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भारत का सर्वजन सुखिनों भवन्तु में विश्वास

भारत का सर्वजन सुखिनों भवन्तु में विश्वास भारतीय सभ्यता संस्कृति का निर्मल भाव विश्व के सभी प्राणी सुखी, निरोगी, मित्रता …


भारत का सर्वजन सुखिनों भवन्तु में विश्वास

भारत का सर्वजन सुखिनों भवन्तु में विश्वास
भारतीय सभ्यता संस्कृति का निर्मल भाव

विश्व के सभी प्राणी सुखी, निरोगी, मित्रता भाव से रहें, जीवन में कभी दुखी ना हो, युद्ध ना हो

भारतीय श्लोक भावार्थ के विचारों को विश्व रेखांकित करें तो, युद्ध क्या मनमुटाव भी नहीं होंगा, सौहार्द्रयता बढ़ेगी- संवाद से काम बनेगा- एड किशन भावनानी गोंदिया

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर सभी देश हजारों वर्ष पूर्व की भारतिया संस्कृति, सभ्यता से अचंभित व आकर्षित हैं कि इतने विशाल स्तरपर संस्कृति सभ्यता प्राकृतिक ख़जाना, भारतीय रहन-सहन, आयुर्वेद, धार्मिक आस्था, सहिष्णुता, सर्वधर्म हिताय सर्वजन सुखाय, धर्मनिरपेक्षता सहित अगर वैश्विक तुलना में गुण गिरने लगे तो यह गिनती पूरी नहीं होगी इतनी विशाल सभ्यता का धनी है भारत मेरा देश।
साथियों बात अगर हम भारतीय मिट्टी में जन्मे भारतीय नागरिकों की करें तो उपरोक्त सैकड़ों, हजारों गुण भारत की मिट्टी से जन्म से ही शरीर में प्राकृतिक रूप से समा जाते हैं इसलिए भारतीय विश्व में सबसे महत्वपूर्ण मानवीय संस्कारों का धनी है। जो पारिवारिक रिश्तो, मानवता, कर्तव्य पथ, रीति रिवाज, मर्यादाओं का सम्मान करता है इसका मूल्यांकन भारतीय मानव के लिए सर्वश्रेष्ठ है।हालांकि कुछ अपवादों को हम छोड़ दें तो भारत का विश्वास सर्वजन सुखिनो भवन्तु पर सबसे अधिक है।
साथियों बात अगर हम सर्वजन सुखिनो भवन्तु श्लोक के अभिप्राय की करें तो, देवभाषा संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ यह है कि संसार के समस्त प्राणी (पशु, पक्षी, मनुष्य समेत) सुखी रहे वे रोगों से दूर रहे तथा सभी के मंगल अवसरों के सहभागी बने तथा कोई भी दुःख का भागी ना बने। अशांति और भय के युग में जी रहे संसार की समस्त तकलीफों का समाधान इसी भाव में निहित हैं। यदि हम अपने परम पिता परमेश्वर से सभी के कल्याण हेतु प्रार्थना करे तो निश्चय ही कोई दीन दुखी नहीं रहेगा। प्रार्थना सर्वाधिक शक्तिमान है यदि वह समवेत स्वर में हो तो ईश्वर द्वार अवश्य सुनी जाती हैं। भारतीय न कभी उन लोगों को पराया समझा जो हमसे अलग दीखते है, अलग रहते और अलग विचार हैं। भारत ने समस्त संसार को अपना परिवार मानकर सभी के सुखी और निरोगी होने की कामना की हैं. सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत् ॐ शांतिः शांतिः शांतिः की सोच उन सभी संकीर्ण मतों को निरुतर कर देता है जो उन्हें मानने वालों को स्वर्ग सुख और नाना प्रकार के सपने दिखाता है जबकि न मानने वालों को मारे जाने योग्य बता देता हैं।
साथियों बात अगर हम भारतीयों के स्वभाव की करें तो करीब-करीब हर भारतीय शांतिप्रिय है। अगर कोई समस्या उत्पन्न होती है तो शांतिपूर्ण ढंग से समाधान की पहल करते हैं। कोई भी किसी को दुखी करने, छीनकर, दबाव, तनाव, आक्रमण, युद्ध से बात नहीं मनवाते याने भारतीय सभ्यता, संस्कृति का भाव ही है कि विश्व के सभी प्राणी सुखी,निरोगी मित्रता के भाव से रहें और जीवन में कभी दुख ना आए युद्ध ना हो।
साथियों बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष में यूक्रेन-रूस युद्ध की करें तो जिस प्रकार की जीवहानि और नुकसान टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा है तो बुजुर्गों सहित हमारे युवा साथी भी अचंभित और दुख से पसीज़ गए हैं क्योंकि ऐसे विनाश का मंजर हमने देखा नहीं है भारतीयों का मन दयालु, भावपूर्ण है वह किसी का दुख देख नहीं सकते ईश्वर अल्लाह पर अधिक विश्वास करने वाले सबसे अधिक आध्यात्मिक भारतीय नागरिक ही हैं। मेरा मानना है कि भारतीय श्लोक भावार्थ के विचारों को विश्व रेखांकित करें तो, युद्ध क्या मनमुटाव भी नहीं होंगा, सौहाद्रता बढ़ेगी, संवाद से काम बनेगा।
साथियों बात अगर हम भारतीयों के ह्रदय भाव की करें तो उनका कोमल ह्रदय में भाव उमड़ता है कि समस्त जीव उसी ब्रह्म की संताने है, अपनी अज्ञानता के चलते वह एक ही पिता की संतानों में भेद कर अपने पिता को भूलकर मायाजाल में भ्रमित हो जाते हैं। अपनी इस भूल के चक्कर में वह कष्ट पाते भी है और अन्यों को कष्ट देता भी हैं। अथर्ववेद में उल्लेखित इस भावना को हम अपने ह्रदय में जगाए तथा समस्त आपसी भेदो को भूलकर सभी के भले की कामना करे तो निश्चय ही पिता प्रसन्न होगा चाहे कोई उसे किसी रूप में मानता हैं और मनमुटाव तथा युद्ध की भावना का अंश भी हमारे मस्तिष्क में नहीं आएगा।
साथियों बात अगर हम माननीय पूर्व राष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी कहा कि, भारत को कभी विश्वगुरु के नाम से जाना जाता था, जो हमेशा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करता था और कभी किसी देश पर हमला नहीं करता था। उन्होंने कहा, हम सर्व जन सुखिनो भवन्तु में विश्वास करते हैं और साझा करना व देखभाल करना भारतीय दर्शन के मूल में है। भारत को एक विशेष स्थान बताते हुए उन्होंने कहा, अपनी सांस्कृतिक व भाषाई विविधता, सुंदर भव्यता और यहां के लोगों की गर्मजोशी व आतिथ्य के साथ मेरे हृदय में हमेशा एक विशेष स्थान रहा है। प्राकृतिक सुंदरता, व्यापक वन क्षेत्र, वनस्पतियों व जीवों की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ भारत के पर्यटन स्थलों के शीर्ष पर बना हुआ है
साथियों बात अगर हम भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संवाद मंत्र को वर्तमान यूक्रेन-रूस युद्ध में तलाशने की कोशिश करें तो हमें दिख रहा है कि,वसभी परिस्थितियों के बावजूद क्या ये हो सकता है कि अब भी एक संभावित कूटनीतिक हल निकले?संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने कहा है कि, लड़ाई चल रही है, लेकिन बातचीत का रास्ता हमेशा खुला होता है। बातचीत चल रही है, फ़्रांस के राष्ट्रपति ने रूसी राष्ट्रपति से फ़ोन पर बात की है। राजनयिकों का कहना है कि बातें रूस तक पहुंचाई जा रही हैं, और आश्चर्यजनक रूप से, बेलारूस की सीमा पर रूस और यूक्रेन के अधिकारियों की मुलाक़ात हुई है, शायद आगे कुछ और न हुआ हो, लेकिन लगता है कि, बातचीत के लिए तैयार होकर पुतिन ने कम-से-कम युद्ध-विराम की संभावनाओं को स्वीकार किया है।
अहम सवाल ये है कि क्या पश्चिम के राजनयिक एक ऑफ़ रैंप का प्रस्ताव देंगे, यानी एक ऐसा तरीका जिसमें सभी पक्ष जंग के रास्ते से हट जाएं, राजनयिकों का कहना है कि यह महत्वपूर्ण है कि पुतिन को पता है कि पश्चिम के प्रतिबंधों को हटाने के लिए क्या करना होगा तो अपना चेहरा बचाने के लिए एक डील की संभावना बन सकती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय सभ्यता संस्कृति का निर्मल भाव भारत का सर्वजन सुखिनो भवन्तु में विश्वास है। विश्व के सभी प्राणी सुखी, निरोगी, मित्रता भाव से रहें,जीवन में कभी दुखी ना हो युद्ध ना हो! तथा भारतीय श्लोक भावार्थ के विचारों को विश्व रेखांकित करें तो युद्ध क्या मनमुटाव भी नहीं होंगे सौहार्द्रयता बढ़ेगी संवाद से काम बनेगा।

About author

kishan bhavnani

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 

किशन सनमुख़दास भावनानी 
 गोंदिया महाराष्ट्र

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