Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Veena_advani

जितना अधिक इच्छाओं का दिया बलिदान- उतने अधिक बढ़े वृद्धाश्रम

जितना अधिक इच्छाओं का दिया बलिदान- उतने अधिक बढ़े वृद्धाश्रम कामख्या पीठ एवम हरिद्वार के आध्यात्मिक गुरु श्री प्रताप सिंह …


जितना अधिक इच्छाओं का दिया बलिदान- उतने अधिक बढ़े वृद्धाश्रम

कामख्या पीठ एवम हरिद्वार के आध्यात्मिक गुरु श्री प्रताप सिंह जी, द्वारा एक सुसंदेश‌ देती हुई प्रेरणादायक कहानी भेजी गई। जब उस कहानी को पढ़ा तो, मन भावविभोर हो गया। सोचा काश इस कहानी के सभी पात्रों जैसे ही, इस संसार के सभी बच्चे व बड़े हो जाएं तो सच हर कोई इंसान जीतेजी इसी धरा पर ही स्वर्ग की अनुभूति करेगा। हो सकता है कि किसी की समय सीमा समाप्त हो चुकी हो, फिर भी वो इसी स्वर्ग पर जीने की कामना भगवान के समक्ष करेगा। वो कहानी थी ही बहुत सुंदर प्रेरणादायक, कहानी का मुख्य किरदार मात्र एक बच्चा और उसके पिता थे। बच्चा हर बात में पिता के पैसों कि बचत की सोचता कि ये उसके पिता की ईमानदारी की कमाई है। जिसकी कमाई ईमानदारी के चलते चाहे कम ही सही, परंतु है तो ईमानदारी की ही। साथ ही उसके मात-पिता की अपनी इच्छाओं को मार, अपने बच्चे के सुख-सुविधाओं की ओर ही मंडराती नज़र आती हुई प्रतित हुई। यदि इस कहानी में दी गई सीख जो कि एक बच्चा सीख दे रहा है कि हमें अपने माता-पिता के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का अनुचित प्रयोग नहीं करना चाहिए। हर कोई यदि यही सोच रख आगे चलने लगे तो वाह क्या कहने।
आज के समय में यदि देखा जाए तो लाखों में से मात्र कुछ ही बच्चे होंगे जो श्रवण बन अपने माता-पिता की सेवा करते होंगे। आज की वर्तमान समय में यदि देखा जाए तो कमाई से अधिक जरूरतें किसी परिवार की बढ़ चुकी है इन्हीं जरूरतों को पूरा करते-करते आखिर घर के कमाने वाले जब थक जाते हैं तो वह अपनी ईमानदारी के आगे हार जाते हैं, फिर उन्हें अपनों की खुशी के लिए गलत रास्ता अपनाना ही पड़ता है। अपने परिवार की खुशियों के लिए ना चाह कर भी ऐसे में लोग गलत रास्ते पर चले जाते हैं और अनैतिक तरीके से पैसे कमाने लगते हैं जैसे कि रिश्वत, घूसखोरी, मादक पदार्थों की बिक्री आदि। अनैतिक तरीकों से कमाने के चक्कर में अपने परिवार की खुशियों के लिए पूर्ति करने वाला यह भूल जाता है कि वह जिस अनैतिक तरीके से पैसे कमा रहा है उससे परिवार में तो खुशियां ढेर सारी आ जाएगी परंतु जिसके साथ उसने अनैतिक कार्य किया है जरा उसके ऊपर क्या गुजर रही है यह भी तो सोचिए। मान लीजिए किसी दफ्तर में कोई असहाय अपनी कोई फाइल पास करवाने के लिए धक्के खा रहा होता है सालों साल धक्के खाने के बावजूद भी उसकी फाइल पास नहीं होती है उससे रिश्वत की मांग की जाती है वह जैसे-तैसे जुगाड़ करके पैसे तो दे देता है परंतु वह तो उसकी अंतरात्मा ही जानती है कि उसने कैसे पैसे जमा करके दिए। वह कैसे बंदोबस्त कर पाया मतलब इसका यह हुआ कि आपने अपने घर की खुशियां, अपनों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी की जिंदगी को नर्क बना दिया किसी की फाइल जो की एक ही हस्ताक्षर से पूर्ण हो सकती थी। उसके लिए आपने हजारों या लाखों रुपए रिश्वत में ले लिए सामने वाले की जिंदगी अंधकार मय हो गई वह कर्ज में डूब गया एक घर बसाने के चक्कर में दूसरा घर बर्बाद कर दिया क्या यही मानवता सिखाती है। आज यदि अस्पतालों में भी देखा जाए तो किसी भी अस्पताल में डॉक्टर कितनी मोटी फीस लेने लगे हैं इंसान अपने परिचितों को बचाने के लिए डॉक्टरों के आगे गिड़गिड़ाते नज़र आते हैं। क्योंकि ऐसा कौन है जिसे अपने प्रिय नहीं होते हर किसी को अपने प्रिय होते हैं हर कोई अपने,अपनों की खुशी चाहता है परंतु इस तरह दूसरे के घरों को बर्बाद कर कर अपने घर वालों को खुशी देना जायज हैक्या? चलिए अब इस तरफ से ध्यान हटाकर जरा एक नजर हम स्कूलों की तरफ भी डालते हैं। स्कूलों की मोटी-मोटी फीस देखा जाए तो शिक्षा का इतना बड़ा व्यापार बन गया है। कैसे मां-बाप अपनी इच्छाओं को मारकर बच्चों की शिक्षा के प्रति जीजान लगा देते हैं। मां घर का काम भी करती है और कई मां तो ऐसी भी है जो बाहर जाकर भी काम आती है सिर्फ उनकी बच्चों की अच्छी परवरिश और शिक्षा के लिए। आज जब मैंने आध्यात्मिक गुरु प्रताप जी के द्वारा भेजी हुई कहानी को पढ़ा तो उस कहानी के अंतर्गत यह पाया कि एक बच्चे के पिता बहुत ही ईमानदार थे और पूरे पड़ोस में उनकी ईमानदारी का चर्चा था लोग उनके तारीफ के कसीदे कसते थे। तो ऐसे में बच्चे के दिल पर अपने पिता के ईमानदारी की ऐसी छातप छोड़ी की उसे लगने लगा कि मुझे अपने पिता की ईमानदारी की कमाई को व्यर्थ नहीं गवांना चाहता है। उसे यह महसूस हुआ कि मेरी मां नई साड़ी ना लेकर पुरानी साड़ी में ही दिन निकाल रही है और पिताजी भी साधारण सी चप्पल पहन कर काम चला रहे हैं तो मैं कैसे नए कपड़े ले लूं जो कपड़े मेरे 2 से 3 साल चल सकते हैं उसी में ही अपना काम क्यों न चला लूं काश ऐसी सोच हर बच्चे की हो जाए तो आज इस धरा पर ही हर माता-पिता को गर्व होगा अपनी औलाद पर।
परंतु देखा जाए तो यह सब बातें काल्पनिक ही लगती है। वर्तमान के अनुसार यदि बच्चों की तुलना कहानी के पात्र से की जाए तो वह उसके बिल्कुल विपरीत है अनगिनत कपड़े होने के बावजूद भी हमेशा एक ही शिकायत की हमारे पास अच्छे कपड़े नहीं है यह कपड़े तो हमने फलानी पार्टी में पहने थे। तो अब मुझे नए कपड़े लेने हैं। मेरे पास 1 जोड़ी जूते हैं तो मुझे 2 जोड़ी जूते और चाहिए मोबाइल वगैरह-वगैरह ना जाने क्या-क्या ख्वाहिशों की लिस्ट यह अपने माता-पिता के समक्ष रख देते हैं यह नहीं सोचते कि माता-पिता इतना पैसा कहां से लाएंगे अपने आपको कितना खपाएंगे जब इतनी सुविधाएं देने के बावजूद भी वर्तमान के बच्चों को देखा जाए तो वृद्धा आश्रमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है आखिर क्यों हमारे माता-पिता हम पर सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं यहां तक कि अपनी इच्छाओं को मारते चले जाते हैं। हमारी खुशियों के लिए वह अनैतिक कार्य भी कर लेते हैं जैसे कि मैंने आपको बताया कि रिश्वत वगैरह। तो उन्हीं माता-पिता के साथ अंत मे क्या होता है बताने की वैसे मुझे जरूरत नहीं है सभी को पता है कि आज के समय के अनुसार हर कोई अपने माता-पिता की रोक-टोक से परेशान होते हैं सबको आजादी चाहिए। जबकि माता-पिता हमेशा बच्चे की भलाई के लिए ही उसे रोक-टोक करते या समझाते परंतु आज के समय के बच्चों को दखलअंदाजी पसंद नहीं उनके अपने ही बच्चों के कड़वे अंदाज भरे शब्द मात-पिता के दिल में गहरे घाव कर जाते हैं और अंत में क्या होता है वही मात-पिता जो पूरी तरीके से कुर्बान हो गए जिन्होंने झोलियां फैलाई थी कभी मंदिरों में अपनी औलाद की खुशियों के लिए वही मात-पिता पाए जा रहे हैं आज वृद्ध आश्रम में। वाकई चाहे यह कहानी थी परंतु दिल पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी इस कहानी ने काश हर बच्चा इस कहानी के पात्र जैसा बन जाए इन्हीं आशाओं के साथ अपनी कलम को यहीं पर विराम देती हूं। एक आशा इस कहानी को पढ़ अगर सभी श्रवण बन जाए तो वृद्धा आश्रम की बढ़ती संख्या में कमी आ जाए। इस आलेख को क्या नाम दूं सोच नहीं पा रही थी पंद्रह नाम देने के बाद जो एक नाम आया कड़वाहट से भरा, सच्चाई से भरा जो हृदय को भी चीर रहा था। चीख-चीख कर कह रहा था उन मात-पिता की वेदनाओं को कि जितना अधिक हमनें अपनी इच्छाओं का बलिदान दिया बच्चों की खातिर आज उतने अधिक बढ़ रहे तेजी से वृद्धाश्रम।

About author

Veena advani
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर , महाराष्ट्र

Related Posts

Saundarya sthali kalakankar by vimal kumar Prabhakar

October 8, 2021

 सौन्दर्यस्थली कालाकाँकर  प्राकृतिक सौन्दर्य की सुरम्यस्थली कालाकाँकर में मैंनें अपने जीवन के सुखद दो वर्ष बिताएँ हैं । मैं बी.एच.यू

Shakahar kyon? by Jayshree birmi

October 7, 2021

 शाकाहार क्यों? कुछ लोग के मन में हमेशा एक द्वंद होता रहता हैं कि क्या खाया जाए,शाकाहार या मांसाहर इनका

Ek bar phir sochiye by jayshree birmi

October 5, 2021

 एक बार फिर सोचिए आज शाहरुख खान का बेटा हिरासत में पहुंचा हैं ,क्या कारण हैं?शाहरुख खान ने एक बार

Gandhivad Darshan ka samgra avlokan by Satya Prakash Singh

October 1, 2021

 गांधीवाद दर्शन का समग्र अवलोकन-    “गांधी मर सकता है लेकिन गांधीवाद सदैव जिंदा रहेगा” अहिंसा के परम पुजारी दर्शनिक

Rajdharm ya manavdharm by jayshree birmi

October 1, 2021

 राजधर्म या मानवधर्म कौन बड़ा राज्यधर्म और मानवधर्म में किसका पालन करना महत्वपूर्ण हैं ,ये एक बड़ा  प्रश्न हैं।अगर इतिहास

Pramanikta by Jay Shree birmi

September 30, 2021

 प्रामाणिकता भ्रष्टाचार और अप्रमाणिकता सुसंगत नहीं हैं।भ्रष्टाचारी भी उसको रिश्वत देने वाले की ओर प्रमाणिक हो सकता हैं, तभी वह

Leave a Comment