काम की कीमत है इंसान की नहीं
बेकारी, बेरोजगारी के दिनों में
ना कमाने का ताना
जब तब मार देने वाले घरवाले,
इंसान की हर पसंद नापसंद का भी
ख्याल रखने लग जाते हैं
बशर्ते इंसान अच्छा कमाना शुरू हो जाए,
कमाई के साथ इज्जत सहज ही आ जाती है।
बेकारी, बेरोजगारी के दिनों में
संघर्ष करते हुए देखकर
सौ बातें बनाने वाले दुनियावाले,
इंसान के बिल्कुल खासमखास कहलाने
में गर्व महसूस करने लग जाते हैं
बशर्ते इंसान अच्छे पद पर आसीन हो जाए,
अच्छे पद के साथ चाटुकारिता सहज ही आ जाती है।





