Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Jitendra_Kabir, poem

एक अभिशाप- जितेन्द्र ‘कबीर’

एक अभिशाप एक तरफ हैं…घर में बेटी के जन्म लेने परमायूस होने वाले लोग,लेकिन बेटे के जन्म परपूरे गांव, रिश्तेदारी …


एक अभिशाप

एक अभिशाप-  जितेन्द्र 'कबीर'
एक तरफ हैं…
घर में बेटी के जन्म लेने पर
मायूस होने वाले लोग,
लेकिन बेटे के जन्म पर
पूरे गांव, रिश्तेदारी में मिठाइयां बांटकर
खुशियां मनाने वाले लोग

बेटियों के अन्नप्राशन, जन्मदिन और
मुण्डन संस्कार महत्व न देकर
बेटों के समय पूरे समाज को
धूमधाम से भोज खिलाने वाले लोग,

बेटियों को कम खर्च पर
सरकारी विद्यालयों में थोड़ा बहुत पढ़ाकर
उच्च शिक्षा के लिए पैसों की तंगी का
हवाला देकर
बेटों की शिक्षा महंगे निजी स्कूल-कॉलेजों से
करवाने वाले लोग,

बेटों की ज्यादातर गलतियों को
नजर अंदाज करके
बेटियों को खाने, पहनने के मामले में भी
जमकर नसीहतों की घुट्टी पिलाने वाले लोग,

बेटों की शादियों में दूसरे लोगों के देखा-देखी
वधु पक्ष को अपनी मांगों की
लम्बी चौड़ी लिस्ट थमाते लोग,
और अगर उनमें रह जाए कोई कमी पेशी
तो शारीरिक-मानसिक यातनाएं दे देकर
वधू का जीना दूभर बनाने वाले लोग,

यहां तक कि किसी औरत का पति
मर जाने पर भी उसे ही इस बात के लिए
जिम्मेदार ठहराने वाले लोग,

मौत के बाद की रस्मों में तरह तरह के
रीति-रिवाजों का हवाला देकर
औरत के मायके वालों का
अधिकतम खर्चा करवाने वाले लोग,

और दूसरी तरफ…
यौन दुर्व्यवहार के मामलों में
लगभग अप्रासंगिक हो चुके हमारे कानून
और हमारी न्यायिक व्यवस्था,
खुद ऐसे मामलों में फंसे हमारे
असंवेदनशील जनप्रतिनिधि हैं
इस देश में बेटी के जन्म को
एक अभिशाप बनाने वाले लोग।

जितेन्द्र ‘कबीर’


Related Posts

रसेल और ओपेनहाइमर

रसेल और ओपेनहाइमर

October 14, 2025

यह कितना अद्भुत था और मेरे लिए अत्यंत सुखद— जब महान दार्शनिक और वैज्ञानिक रसेल और ओपेनहाइमर एक ही पथ

एक शोधार्थी की व्यथा

एक शोधार्थी की व्यथा

October 14, 2025

जैसे रेगिस्तान में प्यासे पानी की तलाश करते हैं वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं। अब

खिड़की का खुला रुख

खिड़की का खुला रुख

September 12, 2025

मैं औरों जैसा नहीं हूँ आज भी खुला रखता हूँ अपने घर की खिड़की कि शायद कोई गोरैया आए यहाँ

सरकार का चरित्र

सरकार का चरित्र

September 8, 2025

एक ओर सरकार कहती है— स्वदेशी अपनाओ अपनेपन की राह पकड़ो पर दूसरी ओर कोर्ट की चौखट पर बैठी विदेशी

नम्रता और सुंदरता

नम्रता और सुंदरता

July 25, 2025

विषय- नम्रता और सुंदरता दो सखियाँ सुंदरता व नम्रता, बैठी इक दिन बाग़ में। सुंदरता को था अहम स्वयं पर,

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

Next

Leave a Comment