ठिठुरता ठंड
सिसकती रही यादें
ठिठुरते हुए ठंड की
आ गयी बर्फीली सी
जर्रा -जर्रा हिलाने
थरथराती जवानी
साज बाज के साथ
धरा अंबर थर्राने
भी लगे है शरमाने
मुँह छुपाकर देखो
सूरज दादा ने भी
टेक दिए हैं घुटने
किस तरह बिछी है
राहें चौराहे पगडंडी
बहती हवाएँ नर्तकी
प्रचण्ड रूप दिखाती
ठंड भरी ये जवानी।





