Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, lekh

क्या माता पिता का अपमान कर आध्यात्मिक सेवा फलीभूत

क्या माता पिता का अपमान कर आध्यात्मिक सेवा फलीभूत होगी ? श्रद्धेय आध्यात्मिक बाबाओं द्वारा अपने प्रवचन में, माता-पिता की …


क्या माता पिता का अपमान कर आध्यात्मिक सेवा फलीभूत होगी ?

क्या माता पिता का अपमान कर आध्यात्मिक सेवा फलीभूत

श्रद्धेय आध्यात्मिक बाबाओं द्वारा अपने प्रवचन में, माता-पिता की सेवा सर्वश्रेष्ठ, पर बल देना समय की मांग

माता-पिता को बोझ और अनावश्यक श्रेणी में रखकर उनपर शाब्दिक कटु बाण चलाने वाले सफेदपोश लोग पता नहीं कैसे, नामी मंदिरों में तन मन धन से सेवा करते हैं ? – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर हजारों वर्षों पूर्व से ही भारतीय आध्यात्मिकता रही है, जिसका कोई अंत नहीं है, यानें मेरा मानना है कि शायद जबसे सृष्टि की रचना हुई है तबसे भारतीय भूमि पर आध्यात्मिकता को महत्व दिया जाता रहा है, क्योंकि पूर्व से पुर्वंनतर वाले इतिहास भी भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता का जिक्र जरूर होगा। इसलिए शास्त्रों कतेबों एवं और संस्कृतियों में ‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है। हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी। माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। परंतु बड़े बुजुर्गों द्वारा कही कहावतें वर्तमान परिपेक्ष में अटूट सटीक सत्य प्रमाणित हो रही है कि, समय का चक्र चलते बदलते रहता है जहां शास्त्रों वेदों कतेबों और भारतीय संस्कृति में माता पिता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है उसके बाद आचार्य को पदवी दी गई है। परंतु वर्तमान बदलते परिपेक्ष में बढ़ते आध्यात्मिक ट्रेंड में हमारे मान्यवर श्रद्धेय बाबाओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी भी आई है, वही मीडिया में आई जानकारी में हम जानते हैं कि कई पर लंबी कार्यवाही भी हुई है खैर हमारा आज का विषयवस्तु यह नहीं है बल्कि हम चर्चा करेंगे कि आज की औलाद अपने माता पिता से अधिक महत्व अपने श्रद्धेय बाबा, गुरु, आचार्य को दे रहे हैं, अपने घर से अधिक आध्यात्मिक स्थल पर सेवा को अधिक महत्व दे रहे हैं, अपने घर परिवार माता-पिता को तरसाकार अपने आध्यात्मिकता पर अधिक व्यय कर रहे हैं और बड़े रौब से कहते हैं, मैं फलाने आध्यात्मिक स्थल का सेवादार, भगवान ईश्वर अल्लाह का भगत हूं बंदा हूं। परंतु मेरा मानना है, ये कैसी आध्यात्मिक सेवा है? जो माता-पिता को बोझ और अनावश्यक श्रेणी में रखकर उनपर शाब्दिक कटु बाणचलाकर अपने आचार्य के सामने, अपने आध्यात्मिक स्थल पर तन-मन-धन से सेवा करते हैं। मेरा मानना है या तो पाप से भी बड़ा पाप है। इसलिए आज ज़रूरत है,हमारे श्रद्धेय आध्यात्मिक बाबाओं द्वारा अपने प्रवचनों में माता-पिता की सेवा सर्वश्रेष्ठ पर, बल देना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम ऐसे लोगों की करें तो जो माता-पिता घरबार को नजरअंदाज करते हुए आध्यात्मिक क्षेत्र में तथाकथित सेवा करने का दिखावा कर रहे हैं तो, पता नही ! वो लोग भगवान ईश्वर अल्लाह को कैसे पूज लेते है जो मां बाप को एक बोझ और अनावश्यक वस्तु की श्रेणी में रखते हैं। मां बाप तो जीवन के अंतिम पड़ाव में केवल सेवा और प्रेम के दो मीठे वचनों को सुनने के लिए तरसते हैं। खैर !वृद्धावस्था का दंश तो सभी को झेलना ही पड़ता है।।
श्री गणेश जी ने स्वयं माता पिता को ब्रह्माण्ड सिद्ध कर देवताओं का सिरमोर बना दिया था। श्रीराम ने माता पिता के वचनों की खातिर वनवास स्वीकार लिया था। पत्थर पूजते है, मंदिर जाते है, पूजा पाठ करवाते है, और वो सारी चीजे करते है जिससे हमें लगता है कि हमारा जीवन धन्य हो जाएगा लेकिन क्या हम जानते है कि ईश्वर अल्लाह हमारे पास हमेशा माता पिता के स्वरूप में होता है, बस ज़रूरी है उन्हें पहचाननें की, अपनी खुशियों का गला घोटकर हमारी सारी ख्वाहिश पुरी करने वाले माता पिता ही थे, जिन्होंने हमें इस समाज में जीने का अधिकार दिलाया।जब वे हमारे लिए इतना कुछ कर सकते है। तो क्या हम नही,मेरा तो ये मानना है, माता पिता के जीते जी उन्हें सारे सुख देना ही वास्तविक श्राद्ध है! हम माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे। कुछ लोग अपने माता-पिता को एक गिलास पानी भी नहीं दे सकते हैं, किंतु साधु महात्माओं के चरण साफ कर उन्हें क्या हासिल होगा?
साथियों आज अधिकांश परिवारों में वृद्ध माता-पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा और चिकित्सा तो दूर, उनके साथ उपेक्षापूर्ण-पीड़ादायक व्यवहार किया जाता है। इतना ही नहीं, उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा की जाती है।यह उपेक्षापूर्ण व निष्ठुरव्यवहार सर्वथा अनुचित है। आज वृद्धाश्रमों की बढ़ती हुई संख्या और तीर्थस्थानों में उम्रदराज भिखारियों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वृद्ध माता-पिता की दशा कितनी दयनीय हो गई है। कितनी लज्जा की बात है कि जिन माता-पिता ने अपनी संतान के लिए अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए उन्हें पढ़ाया, सभी सुविधाएं उपलब्ध कराईं, स्वयं दुख सहते हुए संतान को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयत्न किए, वही संतान जीवन के अंतिम समय में उनको छोड़कर दूर रह रही है। युवा यह नहीं जानते कि एक दिन वे भी असहाय वृद्ध होंगे तब वे भी क्या अपनी संतान से इसी व्यवहार की चाह रखेंगे जैसा कि आज वे स्वयं अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं?
साथियों हम पत्थर पूजते है, मंदिर जाते है, पूजा पाठ करवाते है, और वो सारी चीजे करते है जिससे हमें लगता है कि हमारा जीवन धन्य हो जाएगा लेकिन क्या हम जानते है कि ईश्वर अल्लाह हमारे पास हमेशा माता पिता के स्वरूप में होता है, बस जरूरत है उन्हें पहचाननें की। अपनी खुशियों का गला घोटकर हमारी सारी ख्वाहिश पुरी करने वाले माता पिता ही थे, जिन्होंने हमें इस समाज में जीने का अधिकार दिलाया। जब वे हमारे लिए इतना कुछ कर सकते है। तो क्या हम नही?,मेरा तो ये मानना है, माता-पिता के जीते जी उन्हें सारे सुख देना ही वास्तविक श्राद्ध है! आओ माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे।
साथियों बात अगर हम माता पिता ही ईश्वर अल्लाह के तुल्य होने की करें तो, पदम पुराण में कहा गया है कि पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। जिसकी सेवा और सद्गुणों से माता-पिता संतुष्ट रहते हैं, उस संतान को प्रतिदिन गंगा-स्नान का फल मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है। इसलिए सभी प्रकार सेमाता-पिता का पूजन अर्थात उनकी सेवा करनी चाहिए।वेद शास्त्रोंके अनुसार माता पिता भगवान के तुलाया है उनका सेवा करने का मतलब है ईश्वर अल्लाह की इबादत करना पूजा करना इसी लिए मेरे मत अनुसार माता पिता के सेवा से बढ़ाकर कोई भी पूजा शायद ही हो सकती है।
साथियों बात अगर हम वृद्धजनों के सम्मान व मूल्यों संबंधित धार्मिकता श्लोकों की करें तो, वृद्धजनों की सेवा के संबंध में यह श्लोक महत्वपूर्ण है : अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
यानें वृद्धजनों को सर्वदा अभिवादन अर्थात सादर प्रणाम, नमस्कार, चरण स्पर्श तथा उनकी नित्य सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल-ये चारों बढ़ते हैं। इस श्लोक का आशय स्पष्ट है कि हमें सदैव अपने माता-पिता, परिवार के ज्येष्ठ सदस्यों एवं आचार्यों की सेवा सुश्रुषा, परिचर्या का विशेष ध्यान रखना चाहिए। वे सदैव प्रसन्न रहेंगे तभी हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा और हम उन्नति कर सकते हैं। माता-पिता और गुरु की सेवा एवं सम्मान करने पर दीर्घायुभव, आयुष्मान भव, खुश रहो आदि आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। वृद्धजनों का आशीर्वाद हृदय से मिलता है। धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार भीष्म पितामह से पूछा, धर्म का मार्ग क्या है? भीष्म पितामह ने कहा-समस्त धर्मों से उत्तम फल देने वाली माता-पिता और गुरु की भक्ति है। मैं सब प्रकार की पूजा से इनकी सेवा को बड़ा मानता हूं।
साथियों बात अगर हममाता-पिता की सेवा को प्राथमिकता की करें तो, माता पिता की सेवा को ही प्राथमिकता दे। क्योंकि माता पिता की सेवा से ही ईश्वर अल्लाह स्वतः प्रसन्न हो जाते हैं। माता पिता को ही ईश्वर अल्लाह मानकर उनकी ही सेवा पूजा इबादत करनी चाहिए क्योंकि जिन माता पिता ने आपको जन्म दिया पाला पोसा आपको लायक बनाया संस्कार दिए भला उन माता पिता से बढ़कर कौन हो सकता है। उप्पर वाले के प्रति आस्था श्रद्धा विश्वास रखना पर्याप्त है, बाकी पूजा और सेवा तो माता पिता की करनी चाहिए और उप्पर वाले को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने आपको ऐसे माता पिता दिए जो आपसे बेहद प्रेम करते हैं और आपकी हर मनोकामना पूरी करने को सदैव तैयार रहते हैं साथ ही भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि माता पिता का साथ और आशीर्वाद आप पर सदा बना रहे। ईश्वर अल्लाह की पूजा इबादत या माता-पिता की सेवा में क्या जरूरी है, प्राथमिकता किस को देँ?यदि ऐसी परिस्थिति हो कि हम एक ही काम कर सकें तो निश्चित रूप से माता-पिता की सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिये। पर, एक उक्ति आपने सुनी होगी – तन काम में, मन राम में। प्रभु को याद करते हुए, सुमिरण करते हुए यदि माता-पिता की सेवा करें तो दोनों फल आप एक साथ पा सकते हैं।यदि ऐसी परिस्थिति हो कि हम एक ही काम कर सकें तो निश्चित रूप से माता-पिता की सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिये।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे किवक्या माता पिता का अपमान कर आध्यात्मिक सेवा फलीभूत होगी ?
श्रद्धेय आध्यात्मिक बाबाओं द्वारा अपने प्रवचनों में माता-पिता की सेवा सर्वश्रेष्ठ, पर बल देना समय की मांग है माता-पिता को बोझ और अनावश्यक श्रेणी में रखकर उन पर शाब्दिक कटु बाण चलाने वाले सफेदपोश लोग पता नहीं कैसे नामी मंदिरों में तन मन धन की सेवा करते हैं?

About author

kishan bhavnani

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 

किशन सनमुख़दास भावनानी 

Related Posts

kavi hona saubhagya by sudhir srivastav

July 3, 2021

कवि होना सौभाग्य कवि होना सौभाग्य की बात है क्योंकि ये ईश्वरीय कृपा और माँ शारदा की अनुकम्पा के फलस्वरूप

patra-mere jeevan sath by sudhir srivastav

July 3, 2021

पत्र ●●● मेरे जीवन साथी हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास

fitkari ek gun anek by gaytri shukla

July 3, 2021

शीर्षक – फिटकरी एक गुण अनेक फिटकरी नमक के डल्ले के समान दिखने वाला रंगहीन, गंधहीन पदार्थ है । प्रायः

Mahila sashaktikaran by priya gaud

June 27, 2021

 महिला सशक्तिकरण महिलाओं के सशक्त होने की किसी एक परिभाषा को निश्चित मान लेना सही नही होगा और ये बात

antarjateey vivah aur honor killing ki samasya

June 27, 2021

 अंतरजातीय विवाह और ऑनर किलिंग की समस्या :  इस आधुनिक और भागती दौड़ती जिंदगी में भी जहाँ किसी के पास

Paryavaran me zahar ,praniyon per kahar

June 27, 2021

 आलेख : पर्यावरण में जहर , प्राणियों पर कहर  बरसात का मौसम है़ । प्रायः प्रतिदिन मूसलाधार वर्षा होती है़

Leave a Comment