जैसे
रेगिस्तान में प्यासे
पानी की तलाश करते हैं
वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी
छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं।
अब भगवान ही जाने
उनके साथ क्या होता होगा —
जिनकी यह तलाश
कभी पूरी नहीं हो पाती होगी।
उनके दुख, दर्द और संघर्ष में
न जाने कितनी गहराई होगी
और न जाने कितनी ऊँचाई
छिपी होगी उनकी आँखों में।
-प्रतीक झा ‘ओप्पी’





