भ्रष्टाचार के कुदरती भयंकर नतीजे महसूस किया हूं

भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव भ्रष्टाचार के कुदरती भयंकर नतीजे महसूस किया हूं बेटा बेटी पत्नी को बीमारी ने घेर लिया है मुझे सामाजिक बेज्जती ने लपेट लिया है अब भ्रष्टाचार से तौबा किया है भ्रष्टाचार के कुदरती भयंकर नतीजे महसूस किया हूं बाबू पद से बहुत भ्रष्टाचार लिया हूं जनता को बहुत चकरे खिलाया हूं … Read more

एक राज़ की बात बतलाता हूं| ek raaz ki bat batlata hun

भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव एक राज़ की बात बतलाता हूं एक राज़ की बात बतलाता हूं डिजिटल युग का मैं भी पालन करता हूं बड़े प्राइवेट स्कूल में फीस भरवाता हूं भ्रष्टाचार की मलाई डिजिटली खाता हूं टेबल नीचे कैश लेना बंद किया हूं काम बदले कहीं पेड करवाने आइडिया लाया हूं एजेंसियों के डर … Read more

व्यंग्य -बारहवीं के बाद का बवाल |

व्यंग्य -बारहवीं के बाद का बवाल बारहवीं का रिजल्ट आते ही बच्चों और उनके मां-बाप का बीपी बढ़ने लगता है। उनका टेंशन सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। बारहवीं पास करने वाले लड़के-लड़कियां कौन सी लाइन पकड़ें, कहां एडमिशन कराएं, इस चिंता में गार्जियन मवाली की तरह इधर-उधर भटकने लगते हैं। इस कालेज से उस … Read more

धर्म और जाति की आड़ में छिपता हूं

भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव धर्म और जाति की आड़ में छिपता हूं आज के बढ़ते ट्रेंड की ओर बढ़ रहा हूं कोई आरोप इल्ज़ामअगर महसूस कर रहा हूं तो समाज़ धर्म का पीड़ित हूं कह देता हूं धर्म और जाति की आड़ में छिपता हूं धर्म और जाति को ढाल बनाकर करता हूं मेरी धर्मजाति … Read more

शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं

 भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं पद और कुर्सी से बेवफाई किया हूं मैंने खून चूसा अब बीमारी को चुसवा रहा हूं  जनता और शासन से धोखे का अंजाम समझ रहा हूं शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं शासन से वफादारी करना समझा रहा हूं  बेवफाई का … Read more

मुझे बहुत ज़लनखोरी होती है

 भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव मुझे बहुत ज़लनखोरी होती है उसको बहुत सफ़लता मिलती है तो  उसपर मां लक्ष्मी की कृपा होती है तो  समाज में उसका मान सम्मान बढ़ता है तो  मुझे बहुत  ज़लनखोरी होती है  उसका आर्टिकल कविता बहुत पेपरों में छपते हैं तो  व्हाट्सएप फेसबुक में उसकी तारीफ़ होती है तो  उसकी पोस्ट … Read more

क्योंकि ज़लनखोरों को मिर्ची लग रही है

 भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव  क्योंकि ज़लनखोरों को मिर्ची लग रही है मेरी कामयाबी से चारों और खुशी मच रही है  मेरे ऊपर सरस्वती के ज्ञान की बारिश हो रही है  इसीलिए प्रतिद्वंदियोंद्वारा खिचड़ी पकाई जारही है  क्योंकि ज़लनखोरों को मिर्ची लग रही है  राजनीति की सफलताओं पर बांछें खिल रही है  एक के बाद एक … Read more

व्यंग कविता –बातों में शेर हूं पर काम में ढेर हूं

 व्यंग कविता –बातों में शेर हूं पर काम में ढेर हूं सीज़न में जनता से बड़ी-बड़ी बातें करता हूं  गंभीर कठिन वादे ठस्के से करता हूं  समय आने पर परिस्थितियों पर दोष मढ़ता हूं  बातूनी शेर हूं पर काम में ढेर हूं  दूसरों की सफ़लता देख अपमानित महसूस होता हूं  अपना दोष दूसरों पर मढ़ … Read more

भावनानी का व्यंग्यात्मक भाव

भावनानी का व्यंग्यात्मक भाव–पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं परिवार को वीआईपी सुविधा सुविधाएं देता हूं बच्चों को महंगी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाता हूं हरे गुलाबी बहुत शिद्दत से लेता हूं पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं समझदार समझते हैं भ्रष्टाचारी हूं मेरा ईमान धर्म हरे गुलाबी है पगार केवल दस हज़ार है … Read more

मिलीभगत से जप्त माल को बदल देता हूं

यह व्यंग्यात्मक कविता एक राज्य में हुए जहरीली मदिरा कांड से मृत्यु में बात सामने आई थी कि जब्ती माल को अंदर खाने निकाल दिया गयाथा,जैसा कि अनेकों विभागों में ऐसा होता है कि जप्त माल में हेराफेरी की जाती है इसपर आधारित है। व्यंग्य कविता-मिलीभगत से जप्त माल को बदल देता हूं पद दम … Read more