कुत्ते (लघु कथा )
नगर भ्रमण कर गण राजा अपने राजभवन मे लौटे औऱ बग्घी राज्यांगन में छोड़कर शयनकक्ष मे चले गये ।
रात्रि को अचानक वर्षा होने लगी जिससे बग्घी का चर्म पानी मे भींगकर फूल.गया ।
रात मे राजभवन के कुत्ते घूमते हुये आये औऱ भींगे चर्म को कई जगह से खा गये ।
सुबह राजा तक खबर पहुँचाई गई ।उन्हें बताया गया कि राज्य के आवारा कुत्तों का दल नाली से अंदर घुस आया औऱ राजबग्घी का चर्म कई जगह से खा गये ।
यह सुनकर गण राजा आगबबूला हो.उठे ,इन कुत्तों की यह हिम्मत ! इन्हें पकड़ोऔऱ राजद्रोह मे दरबार मे पेश करो ।
राजाग्या के पालन मे राज्य के सिपाहियों का दल राज के उन कुत्तों को पकड़ने लगे जो पट्टा धारी नहीं थे ।
एक एक करके बहुत सारे कुत्ते राज्यांगन मे इकट्ठे कर लिये गये ।
राजा क्रोधित होकर बोले , मेरे राज्य मे इतना दुस्साहस किस कुत्ते ने किया है ।
सभी कुत्ते थर थर काँपने लगे । नीचे मुख कर पूछ हिलाते रहे ,किन्तु किसी ने अपराध स्वीकार नहीं किया ।
राजा के दणडाधिकारी ने अपराध.कबूलवाने के लिए कुत्तों को कोड़े मारने का हुक्म दिया ।
स्वछंद घूमने वाले कुत्ते डर कर काँपने लगे ।तभी उनमें से एक बुजुर्ग कुत्ता पंक्ति से निकल कर राजा से बोला , राजन्! हुक्म हो तो मै अपराधी कुत्ते से सच उगलाने प्रयास कँरु ।
बुजुर्ग कुत्ते ने राजा की सहमति से राज भवन मे रहने वाले कुत्तों को एकत्र कराया।
एक राज्य कर्मचारी से मट्ठा मंगवाया ।उसे एक बड़े पा त्र मे डाल दिया ।फिर दूब के.तिनके डालकर मथवा दिया ।
फिर सभी पट्टा धारी राजभवन के कुत्तों को मट्ठा पीने का हुक्म दिया ।
दुम हिलाते हुये सभी कुत्ते एक साथ भट्ठा पीने लगे ।थोड़ी देर मे उनमें से दो तीन कुत्तों ने उल्टी कर दी और चर्म के टुकड़े बाहर आ गिरे ।
राजा को तब एहसास हुआ कि उसके सिंहासन पलटे जाने का खतरा स्वछंद घूमने वाले कुत्तों से नहीं नमक हराम कुत्तों से है जो आँख बंद कर दुम हिलाते रहते हैं ।
अब समय बदल गया है ।राजतंत्र से लोक तंत्र आ चुका है । पर कुत्तों का भौंकना बदस्तूर जारी है ।
* शैलेन्द्र श्रीवास्तव .
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