Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Jayshree_birmi, story

कहानी – जड़ों में तेल देना इसे कहते हैं

कहानी-जड़ों में तेल देना इसे कहते हैं छोटे थे तब एक कहानी सुनी थी। एक भरापुरा परिवार था।दादा,दादी मां और …


कहानी-जड़ों में तेल देना इसे कहते हैं

जयश्री बिरमी  अहमदाबादछोटे थे तब एक कहानी सुनी थी। एक भरापुरा परिवार था।दादा,दादी मां और पिताजी के अलावा चाचा,चाची और उन का बेटा और हम चार,दो भाई और दो बहनें।घर में सारा दिन ही मेला सा लगा रहता था। मां और चाचीजी दोनों सारा दिन रसोई और घरकाम में व्यस्त रहती थी।सभी बच्चों को पढ़ाने का कार्यभार चाचाजी पर था।जब चाचाजी दुकान से आते थे तो हम सब ही छुप जाते थे कि सामने दिखें तो पढ़ना पड़ेगा।लेकिन वे थे कि ढूंढ ही लेते थे सभी को।और पढ़ाई खत्म होते ही ७ बजते बजते तो सब रात का भोजन कर औसारे में बैठ हम आसमान के तारे देखते और बड़े सभी कोई न कोई समाचार या कोई न कोई घटना के बारे में चर्चा करते थे।कई बार दुकान पर काम करने वाले रामू चाचा भी आके बैठते थे।ऐसे ही कोई किस्से के बारे में बात चली तो हमारा ध्यान भी उधर गया।वे लोग कोई सेठ की बात कर रहे थे।उनका कोई नौकर था जो छोटी मोटी चोरी करता रहता लेकिन पकड़ा नहीं जाता था किंतु एकदिन पकड़ा गया और सब ने उसे पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की बात की,तो सेठ ने उन्हे रोका और उसे उसके घर जाने के लिए बोला और दूसरे दिन से समय पर आने के लिए बोला।सब हैरान थे लेकिन कोई कुछ बोला नहीं सब अपने अपने कार्य में लग गएं ।जब सेठ घर पहुंचे तो सेठजी के बड़े बेटे ने पूछा कि उन्होंने उसे जाने क्यों दिया तब उन्होंने बताया कि उन्हे काफी दिनों से उसपर शक तो था लेकिन आज यकीन हो गया कि ये बंदा ठीक नहीं हैं और उसे अपने तरीके से सजा तो दे ही देंगे।

सब हैरान थे,सेठजी कैसे सजा देंगे उसे,और दूसरे दिन जब नौकर आया तो उसे एक सुंदर सी कुर्सी दी गई और इस पर बैठने के लिए कहा गया।वह पहले तो थोड़ा सकुचाया लेकिन बैठ ही गया।फिर तो क्या था,उसके लिए गरम गरम चाय की प्याली आ गई। वह तो बड़ा ही खुश था, कि चोरी करने के बावजूद उसे इतना मान दिया जा रहा था।जैसे ही चाय की आखिरी चुस्की खतम हुई तो वह अपनी प्याली रखने उठने ही वाला था तो पास खड़ा मनु लपका और उससे प्याली ले ली और रखने चला गया।फिर खाने का समय हुआ तो वही कहानी,थाली भरके विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से भरी थाली उसके सामने थी ,जिसे उसने पेट भर खाया और फिर से मनु आया और उसकी खाली थाली उठा कर चला गया।पहले तो वह हैरान था लेकिन अब उसे ऐसे ही अच्छे अच्छे खाने की और कुछ काम नहीं करने की आदत सी पड़ गई थी।जब शाम को घर जाता था तो उसकी पत्नी अगर जरा सा भी काम बताएं तो वह उससे ना कर देता था और आराम से सो जाता था।अब बस उसका काम ही यही था सेठ की पीढ़ी पर जाओ चाय पियो,खाना खाओ और छुट्टी के समय घर जाओ।घर आके बीवी का दिया खाना भी उसे कोसते हुए खाता था क्योंकि दिन में तो सेठ के घर का बढ़िया खाना जो उसे मिलता था। ऐसे ही दिन,हफ्ते,महीने और साल बदलते गए।दो साल हुए तो सेठने उसे बुला कर कहा कि उसे नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा हैं।उसका अब वहां कोई काम न था।

जब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने उसका जल्दी घर आने का कारण पूछा तो वह जल्ला कर बोला ,”भाड़ में जाओ सब, तू भी और सेठ भी।”वह बेचारी क्या करती अपने काम में लग गई।उसकी अपनी तनख्वाह भी बंद हो गई थी उसकी पत्नी की जो थोड़ी बहुत आमदनी थी उसमें घर का खर्च चलाना मुश्किल सा लग रहा था।लेकिन करता भी तो क्या।

कुछ दिन तो वैसा चलता रहा फिर कुछ सोच के सेठ के पास गया काम मांगने लेकिन सेठ ने उससे मिलने के लिए ही मना कर दिया।वह भी हैरान था कि दो सालों तक बैठ के खिलाने वाले सेठ जी उससे मिलने के लिए तैयार नहीं थे।

फिर गांव में कुछ और सेठ थे उन्हे भी मिला लेकिन उसकी चोरी वाली बात पुरे गांव में फेल गई थी तो किसी ने भी उसे काम नहीं दिया। हार कर वह घर में बैठा रहने लगा तो उसकी पत्नी और बच्चे भी उससे दुखी हो गए थे।बैठे बैठे कब तक खिलाते उसे ये भी उनके लिए सोचने वाली बात थी।बहुत दिन ऐसे ही चलता रहा लेकिन उसकी बहुत ही बेइज्जती होती थी, एक दिन उससे सहा नहीं गया तो वह घर छोड़ कर चला गया।

उधर सेठजी के पुत्रों ने भी सुना कि उनका चोर नौकर घर छोड़ के भाग गया था।दोनों पुत्र पिता के पास गए और उन्हें बताया कि उनका वह नौकर भाग गया हैं।सेठजी बोले कि उन्हे पता था कि कुछ वैसा ही होने वाला था ,बस थोड़ा जल्दी हो गया।दोनों पुत्र अचंभित से थे,उनकी और प्रश्न भरी निगाहों से देखने लगे।तब सेठजी ने बताया कि उसी उद्देश्य से ही उसे दो साल मुफ्त खाना खिलाया था कि उसे काम करने की आदत ही छूट जाएं,ये उसकी जड़ों में तेल देने जैसा था।वह उम्र भर कुछ काम करने के काबिल नहीं रहा तो उसके सभी रिश्ते भी छूट गए थे और उसकी साख भी खराब हो चुकी थी।यही तो बदला था उसकी चोरी करने के काम का।अगर उसे उसी दिन निकल दिया जाता तो वह दूसरा काम भी कर लेता लेकिन दो साल आराम में बिताने के बाद वह किसी भी काम के लायक नहीं रह गया था।

क्या यह कहानी अपने देश के राजनायकों कुछ सिख देती हैं।अच्छी भली श्रम में मानने वाली प्रजा को मुफ्त की चीजें दे कर उन्हे निट्ठला बना देना कहां तक उचित हैं? उन्हे देना हैं तो कम सूद पर ऋण दे दो जिससे वे मेहनत से अपना छोटा मोटा कारोबार कर सके।उनके बच्चों के लिए पढ़ाई का इंतजाम करवाओं लेकिन कुछ भी फ्री फ्री का मत दो।

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद


Related Posts

Laghukatha- mairathan by kanchan shukla

June 23, 2021

 मैराथन डॉक्टर ने बोला है, आज के चौबीस घंटे बहुत नाजुक हैं। हल्का फुल्का सब सुन रहा हूँ। कोई मलाल

Laghukatha-dikhawati by kanchan shukla

June 23, 2021

 दिखावटी मिहिका के दिल में बहुत कसक है। शुरुआत में तो ज़्यादा ही होती थी। जब भी माँपिता से, इस

Kahani khamosh cheekh by chandrhas Bhardwaj

June 14, 2021

ख़ामोश चीख सुधीर अपने आवास पर पहुँचे तो शाम के सात बज गए थे । रघुपति दरवाजे पर खड़ा था

Laghukatha rani beti raj karegi by gaytri shukla

June 12, 2021

रानी बेटी राज करेगी बेटी पराया धन होती है, यह सत्य बदल नहीं सकता । अगर आप शांति से विचार

Laghukatha mere hisse ki dhoop by rupam

June 12, 2021

लघुकथा मेरे हिस्से की धूप तमाम तरह के बहस-मुबाहिसे होने के बाद भी उसका एक ही सवाल था- तो तुमने

Laghukatha dar ke aage jeet hai by gaytri shukla

June 11, 2021

डर के आगे जीत है रिमझिम के दसवें जन्मदिन पर उसे नाना – नानी की ओर से उपहार में सायकल

Leave a Comment