे बड़े त्यौहार पर घर में रहने को मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था। एक फेलो राइटर ने विपासना ध्यान के बारे में सुझाया और इसके केंद्रों के बारे में बताया। फिर मैंने इंटरनेट खंगाला तो मुझे विपासना कोर्सेज और इसके केंद्र कहां-कहां है के बारे में काफी जानकारी प्राप्त हुई। मैंने विपासना के इंटरनेशनल केंद्र धम्मगिरी, इगतपुरी के लिए फॉर्म भरा और सौभाग्यवश मुझे कंफर्मेशन ईमेल भी आ गया। मैंने झटपट अपनी पैकिंग पूरी कर ली और निश्चित दिवस पर ट्रेन पकड़ ली। ग्वालियर से इगतपुरी के लिए डायरेक्ट ट्रेन नहीं थी इसलिए मुझे नासिक रोड स्टेशन उतरना पड़ा और वहां से इगतपुरी की ट्रेन पकड़नी पड़ी। ध्यान कि नई तकनीक के बारे में जानने का एक अलग ही रोमांच था मन में। वहां पहुंचकर वहां के साफ-सुथरे वातावरण को देखकर एक अलग ही एहसास हुआ जो शहरों की धूल-धक्कड़ और प्रदूषण के आदी हो चुके मेरे फेफड़ों के लिए मानो एक संजीवनी हो ऐसा लगा। मनोहर वातावरण, चारों ओर पेड़ पौधे, स्वच्छ जलवायु और साधना के कठोर नियम (पंचशील) जिन्हें 10 दिनों तक यथावत पालन करना था। वहां पर स्त्री-पुरुष का संपूर्ण सेग्रीगेशन था और महिलाओं को तंग कपड़े पहनने की मनाही थी और दुपट्टा रखना अनिवार्य था। कोर्स की अवधि तक आर्यमौन का पालन करना था अर्थात ना तो अपनी वाणी से ना इशारों से किसी से कम्युनिकेट कर सकते थे।

प्रातः 4:00 बजे घंटा बजता था और 4:30 बजे हमें ध्यान हाल में सामूहिक ध्यान के लिए जाना होता था जो विभिन्न चरणों में होते हुए रात को 9:00 बजे (12 घंटे)समाप्त होता था। सुबह 6:30 बजे नाश्ता, 11:00 बजे लंच और 5:00 बजे हल्के-फुल्के स्नैक्स दिया जाता था जो की न्यू स्टूडेंट्स को मिलता था जबकि पुराने स्टूडेंट्स को शाम के स्नेक्स की जगह लेमन वॉटर या टी उपलब्ध होती थी। शाम को गुरुजी श्री सत्यनारायण गोयनका जी का प्रवचन होता था जो की हाल में स्क्रीन पर प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया जाता था। यूं तो विपासना के बारे में मैंने इंटरनेट पर काफी सर्च किया था लेकिन वो कहते हैं ना की अनुभव बड़ी चीज है और इसीलिए तो मैं यहां आई थी और गुरुजी के प्रवचनों से भी मुझे यही ज्ञात हुआ। विपासना जो बुद्ध का ध्यान या निर्वाण का मार्ग है ढाई हजार वर्ष पहले भारत से यह विद्या बर्मा (म्यांमार) पहुंची। भारत में तो यह विद्या लुप्त ही हो गई लेकिन बर्मा ने इसे सहेजे रखा और फिर वहां से आधुनिक काल में इस विद्या को भारत में फिर से जीवंत करने का श्रेय श्री सत्य प्रकाश गोयनका जी को ही जाता है।

यूं तो शुरुआत के कुछ दिन मेरे लिए बहुत कष्टप्रद रहे थे इसलिए नहीं कि मुझे ध्यान करने में कोई अरुचि या कठिनाई थी बल्कि इसलिए कि मेरे जैसे आस्तिक जिसकी सुबह ही भगवती का स्मरण करने से होती है और वहां का माहौल जहां किसी भी सांप्रदायिक गतिविधि का पूर्णता प्रतिबंध है ढल पाना थोड़ा कठिन तो था ही। लेकिन आचार्य से बात करने पर उन्होंने कहा कि आप दस दिनों तक अपने धार्मिक आस्था और इनसे जुड़े प्रतीक चिन्ह (माला, धागा, गंडा, ताबीज़)को स्वयं से दूर रखिए। दस दिनों तक स्वयं को पूर्णता इस ध्यान में न्योछावर कर दीजिए और दस दिनों के बाद यदि आपको लगे तो आप मुक्त होंगे अपनी धार्मिक मान्यताओं को यथावत जारी रखने के लिए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आप अपनी धार्मिक मान्यताओं को यहां फॉलो करेंगे तो दूसरे धर्म के लोग भी यही करने को कहेंगे। इससे यहां का माहौल सामूहिक ध्यान का नहीं बल्कि सांप्रदायिक कर्म काण्डों में बट जाएगा। मैंने उनकी बात मानी और स्वयं को इस दस दिनों के कोर्स पर पूर्णतया समर्पित कर दिया।

गुरुजी अपने डिस्कोर्स में रोज कहते थे की मान्यताओं, कल्पनाओं से भी बड़ी अनुभूति होती है। यहां हम शरीर की संवेदनाओं को अपने अनुभव में लाते हैं। कोई कह सकता है कि शरीर तो जड़ वस्तु है जिसका नाश एक दिन होना ही है फिर इस पर क्यों ध्यान लगाना। लेकिन इस जड़ वस्तु से ही तो बंधन होता है जब इस जड़ को समझ लेंगे, विकारों से उत्पन्न हुई संवेदनाओं को पहचानेंगे तभी तो बंधन से मुक्त होकर अद्वैत को समझ पाएंगे।

कोर्स का समापन मैत्री दिवस के साथ हुआ और आर्य मौन टूटा। भारत के विभिन्न प्रांतो और विभिन्न देशों से आए साधकों ने ध्यान के अपने अनुभवों को साझा किया और जीवन एक नए स्पंदन और स्फूर्ति से भर उठा। यहां मैं यह बता दूं कि विपासना का यह कोर्स पूर्णता निःशुल्क है जिसमें खाना-पीना और रहना भी शामिल है। इन कोर्सेज का संचालन पूर्णता सेवा भाव से होता है। यहां तक की आचार्य भी कोई पारिश्रमिक नहीं लेते। आपको डोनेशन के लिए बाध्य नहीं किया जाता। लेकिन अगर आपको सचमुच यहां से कोई लाभ मिला है तो आपको डोनेशन करना चाहिए क्योंकि किसी पुराने छात्र ने भी तो डोनेशन की होगी जिसका लाभ आपको मिला इसलिए आपको भी इस श्रृंखला को बनाए रखना चाहिए।
© लक्ष्मी दीक्षित

About author 

Laxmi Dixit
लक्ष्मी दीक्षित
(लेखिका, आध्यात्मिक गाइड)

Related Posts

kavi hona saubhagya by sudhir srivastav

July 3, 2021

कवि होना सौभाग्य कवि होना सौभाग्य की बात है क्योंकि ये ईश्वरीय कृपा और माँ शारदा की अनुकम्पा के फलस्वरूप

patra-mere jeevan sath by sudhir srivastav

July 3, 2021

पत्र ●●● मेरे जीवन साथी हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास

fitkari ek gun anek by gaytri shukla

July 3, 2021

शीर्षक – फिटकरी एक गुण अनेक फिटकरी नमक के डल्ले के समान दिखने वाला रंगहीन, गंधहीन पदार्थ है । प्रायः

Mahila sashaktikaran by priya gaud

June 27, 2021

 महिला सशक्तिकरण महिलाओं के सशक्त होने की किसी एक परिभाषा को निश्चित मान लेना सही नही होगा और ये बात

antarjateey vivah aur honor killing ki samasya

June 27, 2021

 अंतरजातीय विवाह और ऑनर किलिंग की समस्या :  इस आधुनिक और भागती दौड़ती जिंदगी में भी जहाँ किसी के पास

Paryavaran me zahar ,praniyon per kahar

June 27, 2021

 आलेख : पर्यावरण में जहर , प्राणियों पर कहर  बरसात का मौसम है़ । प्रायः प्रतिदिन मूसलाधार वर्षा होती है़

Leave a Comment