Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Virendra bahadur

‘गोल’ माल: पेले और पालेकर |Golmal : pele aur palekar

‘गोल’ माल : पेले और पालेकर दिसंबर के अंतिम सप्ताह में, फुटबाल के खेल में दंतकथा स्वरूप ब्राजिलियन फुटबालर एडिसन …


‘गोल’ माल : पेले और पालेकर

गोल' माल: पेले और पालेकर |Golmal : pele aur palekar

दिसंबर के अंतिम सप्ताह में, फुटबाल के खेल में दंतकथा स्वरूप ब्राजिलियन फुटबालर एडिसन अर्राटेस डो नासमेंटो उर्फ पेले का अवसान हुआ। उस समय सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसकों ने अमोल पालेकर की फिल्म ‘गोलमाल’ की क्लिप खोल निकाली थी, जिसमें पेले की लोकप्रियता को बहुत अच्छी तरह दर्ज कराया गया था। ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित यह फिल्म 1779 में आई थी। इसके दो साल पहले ही 1977 में पेले ने भारत का दौरा किया था। इसके सात साल पहले 1970 में पेले ने ब्राजील की ओर से संपूर्ण तीसरा फीफा वर्ल्ड कप जीता था। बस, तभी पेले की ख्याति समुद्र पार तक फैल गई थी।
कोलकाता का मोहन बगान फुटबाल क्लब प्रोफेशनल मैच कराता था और सन् 77 में उसने ईडेन गार्डन में एक फ्रेंडली मैच रखा था, जिसमें पेले को बुलाया गया था। फुटबाल के हीरो के रूप में पेले भारत, जापान और चीन की यात्रा पर थे। भारत में फुटबाल के प्रशंसको ने पेले के बारे में खूब सुना था, पर उन्हें रूबरू नहीं देखा था। उस दिन कोलकाता के डमडम एयरपोर्ट और सेंट्रल कोलकाता स्थित उनके होटल पर लाखों को संख्या में उनके प्रशंसक उमड़ पड़े थे। 80 हजार की क्षमता वाला इडेन गार्डन 37 वर्षीय पेले की कप्तानी वाली उनकी टीम का खेल देखने के लिए खचाखच भरा था।
भारत के अखबारों के स्पोटर्स पेज पेले की लोकप्रियता के गवाही थे। मुंबई में उस समय पारिवारिक मनोरंजन के लिए फिल्मों के लिए मशहूर ऋषिकेश मुखर्जी ‘गोलमाल’ फिल्म पर काम कर रहे थे। ऋषि दा खुद बंगाली थे। फिल्म के पटकथा लेखक सचिन भौमिक भी बंगाली अखबार में व्यंग्य लेखक थे। फिल्म में जिनकी भूमिका अहम थी, वह उत्पल दत्त अनेक बंगाली फिल्मों और नाटकों में काम करने के बाद हिंदी फिल्मों में आए थे। बाकी कुछ भी हो, ‘गोलमाल’ फिल्म की प्रेरणा ‘कांचा मीठा’ नाम की बंगाली फिल्म थी, जिसमें फिल्म का हीरो एक झूठ छुपाने के लिए झूठ का सिलसिला रचता है। कोलकाता में पेले ने जो जादू किया था, उसे फिल्म में जोड़ने का विचार इस बंगाली कनेक्शन के कारण ही आया था।
‘गोलमाल’ में एक ऐसे युवक की कहानी थी, जो नौकरी पाने की लालच में कंपनी के रूढ़िवादी मालिक को खुश करने के लिए अनोखा पैंतरा रचता है। रामप्रसाद दशरथप्रसाद शर्मा (अमोल पालेकर) सीए कर के आए थे। उर्मिला ट्रेडर्स नाम की कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया था। उसके मालिक भवानी शंकर (उत्पल दत्त) शुद्धतावादी और परंपरागत मूल्यों को मानने वाले थे। वह पैंट-शर्ट पहन कर मौज-शौक करने वाले युवकों को पसंद नहीं करते थे। उन्हें खेल से काफी नफरत थी। इसे वह समय की बरबादी मानते थे। भवानी शंकर की दूसरी भी एक विचित्र मानसिकता थी। वह बिना मूंछ वाले युवकों से भी नफरत करते थे। उनका मानना था कि बिना मूंछ के लड़के चरित्रहीन होते हैं।
रामप्रसाद शर्मा में वे सभी अवगुण थे, जिनसे भवानी शंकर नफरत करते थे।रामप्रसाद नौकरी के लिए इतना बेचैन था कि वह वेशभूषा बदल कर परंपरागत भारतीय युवक बन कर इंटरव्यू देने जाता है। इंटरव्यू में भवानी शंकर अलग-अलग तरह से रामप्रसाद में ‘नए जमाने के अवगुण’ हैं कि नहीं, इसकी जांच करते हैं। इसमें भवानी शंकर रामप्रसाद से साफ कह देते हैं कि वह काम से इतर स्पोर्ट्स जैसे फालतू मामलों में रुचि रखने वाले लोगों से सख्त नफरत करते हैं। ऋषि दा और सचिन भौमिक ने कोलकाता में पेले का जो जादू देखा था, उसमें यह दृश्य जोड़ा था।
रामप्रसाद के आने के पहले एक लड़का इंटरव्यू दे गया था। उसने भवानी शंकर पर अपना प्रभाव जमाने के लिए कहा था, “सर, मेरे अंकल को तो आप जानते ही होंगे। अब वह फुटबाल के मशहूर कोच हो गए हैं। जब ब्लेक पर्ल यहां आया था न, तब मोहन बगान की टीम उन्होंने ही चुनी थी। जैसे रवीन्द्रनाथ को गुरुदेव, गांधी जी को महात्मा या बापू कहते हैं न सर, उसी तरह पेले को ब्लेक पर्ल कहते हैं।”
भवानी शंकर इस पूरे इंटरव्यू के दौरान नाकभौं चढ़ाते रहते हैं। इसके बाद रामप्रसाद का नंबर आता है। भवानी शंकर शुरुआत सब से पहले रामप्रसाद को स्पोर्ट्स में रुचि है या नहीं, इसकी जांच करते हैं। वह ब्लेक पर्ल का नाम ले कर गुगली सवाल फेंकते हैं, “ब्लेक पर्ल के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?” रामप्रसाद निर्दोष चेहरा बना कर कहता है, “मुझे तो यह पता ही नहीं है कि मोती काला भी होता है। मैं तो यह समझता था कि मोती श्वेत वर्ण ही होता है।”
भवानी शंकर अपनी ‘गेंदबाजी’ जारी रखते हुए कहते हैं कि वह मशहूर फुटबालर पेले की बात कर रहे हैं, तब भवानी शंकर को पट्टी पढ़ाने का निर्णय कर के आया रामप्रसाद ‘महाराष्ट्र के आदिवासियों की प्रति व्यक्ति आय’ पर प्रोफेसर रेले की थिसिस की प्रशंसा करने लगता है। जमाने का अनुभव कर चुके भवानी शंकर तीसरी बार फुटबालर पेले पर जोर देते हैं तो अब तक उन्हें ठीक से पहचान चुका रामप्रसाद मुंह बिचका कर कहता है, “कुछ दिनों पहले समाचार पत्र में अवश्य पढ़ा था कि कोलकाता में 30-40 हजार पागल उनका दर्शन करने डमडम एयरपोर्ट पर पहुंच गए थे।”
रामप्रसाद इस तीसरी परीक्षा में पास हो जाता है और भवानी शंकर को विश्वास दिला देता है कि उसे न ब्लेक पर्ल के बारे में कुछ पता है और न ही फुटबाल से जरा प्रेम है। भवानी शंकर को अपने आफिस के लिए आदर्श ‘राम’ मिल जाता है और 850 रुपए महीने के वेतन पर रामप्रसाद को नौकरी पर रख लेते हैं। गोल स्कोरर पेले को ‘गोलमाल’ फिल्म के बारे में पता था या नहीं, यह तो पता नहीं, पर अपने कैरियर के दौरान वह लगभग दर्जन भर फिल्मों में दिखाई दिए थे।
ऋषिकेश मुखर्जी की चली होती तो वह पेले को ‘गोलमाल’ फिल्म में ले आए होते। पर उन्होंने पेले के उल्लेख मात्र से काम चला लिया था। अमोल पालेकर की छाप हमेशा साधारण मनुष्य के हीरो की रही है और गोलमाल फिल्म में उन्होंने रामप्रसाद उसी तरह लक्ष्मणप्रसाद की भूमिका लाजवाब की थी। इसमें उन्हें उत्पल दत्त का जबरदस्त साथ मिला था। हिंदी फिल्मों में हीरो और हीरोइन की केमिस्ट्री के बारे में बहुत लिखा गया है, पर ‘गोलमाल’ में अमोल पालेकर और उत्पल दत्त की जुगलबंदी फिर देखने को नहीं मिली, इस तरह दुर्लभ थी।
इसमें जरा भी आश्चर्य की बात नहीं कि उस साल बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड अमोल पालेकर और बेस्ट काॅमिक का फिल्मफेयर अवार्ड उत्पल दत्त के हिस्से में गया था। मजे की बात यह है कि ऋषिकेश मुखर्जी के ही दो फेवरिट सुपरस्टार राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को पीछे छोड़ कर पालेकर ने यह अवार्ड जीता था। संयोग से ‘गोलमाल’ में अमिताभ बच्चन का गेस्ट रोल भी था। पालेकर और उनके दोस्त देवेन वर्मा कुरता-पायजामा लेने के लिए अमिताभ की फिल्म के सेट पर जाते हैं। इनफेक्ट फिल्म का वह सेट ऋषिकेश मुखर्जी की ही एक फिल्म ‘जुर्माना’ का था, जिसमें हीरो अमिताभ बच्चन थे।
डबल रोल की बात तब हैरान करने वाली नहीं थी। अभिनेताओं ने इस तरह के रोल बड़ी अच्छी तरह निभाए थे। जबकि उन कहानियों में एक तरह दिखाई देने वाले दो अलग पात्रों की भूमिकाएं की थीं। पर पालेकर के मामले में चुनौती यह थी कि एक ही पात्र को अलग-अलग तरह से पेश करना था। एक रामप्रसाद बिना मूंछो के कुरता-पायजामा में है और दूसरा रामप्रसाद रंगीन पैंट-शर्ट और गोगल्स में हाकी का प्रेमी है। केवल मूंछ लगा कर कोई आदमी अपना पूरा व्यक्तित्व बदल डाले, यह केवल पालेकर ही कर सकते थे। ‘गोलमाल’ आज भी हिंदी सिनेमा की बेहतरीन काॅमेडी फिल्मों सब से ऊपर है। मौका मिले तो जरूर देखिएगा।

About author 

वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336

वीरेन्द्र बहादुर सिंह
जेड-436ए सेक्टर-12,
नोएडा-201301 (उ0प्र0)
मो-8368681336


Related Posts

Kitne ravan jalayenge hum by Jay shree birmi

October 23, 2021

कितने रावण जलाएंगे हम? कईं लोग रावण को महान बनाने की कोशिश करतें हैं,यह कह कर माता सीता के हरण

Rista me chhal by Jayshree birmi

October 22, 2021

 रिश्ता में छल कुछ दिन पहले गांधीनगर गुजरात  के मंदिर की गौ शाला में किसी का १० माह के बालक

Sharad purinima by Jay shree birmi

October 22, 2021

 शरद पूर्णिमा अपने देश में ६ ऋतुएं हैं और हर ऋतु का अपना महत्व हैं।जिसमे बसंत का महत्व ज्यादा ही

Gujrat me 9 ratein by Jay shree birmi

October 22, 2021

 गुजरात में नौ रातें  हमारा देश ताहेवारों का देश हैं ,तहवार चाहे हो ,सामाजिक हो या धार्मिक हो हम देशवासी

Khud ko hi sarvshreshth na samjhe by Sudhir Srivastava

October 22, 2021

 खुद को ही सर्वश्रेष्ठ न समझें                         ✍ सुधीर

Kitne ravan jalayenge hum ? By Jayshree birmi

October 15, 2021

 कितने रावण जलाएंगे हम? कईं लोग रावण को महान बनाने की कोशिश करतें हैं,यह कह कर माता सीता के हरण

Leave a Comment