Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Bhawna_thaker, poem

मुस्कान के मरहम से नासूरों को सजाती हूँ”

मुस्कान के मरहम से नासूरों को सजाती हूँ सुकून को संभालना आसान नहीं बड़े नाज़ों से पालती हूँ, ज़ख़्मों के …


मुस्कान के मरहम से नासूरों को सजाती हूँ

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

सुकून को संभालना आसान नहीं बड़े नाज़ों से पालती हूँ, ज़ख़्मों के दर्द को नज़र अंदाज़ करते प्यार से पुचकारती हूँ..

जब प्रतित होती है ज़िंदगी की चुनौतियां दम ब दम, तब खंगालती हूँ हौसलों का दामन और मुस्कान के मरहम से नासूरों को सजाती हूँ..

मेरे विचारों की व्यंजनाएँ मुखर है कल्पित भय पर कोहराम नहीं करती न खुशियों के आगमन पर तांडव, निश्चल है मन की धरा बस आत्म निरिक्षण करती हूँ..

मवाद से भरी उम्र की हाट पर मौन की किरणें मल कर हर तमाशा देखती हूँ, सफ़र आसान करते आँखें मूँद लेती हूँ..

हारता है धैर्य का बवंडर तब चिट्टा नहीं देती झूठ का एहसासों को, हकीकत का सामना करते हर घाव का स्वीकार कर लेती हूँ..

स्वप्न के टूटने पर मातम कौन मनाए एक टूटता है तो दूसरे की बुनियाद बुन लेती हूँ , कड़वी है बड़ी कड़वी ज़िंदगी की ड़ली जीभ को वश में रखते हर जंग जीतती हूँ ..

न कृष्ण सी कपटी बन पाई न सीता सी धैर्यवान, महज़ उर्मिला सी सहते बन गई शक्ति का सीधा पर्याय तभी ज़िंदगी को रास आया मेरा अभिमान..

कोई कवच कहाँ कर्ण सा बेचारगी की बयार से जूझते जीना है, न रखते जज़बा जिगर के भीतर साहब तो कब के मर गए होते..

पालती हूँ नखरों को राजकुमारी सा
मस्त मौला सी जीते ज़िंदगी की हर साज़िश को बखूबी मात देती हूँ तब कहीं जाकर सुकून की नींद सोती हूँ..

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

Related Posts

kavita-tufaan by anita sharma

June 6, 2021

  “तूफान” कोरोना का संकट कम था क्या?जो,प्राकृत आपदा टूट पड़ी । कहीं घरों में पानी घुसा,कहीं आँधी से वृक्ष

kavita- sab badal gya by jitendra kabir

June 6, 2021

सब बदल गया है आजादी के परवानों ने कुर्बान किया खुद को जिनकी खातिर, उन आदर्शों के लिए देश के

kavita sangharsh by mosam khan alwar

June 6, 2021

संघर्ष संघर्ष है जिसके जीवन में उसे जीवन का सार हैनित जीवन में करते हम संघर्ष जीवन का आधार हैउठ

Kavita-paap nhi hai pyar by devendra arya

June 6, 2021

 पाप नहीं है प्यार अपने प्यार को कभी ऐसे नहीं सरापते हज़ूर कि श्राप लग जाए पूछ पछोर कर नहीं

kavita aurat paida hoti hai | aurat par kavita

June 4, 2021

औरत पैदा होती है बनाई नहीं जाती सूत दो सूत का अंतर रहा होगा दोनों बच्चों मेंडील डौल कपड़े लत्ते

kavita vyavstha samrthak baniye by jitendra kabir

June 4, 2021

 व्यवस्था समर्थक बनिए व्यवस्था पर कोई भी आरोप लगाने से पहले सौ बार सोच लीजिए ( चाहे वो सही क्यों

Leave a Comment