Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

laghukatha, story

कहानी-अपने प्यार की तमन्ना-जयश्री बिरमी

अपने प्यार की तमन्ना (hindi kahani)   सीमा कॉलेज जाने की लिए निकल ही रही थी कि अमन ने उसे चिड़ाते …


अपने प्यार की तमन्ना (hindi kahani)  

कहानी-अपने प्यार की तमन्ना-जयश्री बिरमी
सीमा कॉलेज जाने की लिए निकल ही रही थी कि अमन ने उसे चिड़ाते हुए कहा,” क्यों बहना इतना सजधज के कोई कॉलेज थोड़ा जाता है,,?”और सीमा इठलाके मुंह बनाके टेढ़ी सी चाल चलती बाहर निकल गई और अपनी साइकिल ले कॉलेज की ओर चल पड़ी।रास्ते में यही वही जवानी वाली रवायते और हर तरफ उड़ानों की ख्वाहिशें ले आगे बढ़ती गई।कब कॉलेज आया ये उसे पता ही नहीं चला।जैसे ही उसने कॉलेज के बाहर विद्यार्थी और विद्यार्थिनीयों की बाते करने और ठहाकें लगाने की आवाजें सुनी तब वह अपने ख्यालों से बाहर आई और साइकिल स्टैंड पर अपनी साइकिल रख वह भी अपनी सहेलियों के साथ कक्षा में दाखिल हो गई।अध्यापक के आते ही पढ़ाई शुरू हुई और वह नोट्स लिखने में व्यस्त हो गई।ऐसे ही तीन लेक्चर पूरे हो गए और सभी विद्यार्थिनीयां एकसाथ कैंटीन में जा कुछ न कुछ ले आईं और बतियाते हुए खाने में व्यस्त हो गई।ऐसे ही दिन बीत रहे थे,घर में छोटे भाई अमन से मीठे व्यंग वाली लड़ाइयां और कॉलेज की हंसी ठिठोलियाँ ,ऐसे ही मस्त जिंदगी बीत रही थी।

घर में भाई अमन के साथ चुलबाजी में कभी वह गुस्से में मां से शिकायत कर देती थी तो मां का एक ही जवाब होता था कि जब वह ससुराल जायेगी तो इन्ही बातों को याद करके रोएगी।शायद सीमा भी ये जानती थी ,एक ही तो भाई था उसका,लाडला भी तो बहुत था।आजादी की जिंदगी मजे ने कट रही थी,घर और दोस्त और पढ़ाई और जीवन में आने वाले दिनों के सपने,खुश तो बहुत थी सीमा।
मजे में कट रही जिंदगी में एक और मुकाम आया ,उसकी कॉलेज में स्थानांतरित हो के आया लड़का ,रोहन।स्मार्ट और होशियार भी था वह,पैसे वाले का बेटा नहीं था लेकिन शान से जीने की आदतों की वजह अच्छे व्यक्तित्व का धनी तो था ही उपर से पढ़ाई में अव्वल आने वाला भी था।
सभी लड़कियों में कैनैया बन फिर रहे रोहन के प्रति उसके मन में भी कुछ भावनाएं पैदा तो हुई किंतु वह अनजान सी बनी रह रही थी या शर्म की वजह से कुछ बोल नहीं पा रही थी, कुछ उसे भी समझ नहीं आ रहा था।जब भी उसे देखती दिल की धड़कने बढ़ जाती थी उसकी, उसे बार बार देखने को जी चाहता था ये सब प्यार हो जाने की निशानियां थी और अब वह भी जानने लगी थी कि उसकी चाहत दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी।अब तक जो उसे कनखानियों से देखती थी वह अब बेबाक एक नज़र भर उसे देख ही लेती थी और एक मंद सी मुस्कान भी होठों पर अनायास ही आ जाती थी।
और एक दिन वो हो गया जिसकी उसे भी चाह थी, उसे कॉलेज के दफ्तर में से कोई फॉर्म भरने के लिए बुलाया गया था तो वह वर्ग से निकल दफ्तर की और जा ही रही थी कि सामने से उसका एक साल सीनियर रोहन मस्ती में चलता हुआ आ रहा था।उसका कलेजा उछल कर गले तक आ गया ऐसा लग रहा था कि कैसे उसका सामना कर पाएगी वह।कॉलेज के अहाते में दोनों अकेले आमने सामने आए तो दोनों ही रुक गए ,रोहन ने पहली बार उसे उसी नज़र से देखा जिस नजर से वह उसे देखती थी।वह एक दम सामने आ खड़ा हुआ,इतना पास कि उसकी महकी महकी सांसों को महसूस कर रही थी वह,मदहोशी छाने लगी और कुछ बोले उससे पहले रोहन ने पूछ ही लिया कि कहां जा रही थी वह।और उसकी धिग्धी बंध गई ,स्वर गले से बाहर आने को तैयार ही नहीं थे ,आंखे डरी हिरनी के जैसे उसकी और तक रही थी।क्या होगा अब ये सोच वह भी उसकी ओर से नजर हटा इधर उधर देख ने लगी।फिर एकदम से बोल पड़ी कि वह कौनसे शहर से आया था।और एक प्यारी सी मुस्कान के साथ उसने बताया कि वह जयपुर से आया था उसके पापा कोई बड़ी निजी क्षेत्र के दफ्तर ने मुलाजिम थे।बस और वह छोटी सी मुस्कान के साथ आगे बढ़ गई और अपनी पीठ के पीछे दो निगाहें उसकी और बिना पलक जपके ताक रही थी उसे महसूस भी कर रही थी।
यह थी पहली छोटी सी मुलाकात जो आगे जा प्यार का विराट वटवृक्ष बनने वाली थी।
अब चोरी छुपी देखने बजाय आमने सामने दुआ सलाम होने लगी और कुछ बाते जो सिर्फ प्रश्नार्थ ही होती थी,होने लगी।
और एकदिन जब वह अपनी साइकिल पर जा रही थी तो रोहन रास्ते में मिल गया और उसे चाय के लिए पास की होटल में जाने की अपनी ओर से ख्वाहिश जाहिर की और वह भी बरबस ही हां कर उसके पीछे चल पड़ी वैसे वह खुद भी शायद यही चाहती थी,लड़की होने की मर्यादा शायद उसे रोक रही थी। दोनों होटल में गए और एक ओर कोने वाली टेबल पर बैठ गए।अब उसने शर्म छोड़ जी भर के रोहन को देख रही थी और रोहन भी बिना पलक जपकाये उसकी आंखों में खो जाना चाहता था।और ऐसे ही एकदूसरे में खोए थे और वेटर ने आ मेनू रख ऑर्डर देने के लिए बोला तब धरातल पर आए, जेंप गए और हड़बड़ाकर दोनों ने एकसाथ मेनू कार्ड पकड़ ने के लिए हाथ बढ़ाएं और हड़बड़ाहट में मेनू कार्ड के बदले एकदूसरे का हाथ पकड़ लिया और दोनों के शरीर में स्पर्श की वजह से सिहरन सी दौड़ गई।वेटर भी मुस्कुराके चला गया।अब दोनों ने मिलकर तय कर सेंडविच के साथ चाय मंगवाने का तय कर वेटर को बुलाया और ऑर्डर कर दिया।थोड़ी देर बाद चाय और सेंडविच खत्म कर दोनों ने फिर मिलने का वादा कर अपने अपने घर की और चल दिए।
अब तो छोटी नहीं बड़ी लंबी लंबी मुलाकाते शुरू हो गई , दोनों एक दूसरे के ख्वाब देखने लगे और प्यार की पींगे चढ़ने लगी।ऐसे दो साल हो गए और दोनों को लगा कि अब घरवालों को बता कर रिश्ता तय करने की बात करनी चाहिए।अब इंतजार नहीं हो पा रहा था दोनों से,व्याकुलता बढ़ती जा रही थी ।एक दिन दोनों होटल में बैठ अपने भावी जीवन के बारे में सपने संजो रहे था, कि अमन अपने दोस्तों के साथ होटल में आया और दोनों को साथ देख कुछ परेशान सा हो गया किंतु दोस्तों की वजह से अनदेखा कर चुप चाप बैठ गया।और वह रोहन के साथ जल्दी से बिल दे बाहर निकल गई किंतु घर की और कदम नहीं उठ रहे थे उसके, पांव कांपने लगे लेकिन उसने रोहन को बताया नहीं कि अमन जो दोनों को घूर रहा था वह उसका भाई था।घर तो पहुंच गई किंतु किसी से कुछ कहे बगैर ही अपने कमरे में जा लेट गई और बाहर की आह्टें लेती रही और अमर की मोटर सायकल के खड़े होते ही डर के मारे कांप सी गई।और फिर अमर और मां की फुसफुसाट करने की आवाजें आने लगी और बस इतना समझ आया कि वे लोग पापा के घर आने का इंतजार कर ने की बात रहे थे।
लेकिन सीमा के लिए अब चार घंटों का इंतजार बड़ा करना बहुत कठिन था,वह सोच रही थी कि पापा को पता चलते ही वे उसे बहुत डांटेंगे और शायद एक दो चपेडें भी जड़ दी भी जाएं,इन सब के लिए वह अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी।ये सब सोचते सोचते कब उस की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला और जब आंख खुली तो उसके पापा पानी का ग्लास ले सामने खड़े हुए थे।वह एक दम से उठ बैठी ,उसके पापा ने उसे पानी दे हाल चाल पूछा लेकिन रोहन के बारे में या जो कुछ हुआ था उसके बारे में कुछ नहीं पूछा और उसकी मां से चाय बनाने के लिए बोल ,सीमा का हाथ पकड़ उसे भी डाइनिंग टेबल पर ले गए।उसकी मां चाय के साथ कुछ बिस्किट्स और नमकीन भी लाई थी जो सब ने अच्छी तरह खाया लेकिन सीमा ठीक से नहीं खा –पी पाई।
वह हैरान थी कि क्यों कोई प्रतिघात नहीं हुआ था उसके परिवार वालों की ओर से।दूसरे दिन जब वह कॉलेज जाने के लिए तैयार हुई तो उसकी मां ने उसे रोका और बोली कि वे लोग उसी शाम को घूमने के लिए कोई पहाड़ी स्थान पर जा रहे थे तो उसे अपना बैग तैयार कर लेना चाहिए ताकि जब उसके पापा आते हैं तो वे लोग निकल सके।वह हैरान थी लेकिन वापस अपने कमरे में जा कुछ सोचते सोचते अपने कुछ जोड़े कपड़े अलमारी से निकल एक अटैची में तह लगा रखने लगी।फिर सोचा कि रोहन को तो बताना पड़ेगा कि वह कुछ दिनों के लिए मिल नहीं पाएंगे लेकिन बताएं भी तो कैसे।वह एक तरह से उसके पापा के व्यवहार से कृतघ्न सा महसूस कर रहीं थी। कहां डांट डपट और दो तीन चांटों की जगह प्यार भरा व्यवहार और जैसे कुछ भी नहीं हुआ वैसा माहौल, कुछ तो अजीब था ही ,किंतु क्या था ये वह सोच ही नहीं सकी।शाम को उसके पापा थोड़ा जल्दी ही आ गए थे,जैसे ही वे गुसलखाने से बाहर आए उसकी मां ने सब के लिए चाय लाई और सब चाय खत्म कर गाड़ी में बैठ निकल पड़े।उसका मन कर रहा था की उड़के रोहन के पास चली जाए लेकिन गाड़ी तो उसे रोहन से दूर लिए जा रही थी।कुछ घंटों बाद वे लोग पहाड़ के उपर पहुंच गए थे और होटल को ढूंढ कर समान ले अपने कमरों में गए।उसके पापा और मां एक कमरे में थे और वह अपने भाई अमन के साथ कमरे में रहने वाली थी।
अमन भी खुश था,उसे पापा के प्लान का पता चल चुका था।शाम की चाय के बाद सब पार्क में घुमके वापस आए तो अमन ने ताश की गड्डी निकली और सब खेलने लगे किंतु सीमा का मन खेलने में नहीं लग रहा था बस रोहन के खयाल में ही उलझी रही थी।कब वह हार गई उसका पता ही नहीं चला।रात भर करवटें बदल बदल के बिताई और सुबह में उठी तो सिर दर्द और बदन दर्द से परेशान इधर उधर चक्कर काटती रही लेकिन मन कहीं भी नहीं लग रहा था।थोड़ी देर बाद कुछ लोग को मिलने उसके पापा गए और जब वापिस आयें तो बहुत खुश थे।उसकी मां के साथ बातें करने लगे।उसकी मां ने उसे कहा कि शाम को वो लोग किसी के साथ डिनर पर जाने वाले थे। और उसको ठीक से तैयार होने के लिए भी बोला।और जब उन लोगों से मिली तो सारी बातें समझ में आ गई।जिस से मिलना था वो लड़के वालें लोग थे जो सीमा को देखने आएं थे।और सीमा एकदम ही उदास सी मूरत बन यंत्रवत ,सब कुछ सुनके भी उसे समझ नहीं रही थी। वह खा भी रही थी किंतु स्वाद का पता ही नहीं चल रहा था।उदास सी थी किंतु उसे सब पता चल रहा था और उसने तय किया था कि लड़के को अकेले में मिलेगी तो सब बता देगी किंतु वह मौका भी नहीं मिला।दूसरे ही दिन उनका रोका और फिर सगाई और शादी भी हो गई।बहुत चाहा कि रोहन को बतादें कि उसके साथ क्या हो रहा था,लेकिन हर वक्त भाई और मां का पहरा लगा रहता था।कुछ रिश्तेदार भी आयें थे,उसके पापा ने डेस्टिनेशन वेडिंग का बहाना कर शादी निबटा दी थी।दूसरे दिन सुबह सीमा की बिदाई भी हो गई।पता नहीं उसके पापा ने इतना सारा इंतजाम कैसे कर लिया और उसकी शादी आदि एक स्वप्न सा लग रहा था।जब वह ससुराल के लिए विदा हुई तो न ही उसके ससुराल के घर,गली या शहर का पता था और न ही ससुराल वालों के नाम पता था।सिर्फ उसके पति का नाम जो शादी की विधि का दौरान पंडितजी ने लिया था वह,तरुण,पता था।
जब ससुराल पहुंची तो एकदम सामान्य सा,छोटा सा घर था और वैसे ही फर्नीचर था। न ही दीवारों को कलर लगा था और न ही खिड़की दरवाजों पर।रस्मों रिवाजों से उसका स्वागत हुआ और घर की दहलीज लांघ घर की लक्ष्मी बन गृहप्रवेश हो गया।पहले उसने सोचा सुहागरात से पहले रोहन के बारे में तरुण को सब कुछ बता देगी किंतु बाद में सोचा कि अब इन सब बातें बताने के लिए बहुत देर हो चुकी थी।तरुण को बताने से तरुण की क्या प्रतिक्रिया होगी और घरवालों का भी सोचना कैसा होगा सब सोचने के बाद उसने चुप रहने की ही सोची।इस नए घर में प्रताड़ना सहने की उसमें हिम्मत नहीं थी।और उसने चुपचाप उस मध्यमवर्गीय घर की शरणागति को स्वीकार कर लिया,मजबूरी में ही सही।
और अहिस्तासे कब जिंदगी उन राहों पर चल पड़ी और वह रोहन को नहीं भुलाकर भी आगे बढ़ती जिंदगी के एक के बाद एक मकाम हासिल करती चली गई पता ही नहीं चला।बेटी क्षमा का जन्म उसके हजारों जख्मों पर मरहम लगा गया।उसकी एक एक मुस्कान पर वारी जाने लगी सीमा और जिंदगी कुछ संवर सी रही थी।और एकदिन टीवी पर किसी विचारक के साक्षात्कार को सुन चौक सी गई वह,वो था रोहन जो रामायण,महाभारत आदि विषयों पर इस युग के अनुरूप टिप्पणीयां कर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रमाण दे रहा था।हतप्रभ सी खड़ी उसे देख रही थी वह जो कभी उसका अपना हुआ करता था।साक्षात्कार के अंत में कुछ अंतरंग सवालों की बारी आई जिसे सुन रोहन आंखे भर आई थी।साक्षात्कार लेने वाली युवती ,जिसका नाम दीपा था वह सवाल पर सवाल दाग रही थी और रोहन सौम्य हो जवाब दे रहा था।
दीपा:रोहनजी आपकी शिक्षा जहां पर हुई थी?
रोहन: एक गांव में जहा मेरे पापा एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क थे वहां मेरी शुरुआती शिक्षा हुई और एक छोटे शहर के बड़े कॉलेज में पढ़ा हुं में।
दीपा: क्या अभी तक शादी नहीं करने के पीछे कोई खास वजह?
रोहन :(आवाज में थोड़ा दर्द आया और बोला) इस मामले में आप कुछ नहीं पूछे तो अच्छा हैं,ये प्रकरण मैंने सहेज कर रखा हैं तो कृपया उसे वही पर रहने दें।
और दीपा सवाल पर सवाल पूछती रही लेकिन सीमा को आज शादी के इतने बाद भी रोहन की आवाज और बातें सुन जो दुःख हुआ वह उसके चेहरे पर दिखने लगा था तो उसकी सास की निगाह उसके आंखों में थमे आंसू पर पड़े उसके पहले वह उठ कर रसोईघर में चली गई और अनायास ही फफक फफाक कर रोने लगी।
उसे पता भी नहीं चला कि कबतक रोती रही वह।बाथरूम में गई और मुंह धोया और आयने में देखा तो आंखे सूजी हुई थी और चेहरा भी कुम्हला गया था।कुछ देर खुद की शक्ल देखती रही और अपने शयनकक्ष में जा बिस्तर पर लेट गई और अतीत से बाहर निकल ने की कोशिश करते करते कब सो गई पता ही नहीं चला।
सुबह ही उठी थी वह,थकान और दर्द से बदन टूट रहा था।बड़ी मुश्किल से उठ कर बाहर निकल कर रसोई घर की और जा रही थी तो चक्कर खा के गिर पड़ी और बेहोश हो गई।जब होश आया तो बिस्तर पर पड़ी थी और सामने डॉक्टर बैठे थे,और उसके पति और सास ने उसकी और देख पूछ ही लिया क्या हो गया था उसे।वह चुप थी तो सास ने बताया कि शामको तो अच्छीभली टीवी देख रही थी किंतु बाद में क्या हुआ वो उसको समझ नही आ रहा था।वह भी चिंतित थी कि अब क्या होगा सीमा का।डॉक्टर भी दवाइयां दे कर चला गया और घरवाले भी अपने अपने काम में लग गए।सीमा बिस्तर से लग कर रह गई लेकिन मन में एक टीस थी बेवफाई की ,वही उसे खायें जा रही थी।आत्मग्लानि से घिरी सीमा धीरे धीरे अपनी ही नजरों से गिरती जा रही थी और सेहत ओर खराब होने लगी और वह कमजोर होने लगी।दिनों के बाद हफ्ते और महीने बीतने लगे लेकिन सीमा की सेहत में कोई फर्क नहीं आया।और अब एक साल होने को था लेकिन बिस्तर था कि उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था।रोहन की याद से भी ज्यादा उसे अपनी और से उसको जो दर्द और पीड़ा पहुंची थी उसके अपराधबोज से वह दबी जा रही थी।दिमाग से उसकी शादी का वाकया निकल नहीं रहा था।जो कुछ भी हुआ था वह उसकी इच्छा विरुद्ध हुआ था लेकिन सजा तो उसके साथ रोहन को भी मिली थी।बल्कि रोहन को ज्यादा सजा मिली थी,वह अभी तक अकेला ही था, न कोई साथी, न हमदर्द और न ही कोई हमराज ,अकेले ही सब कुछ सहने वाला ,एकांकी जीवन।उसे साक्षात्कार के समय पूछे गए प्रश्नों के समय की उसी मुख मुद्रा पर आए भावों को वह भूल नहीं पा रही थी।एक बेचारगी,अकेलापन और क्या क्या नहीं था उसके भावों में।एक इतने ख्यातनाम विद्वान के ये हालत सिर्फ उसीकि वजह से थे ये भी वह जान चुकी थी।पहले कई बार उसकी याद आती भी थी किंतु वह भी शादी करके स्थाई हो चुका होगा ये सोच कर मन को माना लेती थी।लेकिन जब से उसे ये ज्ञात हुआ कि वह उसकी विरहा की आग में जलता जलता राख होने की और जा रहा था तो वह भी टूट सी गई।
अब उसका मन मनाने से भी नहीं मानता था कि रोहन सुखसे जी रहा होगा।जब से उसका उदास सा जवाब सुना था ,जो उससे पूछे गए प्रश्न का था ।कितना भी मन को मनाती थी कि उसकी बेटी और पति की और भी उसका फर्ज हैं,उसे बिस्तर छोड़ उठकर अपने कार्यों में व्यस्त रहकर रोहन को भूल जाना चाहिए किंतु जैसे कुछ भी उसके बस में नहीं था।धीरे धीरे वह बिस्तर की ही हो कर रह गई।आंखो के काले काले गढ्ढे , फीका सा रंग और सूखे सूखे होठ , एक विवश सी लग रही थी वह।घर में भी सब डर रहे थे कि उसे कोई बड़ी बीमारी ने तो नहीं पकड़ लिया,इसी चिंता में उसके पति ने डॉक्टर से बात भी की ,किंतु डॉक्टर को भी उसकी इस हालत को देख हैरानगी हो रही थी ।क्योंकि उसे कोई बीमारी तो थी ही नहीं,सभी रिपोर्ट्स नोर्मल ही आ रही थी।तरुण अब चिंतित हो अपने साले साब से मिलने चले गए और सीमा के बारे में शादी के पहले ,कॉलेज के दिनों के बारे में पृच्छा की किंतु अमन था कि बातें बनाता रहा।लेकिन जब तरुण ने संजीदगी से पूछा तो उसने रोहन के बारे में और उनकी शादी किन हालातों में की गई थी सब कुछ विस्तार से बता ही दिया।
तरुण सीधा ही रोहन के घर का पता ढूंढ वहां पहुंच गया।उसे रोहन का पता ढूंढने में ज्यादा तकलीफ नहीं हुई क्योंकि वह काफी मशहूर हो चुका था।जब रोहन के घर पहुंचा तो पहले तो दरवान ने उसे रोका लेकिन ज्यादा आग्रह करने पर उसके मित्र और सेक्रेटरी को बुला उसे मिलवा दिया।जब अमन ने उसे बताया कि वह रोहनजी से मिलना चाहता था तो उसे चार दिन बाद मिलने का समय दिया।अमन ने काफी आग्रह किया किंतु वह मान नहीं रहा था तब तरुण ने कहा कि वह रोहन को बताएं कि सीमा के पति उससे मिलने आएं हैं ।वह चला गया लेकिन जब वापस आया तो उसने विनम्रता से बात करते हुए अंदर जाने के लिए कहा।जब तरुण अंदर गया तो रोहन ने उठ कर तरुण का स्वागत किया और आने का प्रयोजन पूछा।जब तरुण ने पूरे हालत को बयां किया तो रोहन के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आई ,फिर सीमा को सेहत के बारे में कुछ चर्चा की और उसने सीमा से मिलने की इच्छा व्यक्त की तो तरुण ने खुशी खुशी अपने घर आने का निमंत्रण दिया और अपने आंसू छुपाता हुआ बाहर निकल गया।पूरे रास्ते सीमा के प्रति उसका और परिवार के सभयों का उपेक्षित व्यवहार और सीमा की सहनशक्ति से भरा व्यवहार की याद आई।कितनी परेशानियों से सब ने उसे घर परिवार में स्वीकार किया गया था।इन्हीं सोचों में कब घर पहुंच गया पता ही नहीं चला।
दूसरे दिन सुबह सुबह रोहन का फोन आया और १० बजने से पहले ही वह आ पहुंचा।जब सीमा के कमरे में वह तरुण के साथ पहुंचा तो सीमा आंखे बंद कर लेटी हुई थी या शायद सो रही थी।लेकिन आहट होने पर आंखे खोली तो तरुण के साथ रोहन को खड़ा देख सकपकाई और उठके बैठ ने की कोशिश करने लगी तो तरुण उसके पास जा उसे लेटे रहने को कहा।पास में पड़ी कुर्सी पर रोहन बैठ गया और सीमा की और देख सोच ने लगा कि कैसी हालत बना ली थी अपनी सीमा ने।तरुण चाय लाने के बहाने वहां से बाहर हो लिया और रोहन और सीमा अकेले रह गए कमरे में तो सीमा ने रोहन की और प्रश्नसूचक नजर से देखा तो रोहन से बोलते नहीं बन रहा था।गले में से शब्द नहीं निकल रहे थे,अवरुद्ध सा गला शब्दो को निकलने से रोक रहे थे किंतु आंखे आंसुओं को रोक नहीं पाई और इतने सालों का दर्द रोहन की आंखों से बारिश की तरह बहने लगे।और उसे देख सीमा की आंखों से भी अश्रुधारा बहने लगी और क्रुश हुई काया कांपने लगी।दोनों ऐसे कितनी देर एक दूसरे को देख रोते रहे पता ही नहीं लगा लेकिन जब तरुण चाय के कप के साथ आया तो दोनों ने अपने आंसुओं को पोंछ लिए।तरुण भी गंभीर हालत को देख चाय दे कर एक और खड़ा हो गया।बिना कुछ बोले रोहन चला गया न ही पानी या चाय पी पाया रोहन,सिर्फ इतना पूछा कि दूसरे दिन भी वह आएं क्या।और तरुण की हां सुनते सुनते जल्दी से कमरे से निकल गया शायद वह अपने दुःख और आंसुओं को छुपाना चाहता हो।
जब दूसरे दिन सुबह सुबह ही वह आ गया था।तरुण के अभिवादन का जवाब दे उसके साथ सीमा के कमरे की और चल पड़ा।सीमा की कृष काया पलंग में पड़ी थी किंतु उसके चेहरे पर अगले दिन जैसी व्यथा की जगह शांति थी।तरुण ने उसके हाथ को छू कर उठाया तो हल्के से आंखे खोल पहले तरुण को और फिर उसके पीछे खड़े रोहन को देख उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई और धीरे से आंखे बंद हुई और चेहरा धीरे से दाई और लुढ़क गया।तरुण और रोहन दोनों अवाक से सीमा की देह से चेतना को खत्म होती देखते रहे और चेतना सभी दुखों से ,रिश्तों से दूर दूर कहीं चली गई।अपनी बेवफाई के लिए अपनी जान का बलिदान कर अनंत यात्रा पर निकल गई थे सीमा।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद


Related Posts

Story- Ram ki mantripaarishad| राम की मंत्री परिषद

December 28, 2023

राम की मंत्री परिषद -7 राम कुटिया से बाहर चहलक़दमी कर रहे थे, युद्ध उनके जीवन का पर्याय बनता जा

Kahani: van gaman | वन गमन

November 26, 2023

वन गमन इससे पहले कि राम कैकेयी के कक्ष से बाहर निकलते , समाचार हर ओर फैल गया, दशरथ पिता

लघुकथा-सजी हुई पुस्तकें

October 8, 2023

लघुकथा-सजी हुई पुस्तकें बाॅस के एयरकंडीशन आफिस में घुसते ही तिवारी के चेहरे पर पसीना आ गया। डेस्क पर पड़ी

कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan

September 21, 2023

कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan प्रेम बाबू का बड़ा बेटा हरिनाथ शहर में अफसर के पद पर

laghukatha-eklavya-ka-angutha

July 31, 2023

लघुकथा-एकलव्य का अंगूठा laghukatha-eklavya-ka-angutha  स्कूल यूनीफॉर्म का मोजा पहनते ही पांच में से तीन अंगुलियां बाहर आ गईं। विधवा मां

Laghukatha -Mobile | लघुकथा- मोबाइल

July 18, 2023

लघुकथा- मोबाइल  अगर कोई सुख का सही पता पूछे तो वह था गांव के अंत में बना जीवन का छोटा

PreviousNext

Leave a Comment