Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

जीव जीवनम् कृषि

जीव जीवनम् कृषि जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है – मानव का भाग्य और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी …


जीव जीवनम् कृषि

- एड किशन भावनानी

जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है – मानव का भाग्य और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर निर्भर है

माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथव्या – भूमि मेरी माता है मैं भूमि का पुत्र हूं – मनीषियों को यह श्लोक अपने जीवन में रेखांकित कर भूमि की सेवा, संरक्षण करना समय की मांग – एड किशन भावनानी

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत प्राकृतिक संसाधनों में सर्वगुण संपन्न वाला एक ऐसा अनोखा देश है जहां सृष्टि की की अपार रहमत बरसी है। बस!! जरूरत है हमारे अपार समृद्ध जनसांख्यिकीय तंत्र को अपनी विश्व प्रतिष्ठित बौद्धिक क्षमता, कौशलता का उपयोग कर इन्हें विलुप्तता या नष्ट होने से बचाएं!! क्योंकि जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है, उससे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए विपत्तियों की स्थिति पैदा कर रहे हैं।
आज हमें सबसे अधिक संरक्षरण की जरूरत जल, भूमि और मिट्टी की है और उस भूमि, मिट्टी में हमारी कृषि होती है इसलिए श्लोकों में भी आया है जीव जीवनम् कृषि अर्थात जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है क्योंकि मानव का भाग्य और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर निर्भर है।
साथियों बात अगर हम भारत में भूमि की करें तो हम उसे अपनी माता मानते हैं इसलिए श्लोक में आया है कि माता भूमि: पुत्रो अहम पृथव्या – अर्थात भूमि हमारी माता है और मैं भूमि का पुत्र हूं इसलिए यह श्लोक मनीषियों को अपने जीवन में रेखांकित कर भूमि की सेवा और संरक्षण करना वर्तमान समय की मांग है क्योंकि इस भूमि से हमारी कृषि जुड़ी हुई है वैसे भी भारत एक कृषि प्रधान देश है और 70 फ़ीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है इसलिए भूमि की रक्षा, सेवा, संरक्षण करना हर भारतीय का परम कर्तव्य है इसमें हम अन्नदाता द्वारा कृषि के रूप में किए गए यज्ञ में अपने सहयोग रूपी आहुति समझना हम आध्यात्मिक रूपी मनीषियों के लिए बेहतर होगा।
साथियों बात अगर हम घटती कृषि भूमि,बढ़ते भूमि क्षरण, पड़ित भूमि, शहरीकरण, वनों की कटाई, प्रदूषण जैसे अनेक मुद्दों की करें तो हालांकि सरकार द्वारा इन्हें रेखांकित कर उस अनुरूप अपने रणनीतिक रोडमैप बनाकर क्रियान्वयन करने के क्रम पर कार्य शुरू है और कृषि मंत्रालय सहित अनेक संबंधित मंत्रालयों द्वारा समय-समय पर अनेक वेबीनार, अंतरराष्ट्रीय सम्मिट, सेमिनार, कृषि विशेषज्ञों की सेवाएं लेना इत्यादि क्रम किया जाता है परंतु हमें इस क्षेत्र के लिए तात्कालिक प्रौद्योगिकी की सेवाओं से जल, भूमि और मिट्टी को संरक्षित करने को रेखांकित करना होगा।
साथियों बात अगर हम दिनांक 2 मई 2022 को माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी कहा, यह समझना होगा कि प्राकृतिक स्रोत जैसे जल, मिट्टी, भूमि अक्षय नहीं हैं, न ही इन्हें फिर से बनाया जा सकता है। मानव का भाग्य और भविष्य इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर ही निर्भर है।
वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार देश के अधिकांश राज्यों में अधिकांश भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। देश के एक बड़े भाग में, विशेषकर पश्चिमी और दक्कन के क्षेत्र में मिट्टी सूख कर रेतीली बन रही है। फसलों की सिंचाई के लिए भूजल का निर्बाध दोहन हो रहा है। भूजल का स्तर नीचे आ गया है और मिट्टी की नमी कम हो गई है जिससे उसके जैविक अवयव समाप्त हो रहे हैं। नमी और सूक्ष्म जैविक पदार्थों की कमी के कारण मिट्टी रेत में बदल रही है।
मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए, प्राकृतिक जैविक खेती आशा की नई किरण है। पारंपरिक ज्ञान के आधार पर स्थानीय संसाधनों, जैसे गोबर, गौ मूत्र आदि की सहायतासे न केवल कृषि की बढ़ती लागत को कम किया जा सकता है बल्कि भूमि की जैविक संरचना को बचाया जा सकता है। देशी खाद और कीटनाशक, पारंपरिक पद्धति से कम लागत में ही बनाए जाते हैं जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
समय के साथ, भूमि की पैदावार को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों, कीटनाशकों आदि की खपत बढ़ती गई है। विगत दशकों में उर्वरक की खपत अस्सी गुना और कीटनाशकों का प्रयोग छह गुना बढ़ा है जिससे कृषि, भूमि क्षरण के दुष्चक्र में फंस गई है और किसान कर्ज़ के। हमारा दायित्व है कि अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ हम धरती माता का भी स्वास्थ्य सुनिश्चित करें। उसकी जैविक उर्वरता बनाए रखें।प्राकृतिक जैविक खेती ही इसका समाधान देती है। यह संतोष का विषय है कि मिट्टी के स्वास्थ्य को बचाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर, आप जैसी संस्थाओं द्वारा गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार द्वारा मिट्टी के स्वास्थ्य को बारह पैमानों पर मापने के लिए, सोइल हेल्थ कार्डस व्यापक पैमाने पर प्रचलित किए गए हैं। मिट्टी की जांच के लिए प्रयोगशालाओं के नेटवर्क का निरंतर विस्तार किया जा रहा है।कृषि हमारी समृद्धि और सम्मान का प्रतीक है। ऋग्वेद में कहा गया है :
कृषिमित कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमान:
कृषि करो और सम्मान के साथ धन अर्जित करो
मुझे विश्वास है कि प्राकृतिक खेती न सिर्फ हमारे किसानों के जीवन में समृद्धि लाएगी बल्कि धरती माता को सम्मान और स्वास्थ्य भी प्रदान करेगी।
मानव समाज का निर्माण, कृषि के विकास के साथ जुड़ा है। हमारे पर्व, त्योहार, संस्कृति, संस्कार, सभी सदियों तक कृषि केंद्रित रहे हैं। भारतीय शास्त्रों में कहा गया है जीव जीवनम् कृषि:अर्थात जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है।कृषि, हमारी संस्कृति, प्रकृति से अलग नहीं हो सकती।
भारतीय परंपरा में कृषि और ग्रामीण व्यवस्था के ऊपर प्रामाणिक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जैसे: पाराशर कृत कृषि पराशर, पाराशर तंत्र, सुरपाल कृत वृक्षायुर्वेद, मलयालम में परशुराम कृत कृषि गीता, सारंगधर की लिखी उपवनविनोद आदि। हमारे राष्ट्रीय गीत में भी वंदे मातरम् के रूप में धरती माता की वंदना की गई है। उसे सुजलाम सुफलाम अर्थात पावन जल और फल प्रदान करने वाली कहा गया है।
ऐसी धरती की संतान के रूप में, हम उसके स्वास्थ्य, उसके पोषण को कैसे नजरंदाज कर सकते हैं? कृत्रिम रसायन डाल कर, सालों तक उसका दोहन और शोषण कैसे कर सकते हैं! माता के प्रति यह निष्ठुरता, हमारे सनातन संस्कारों के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि कृषि, हमारी संस्कृति, प्रकृति से अलग नहीं हो सकती। उन्होंने कृषि अनुसंधान संस्थानों से, भारतीय परंपरा में कृषि और ग्रामीण व्यवस्था पर लिखे गए प्रामाणिक ग्रंथों जैसे : पाराशर कृत कृषि पराशर, पाराशर तंत्र, सुरपाल कृत वृक्षायुर्वेद, मलयालम में परशुराम कृत कृषि गीता, सारंगधर कृत उपवनविनोद आदि पर शोध करने और किसानों को हमारी प्राचीन कृषि पद्धति से परिचित कराने का आग्रह किया। उन्होंने कृषि विश्विद्यालयों से अपेक्षा की कि वे जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को अपने पाठ्यक्रमों में शामिल करें तथा कृषि के क्षेत्र में इनोवेशन और उद्यमिता को प्रोत्साहित करें।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि जीव:जीवनम् कृषि जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है। मानव का भाग्य और भविष्य जल, भूमि, मिट्टी इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर निर्भर है। माता भूमि: पुत्रो अहम पृथव्या, भूमि मेरी माता है और मैं भूमि का पुत्र हूं। मनीषियों को यह श्लोक अपने जीवन में रेखांकित कर भूमि की सेवा, संरक्षण करना समय की मांग है।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र


Related Posts

Lekh aa ab laut chalen by gaytri bajpayi shukla

June 22, 2021

 आ अब लौट चलें बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी

Badalta parivesh, paryavaran aur uska mahatav

June 12, 2021

बदलता परिवेश पर्यावरण एवं उसका महत्व हमारा परिवेश बढ़ती जनसंख्या और हो रहे विकास के कारण हमारे आसपास के परिवेश

lekh jab jago tab sawera by gaytri shukla

June 7, 2021

जब जागो तब सवेरा उगते सूरज का देश कहलाने वाला छोटा सा, बहुत सफल और बहुत कम समय में विकास

Lekh- aao ghar ghar oxygen lagayen by gaytri bajpayi

June 6, 2021

आओ घर – घर ऑक्सीजन लगाएँ .. आज चारों ओर अफरा-तफरी है , ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत का

Awaz uthana kitna jaruri hai?

Awaz uthana kitna jaruri hai?

December 20, 2020

Awaz uthana kitna jaruri hai?(आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ?) आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ये बस वही समझ सकता

azadi aur hm-lekh

November 30, 2020

azadi aur hm-lekh आज मौजूदा देश की हालात देखते हुए यह लिखना पड़ रहा है की ग्राम प्रधान से लेकर

Previous

Leave a Comment