सफलता अपने घर में ही हैं
जब सफलता प्राप्त करनी होती हैं ,तब एक प्रकार का आयोजन होता हैं।जो आजकल के युवकों को कई प्रकार के अभ्यासक्रमों में सिखाया जाता हैं। उसमें बहुत प्रकार के फंडामेंटस सिखाए जाते हैं,जिसमे बिक्री,उत्पादन,आयोजन और नाना प्रकार के पहलूओं का ज्ञान दिया जाता हैं।पहले के जमाने में बच्चे अपने पारिवारिक व्यवसायों को ही अपनाते थे तो उनको अपने व्यवसाय के बारे में बचपन से ही पता होता था। बचपन से ही उन्होंने पिता,चाचा इत्यादि को कम करते देखा होता था।इसलिए व्यवसाय को चलाने की रीत, आने वाले प्रश्नों आदि का ज्ञान रहता था।जैसे तरखान का बेटा खेलते खेलते ही रंदा चलाना सीख जाता था,दर्जी का बेटा भी खेलते खेलते सिलाई मशीन चला लेते थे।
बनिए का बेटा भी कहां से माल लेना हैं,ग्राहकों की रुचि और मांग के अनुसार ही माल की खरीद करना इत्यादि सिख लेता था।यानी कि अपने घर के बड़ों से ही सब सिख लेते थे।
धीरे धीर व्यापार और कारोबार की दशा और दिशा बदलने लगी,रिवाजों के हिसाब से उत्पाद बदलने लगे,सब चीजे थोक में बनने लगी और हरेक व्यवसाय में निपुण कारीगरों या व्यवस्थापकों की मांग होने लगी और अभ्यासक्रमों में बदलाव या नए अभ्यासक्रमों की शुरूआत होने लगी।
अब सही बात करें तो चाहे कितने भी अभ्यासक्रम आएं लेकिन मुख्य रूप से बुनियादी असूल वहीं रहते हैं जो पहले थे।लेकिन जो बुनियादी बाते बता सकते हैं वे और शारिरक दुर्बलता से वे कार्य करने में थोड़े शिथिल हो चुके हैं और जिंदगी से बेजारि आ जाती हैं, तब उनकी अनुभव,राय और सलाह से अगर अपने व्यवसाय का संचालन बेहतर ढंग से कर सकते है। व्यवसाय को चलाने के लिए उनकी सलाह को दखलंदाजी न समाज सलाह का अपने हिसाब से अवमूल्यन कर कार्य पद्धति में ला सकते हैं।उनका अनुभव और अपनी ताकत का समायोजन काफी लाभान्वित हो सकता हैं।वह हैं आपके पिता।
एक कहानी हैं जिसमे पुराने जमाने की बात हैं।
गांव में जवान लड़के लड़कियां मेले में जाया करते थे,कुछ नटखट तो कोई मनचले खूब मजाक मस्ती करते थे।उन दिनों मनोरंजन के ऐसे ही स्त्रोत होते थे।जवान लड़के– लड़कियों का मिलना ,झूले जुलना,तरह तरह की हाटों से खरीदारी करना आदि।
वहीं प्यार की पींगे भी चढ़ जाती थी।ऐसे ही मोहन को साथ के गांव की गोरी पसंद आ गई और फिर दोनों का गोरी के गांव के बाहर मिलना जुलना काफी दिनों तक चलता रहा और दोनों ने तय किया की अब शादी का समय आ गया हैं कुछ करना चाहिए।मोहन ने अपनी बहन को सारी बात बताई और माता– पिता से बात करने के लिए मना लिया।जब उनका रिश्ता लेके गांव के बुजुर्गो और परिवार जनों के साथ गए तो गोरी के घर वालों ने बहुत ही स्वागत किया सब का।जब सर्व सम्मति से रिश्ता तय हुआ तो गोरी की ओर से जो लोग बैठे थे वो बोले कि उनकी और से एक शर्त हैं,सब उत्सुकता से उनकी और देख ने लगे सोचा दहेज की बात होगी ,किंतु उनकी शर्त सुन सब भौचक्के रह गए।उनकी शर्त थी कि बारात में कोई बुजुर्ग नहीं आएगा।
अब जब रिश्ता तय हो गया था तो उनकी बात अनमने ही सही ,माननी ही पड़ी।
अब सब युवान लडकें– लड़कियों की बारात गाती बजाती गोरी के गांव पहुंची,खूब स्वागत हुआ और जानवासे में ठहराया गया।
दूसरे दिन विधि–विधान से शादी की रस्में शुरू हुई।जब फेरों का समय हुआ तो गोरी के परिवार और संबंधियों की ओर से कहा गया कि ये जो गांव के बाहर तालाब हैं उसे दूध और घी से भरदें । फेरें उसके बाद ही होंगे।
सारे युवक युवतियां सकते में आ गएं ,इज्जत का सवाल था,सब एकदूसरे की और देखने लगे,लेकिन उस प्रश्न का हल क्या होगा यह सोच भी नहीं पाते थे।मोहन का एक सयाना दोस्त था वह धीरे से खिसक जनवासे पहुंचा और जब वापस आया तो आत्मविश्वास से उसका चेहरा दमक रहा था।
वह आके मोहन के कान में कुछ बोला,और मोहन भी खुश हो गया।
उनसे बोला हम तो तैयार हैं तालाब को घी और दूध से भरने के लिए,किंतु आप उसमें से पानी तो निकाल दें ताकि हम भर दे घी दूध से।
लड़की वालों के मुंह खुल्ले के खुल्ले रह गए। उन मे से एक बोला कौन आया हैं तुम लोगो के साथ,जरूर कोई बुजुर्ग हैं आप के साथ ,लेकिन जो बात कही थी वो तो पूरी हो ही नही सकती थी तो कहां से करेंगे तालाब खाली और शादी के फेरें हो गए और खुशी खुशी गोरी विदा हो मोहन के घर आई।जब सारी रस्में पूरी हो गई तो मोहन ने अपने वोही दोस्त को बुला पूछा की उसे ये सुझाव किसने दिया था? तो वह बोला की मैंने अपने बिस्तरों की बेल गाड़ी में अपने दादाजी को छुपा के रखा था,क्योंकि मुझे उनकी शर्त के पीछे शरारत नज़र आई थी।
देखी अनुभवी की राय?
जयश्री बिर्मी
निवृत्त शिक्षिका
अहमदाबाद


