कविता-मां ही जन्नत
न मैं मंदिर पुजू न मस्जिद और न ही गुरूद्वारा,
मां के चरणों में ही समाई है देखो ये संसार सारा।
मां से ही है मेरा ये जीवन और संसार मां के चरणों में हरिद्वार।
फिर क्यों पुजू मैं किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा की मूरत।
लिए हर बार अवतार और बनें मां नाम के पुजारी।
नहीं जाना मुझे किसी मंदिर मस्जिद और जन्नत।
मां की ममता ही है मेरे जीवन का आधार।
मां ही है इस दुनिया में सबसे बड़ी ज्ञानी।।
कुमारी गुड़िया गौतम (जलगांव) महाराष्ट्र






