Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Priyanka_saurabh

आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी?

आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी? आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी? …


आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी?

आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी?
आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी?

देश का जूडिशरी सिस्टम अभी भी तेज गति से काम नहीं कर रहा है जिसका रिज्लट अपराधियों के बरी हो जाने के तौर पर सामने आता है। अदालत में जो केस जितना अधिक लंबा चलता है उससे लोगों की रूचि खत्म होती जाती है। यदि कोई बड़ा मामला होता है और उस केस में अदालत से फैसले के लिए सिर्फ तारीख ही तारीख मिलती रहती है तो उस केस से लोगों का दिलोदिमाग हट जाता है। कई बार मुद्द्ई टूट जाते हैं। इसमें कई बार पुलिस की टीमें भी दोषी होती है, वो देर से चार्जशीट फाइल करती है, इस वजह से कोर्ट में तारीख मिलती रहती है। वकील भी मामलों में देरी से फैसला करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं वो केस को लंबित करते चले जाते हैं। यदि पुलिस पर्याप्त सबूतों के साथ केस फाइल करे और अदालत जल्द फैसला सुनाने पर आमदा हो तो आरोपी छूटने नहीं पाएंगे।

प्रियंका सौरभ
देश में जूडिशरी और पुलिसिंग की लचर व्यवस्था के चलते ही कई गंभीर से गंभीर मामलों के आरोपी भी अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं। इनके बरी हो जाने के बाद बौद्धिक वर्ग तमाम तरह के सवाल उठाने शुरू कर देता है। उसके बाद सिस्टम के उन लूपहोल्स पर चर्चा होती है जिसके कारण अपराधी बरी हो जाते हैं मगर ये सब सिर्फ कुछ दिनों तक ही रहता है उसके बाद फिर सिस्टम उसी तरह से अपने हिसाब से चलने लगता है। इसमें सुधार नहीं हो पाता है। कोई केस जितने लंबे समय तक अदालत में पेडिंग रहता है उसका फैसला उतना ही कमजोर तरह का आता है। यदि अदालत की ओर से कोर्ट में केस के लिए तारीख पर तारीख ली जाती रहती है तो उसका रिजल्ट भी अच्छा नहीं आता है। लंबे समय तक केस चलने के दौरान उस मामले से जुड़े अधिकारियों का तबादला हो जाता है, कई गवाह मर चुके होते हैं। सबूत खो जाते हैं। इन सभी का फायदा अपराधियों को मिलता है।

देश का जूडिशरी सिस्टम अभी भी तेज गति से काम नहीं कर रहा है जिसका रिज्लट अपराधियों के बरी हो जाने के तौर पर सामने आता है। अदालत में जो केस जितना अधिक लंबा चलता है उससे लोगों की रूचि खत्म होती जाती है। यदि कोई बड़ा मामला होता है और उस केस में अदालत से फैसले के लिए सिर्फ तारीख ही तारीख मिलती रहती है तो उस केस से लोगों का दिलोदिमाग हट जाता है। कई बार मुद्द्ई टूट जाते हैं। इसमें कई बार पुलिस की टीमें भी दोषी होती है, वो देर से चार्जशीट फाइल करती है, इस वजह से कोर्ट में तारीख मिलती रहती है। वकील भी मामलों में देरी से फैसला करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं वो केस को लंबित करते चले जाते हैं। यदि पुलिस पर्याप्त सबूतों के साथ केस फाइल करे और अदालत जल्द फैसला सुनाने पर आमदा हो तो आरोपी छूटने नहीं पाएंगे।

कई बार पुलिस की जो जांच पड़ताल होती है उसमें कई सारी खामियां रह जाती है, इसका पूरा लाभ अपराधियों को मिलता है। किसी अपराधिक घटना में शामिल अपराधियों का उससे बरी हो जाना सिस्टम के मुंह पर तमाचा सरीखे होता है। जूडिशरी लंबे समय तक मामले की सुनवाई के लिए तारीख देता है। कई बार लंबी सुनवाई के दौरान गवाह टूट जाते हैं, उनकी मौत हो जाती है, वकीलों की भी रूचि खत्म हो जाती है। गवाह भी चीजों को भूल जाते हैं। एक बात ये भी है कि जो केस जितना अधिक लंबा चलेगा उसका फैसला उतना ही अधिक खराब आएगा। कोर्ट से पहले पुलिस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। अगर किसी भी क्राइम की पड़ताल अच्छे और वैज्ञानिक तरीके से नहीं की गई है, तो निश्चित रूप से एक्विटल होते रहेगा।

इसके पीछे बड़ी वजह है कि जज सबूत के आधार पर निर्णय देते हैं। एविडेंस नहीं होने की वजह से बहुत सारे गंभीर अपराधों में मुजरिमों को छोड़ दिया जाता है।अपराध से जुड़े किसी भी केस का आधार पुलिस का एविडेंस कलेक्शन है। हमारे देश में पुलिस क्रिमिनल केस को प्रोसिक्युट करती है। पुलिस की ओर से जमा किए गए एविंडेस के आधार पर ही सज़ा मिलती है। अगर हमारे बेसिक पुलिसिंग में डिफेक्ट है, तो सज़ा की तो बात बेमानी है।इसमें सिर्फ पुलिस के ऊपर ही अंगुली नहीं उठती है, ऐसे मामलों में लोअर जूडिशीएरी के ऊपर भी सवाल खड़े हो जाते हैं। सवाल उठता है कि लोअर कोर्ट पुलिस की तरफ से जमा किए गए साक्ष्यों पर ये क्यों नहीं ध्यान देती कि इन्हें जमा करने में वैज्ञानिक तरीकों का ख्याल रखा गया है या नहीं।

ऊपरी अदालतें सारी कानूनी और संवैधानिक पहलुओं की पड़ताल करके एविडेंस को अप्रीशिएट करते हुए ही फैसला सुनाती हैं। लोअर कोर्ट में भी कानून के आधार पर ही फैसला होता है। अगर मान लिया जाए कि फांसी की सज़ा से जुड़े 35 फीसदी मामलों में हाइअर कोर्ट से एक्विटल हो रहा है, तो फिर मेरा मानना है कि लोअर कोर्ट के जो जजेज़ हैं, कहीं न कहीं अपर्याप्त एविडेंस के आधार पर सज़ा सुना देते हैं। इसी वजह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में लोअर कोर्ट के फैसले को पलट देता है।सज़ा देना और सज़ा को बरकरार रखना, इन दोनों में अंतर होता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी ने मर्डर किया है, उसका वीडियो फुटेज भी है, तब भी उसको सज़ा नहीं मिल सकती है, अगर फुटेज का अच्छे तरीके से कलेक्शन नहीं किया गया है।

हमारे यहां एविडेंस एक्ट है, क्रिमिनल प्रोसेज़र कोड है। अगर इनका सही तरीके से पालन नहीं किया गया है, तो ऐसे मामले में लोअर कोर्ट सज़ा दे भी देती है, तो हाइअर कोर्ट में टेक्निकल ग्राउंड पर वो सज़ा बरकरार नहीं रह पाती है। जूडिशीएरी को मजबूत करने की जरूरत है। लोअर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक में सुधार की जरूरत है।न्याय प्रणाली में लोअर जूडिशीएरी की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हमारे देश में लोअर जूडिशीएरी पर्याप्त रूप से डिजिटली साउंड नहीं है। इन अदालतों में वकीलों की गुणवत्ता को भी पर्याप्त नहीं माना जा सकता है। इन अदालतों में वकीलों को बहुत ज्यादा अवसर नहीं मिल पाते हैं। यहीं वजह है कानून के बहुत कम अच्छे जानकार वहां जाकर प्रैक्टिस करते हैं। लोअर जूडिशीएरी में बुनियादी ढांचे की भी कमी है। इन जगहों पर अपर्याप्त नंबर में जज हैं, अपर्याप्त नंबर में सरकारी वकील हैं। ट्रेन्ड वकीलों की कमी है। इन सबकी वजह से सिस्टम में खामियां हैं।

जब आप सुदूर क्षेत्रों में जाएंगे तो पाएंगे कि निचली अदालतों में जज ही एविडेंस लिखते हैं, वहीं बड़े शहरों में इसके लिए स्टेनोग्राफर होते हैं। निचली अदालतों में स्टाफ और फाइल मैनेजमेंट भी एक बड़ा मुद्दा है। लोअर कोर्ट में अपर्याप्त व्यवस्था है। सज़ा देने में अपर्याप्त आधार होने की वजह से ही बाद में फांसी की सज़ा ऊपरी अदालतों में बदल दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट कानून के मापदंड के आधार पर ही फांसी की सज़ा को बदलता है। सुप्रीम कोर्ट की नज़र में निचली अदालतों में कोई न कोई चूक हुई होगी। तभी फांसी की सज़ा बरकरार नहीं रह पाती है। किसी दूर-दराज के इलाके में अपराध होने पर फॉरेंसिक टीम के पहुंचने में ही काफी वक्त लग जाता है। ऐसी जगहों पर पुलिस को फॉरेंसिक के बारे में जानकारी ही नहीं होती है। आपराधिक मामलों में अगर थोड़ा सा भी कोई संदेह होता है, चाहे प्रोसिजर में हो या कलेक्शन ऑफ एविडेंस में हो, तो उसका बेनेफिट आरोपी को जाता है। पुलिस में भी सुधार की जरूरत है। उन्हें फॉरेंसिक जैसे सबूत जमा करने की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। फेयर जस्टिस के लिए पर्याप्त साक्ष्य जुटाने होते हैं। इस पर बहुत संजीदगी से ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

About author 

Priyanka saurabh

प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
facebook – https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/
twitter- https://twitter.com/pari_saurabh

Related Posts

Dekhein pahle deshhit by Jayshree birmi

September 29, 2021

 देखें पहले देशहित हम किसी भी संस्था या किसी से भी अपनी मांगे मनवाना चाहते हैं, तब विरोध कर अपनी

Saari the great by Jay shree birmi

September 25, 2021

 साड़ी द ग्रेट  कुछ दिनों से सोशल मीडिया में एक वीडियो खूब वायरल हो रहा हैं।दिल्ली के एक रेस्टोरेंट में

Dard a twacha by Jayshree birmi

September 24, 2021

 दर्द–ए–त्वचा जैसे सभी के कद अलग अलग होते हैं,कोई लंबा तो कोई छोटा,कोई पतला तो कोई मोटा वैसे भी त्वचा

Sagarbha stree ke aahar Bihar by Jay shree birmi

September 23, 2021

 सगर्भा स्त्री के आहार विहार दुनियां के सभी देशों में गर्भवती महिलाओं का विशेष ख्याल रखा जाता हैं। जाहेर वाहनों

Mahilaon ke liye surakshit va anukul mahole

September 22, 2021

 महिलाओं के लिए सुरक्षित व अनुकूल माहौल तैयार करना ज़रूरी –  भारतीय संस्कृति हमेशा ही महिलाओं को देवी के प्रतीक

Bhav rishto ke by Jay shree birmi

September 22, 2021

 बहाव रिश्तों का रिश्ते नाजुक बड़े ही होते हैं किंतु कोमल नहीं होते।कभी कभी रिश्ते दर्द बन के रह जाते

Leave a Comment