Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Dr_Madhvi_Borse, poem

मसूरी-जन्नत सा शहर-डॉ. माध्वी बोरसे!

मसूरी-जन्नत सा शहर! मसूरी भारत देश के उत्तराखंड राज्य का एक पर्वतीय नगर, बहुत सुहावने मौसम का अनुभव देती है …


मसूरी-जन्नत सा शहर!

मसूरी-जन्नत सा शहर-डॉ. माध्वी बोरसे!
मसूरी भारत देश के उत्तराखंड राज्य का एक पर्वतीय नगर,

बहुत सुहावने मौसम का अनुभव देती है यहां के हवाओ की लहर,
इसके दूसरे भाग से, यमुना नदी भी आती है नजर,
काफी सुंदर है यह, जन्नत सा शहर!

यहां सबसे ऊॅंची चोटी पर रोप-वे द्वारा जाने का हे अलग सा असर,
यहां के रोमांच को देखने के लिए, चलते चलते, हम जाते हैं ठहर,
देख सकते हैं पार्क में, वन्य प्राणी जैसे घुरार, हिमालयी मोर, मोनल,कण्णंकर, 

 काफी आकर्षित है यह,जन्नत सा शहर!

यह स्थल समुद्रतल से लगभग हे, 4500 फुट की ऊंचाई पर,
यहां झरना पांच अलग-अलग धाराओं में बहता है दूर स्थित 15 किलोमीटर,
टूर पर जाते हैं लोग, जब भी मिलता है उन्हें यह अवसर,
काफी सौंदर्य से भरा हुआ है, मसूरी जन्नत सा शहर!

नैनबाग और कैम्पटी की कुल 62 कि॰मी॰ की दूरी को करता है कवर,
मसूरी-नागटिब्बा से हिमालय की चोटियां का शानदार दृश्य को देखकर,
कहेंगे आप भी, यह है कितना मनमोहक और सुंदर,
शांति और प्रकृति प्रेम, से भरा है,मसूरी जन्नत सा शहर!!

डॉ. माध्वी बोरसे!
( स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)


Related Posts

रसेल और ओपेनहाइमर

रसेल और ओपेनहाइमर

October 14, 2025

यह कितना अद्भुत था और मेरे लिए अत्यंत सुखद— जब महान दार्शनिक और वैज्ञानिक रसेल और ओपेनहाइमर एक ही पथ

एक शोधार्थी की व्यथा

एक शोधार्थी की व्यथा

October 14, 2025

जैसे रेगिस्तान में प्यासे पानी की तलाश करते हैं वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं। अब

खिड़की का खुला रुख

खिड़की का खुला रुख

September 12, 2025

मैं औरों जैसा नहीं हूँ आज भी खुला रखता हूँ अपने घर की खिड़की कि शायद कोई गोरैया आए यहाँ

सरकार का चरित्र

सरकार का चरित्र

September 8, 2025

एक ओर सरकार कहती है— स्वदेशी अपनाओ अपनेपन की राह पकड़ो पर दूसरी ओर कोर्ट की चौखट पर बैठी विदेशी

नम्रता और सुंदरता

नम्रता और सुंदरता

July 25, 2025

विषय- नम्रता और सुंदरता दो सखियाँ सुंदरता व नम्रता, बैठी इक दिन बाग़ में। सुंदरता को था अहम स्वयं पर,

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

Next

Leave a Comment