अस्तित्व इतिहास बनेगी

 अस्तित्व इतिहास बनेगी सुधीर श्रीवास्तव पृथ्वी दिवस की औपचारिकता न निभाइए भू संरक्षण करना है तो  धरातल पर कुछ करके दिखाइए। माना की हम सब औपचारिकताओं में जीने के आदी हो गए हैं, मगर अपना और अपनों का भला चाहते हैं तो सपनों से बाहर आइए। भू बचाना चाहते हैं तो जल, जंगल को बचाइए, … Read more

यही जीवन चक्र है

 यही जीवन चक्र है सुधीर श्रीवास्तव जीवन क्या है यह समझाने नहीं खुद समझने की जरूरत है, अदृश्य से जीवन की शुरुआत पल पल, छिन छिन विकास की गति कितने रंग और दौर दिखाती है नवजात, अबोध और बालपन से चलते हुए बाल्यकाल, तरुणावस्था से होते हुए युवा और फिर प्रौढ़ बनाती है जिंदगी के … Read more

व्यंग्य धरती को मरने दो

 व्यंग्यधरती को मरने दो सुधीर श्रीवास्तव धरती उपज को रही तो खोने दो धरती मर रही है मरने दो। बहुत हलकान होने की जरूरत नहीं है धरती बंजर हो रही है तो हो जाने दो। क्या आपको पता नहीं है? हम संवेदनहीन हो गए हैं इंसान कहां रह गए हम पत्थर हो गए हैं हम। … Read more

लघुकथा बहन की अहमियत

 लघुकथाबहन की अहमियत सुधीर श्रीवास्तव          पहली बार जब रीना ने ऋषभ के पैर छुए तो उसके आँखों में भरे आँसुओं ने उसे हिला दिया। उसने उसके सिर पर हाथ रख दिया।          रीना बिना किसी संकोच उससे लिपट कर रो पड़ी, जैसे अपना सारा दर्द आँसुओं के माध्यम … Read more

कदम

 कदम सुधीर श्रीवास्तव हमें लगता है कि हमारे कदम किसी और को  प्रभावित नहीं करते , पर सच तो यह है कि  हमारा छोटे से छोटा कदम हमारे ही नहीं कइयों के  जीवन में भी असर डालते हैं, कइयों के जीवन में भूचाल भी ला सकते हैं। इसलिए कोई भी कदम  उठाने से पहले विचार … Read more

जब तक है जिंदगी

 जब तक है जिंदगी सुधीर श्रीवास्तव जिंदगी जब तक है गतिमान रहती है, न ठहरती है,न विश्राम करती है। सुख दुख ,ऊँच नीच की  गवाह बनती है। जिंदगी के गतिशीलन में राजा हो या रंक सब एक जैसे ही हैं, छोटे हों या बड़े किसी से भेद नहीं है। जन्म से शुरू जिंदगी मौत तक … Read more

क्या लेकर आया है जो ले जायेगा

 क्या लेकर आया है जो ले जायेगा सुधीर श्रीवास्तव यह कैसी विडम्बना है कि हम सब जानते हैं मगर मानते नहीं हैं कि हम क्या लेकर आये हैं क्या लेकर जायेंगे? खाली हाथ आये थे तन पर कपड़े तो क्या एक रेशा तक नहीं था। फिर भी हम कितने भ्रम में रहते हैं बस! हाय … Read more

स्व विचार जीवन का मकसद

 स्व विचारजीवन का मकसद सुधीर श्रीवास्तव          यूं तो जीवन का कुछ न कुछ मकसद हर किसी का होता है। जिसमें अधिकांशतः उसके या उसके अपनों का स्वार्थ किसी न किसी रूप में छिपा होता है।           मगर वास्तव में जीवन का मकसद सर्वहितकारी, सर्वकल्याणकारी हो तो सबसे … Read more

अनंत यात्रा

 अनंत यात्रा सुधीर श्रीवास्तव शून्य से शिखर तक जीवन की गतिमान यात्रा खुद को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर होने का दंभ आम से खास तक पापी से सन्यासी तक। रूला, लंगड़ा, अपाहिज, कोढ़ी या नर्क से बद्तर जीवन स्वामियों तक सुख सुविधा के अनंत भोगियों तक धन पिपासुओं से धन याचक तक। हर जीव, जंतु, पशु … Read more

व्यंग्य स्वार्थ के घोड़े

 व्यंग्यस्वार्थ के घोड़े सुधीर श्रीवास्तव आजकल का यही जमाना अंधे को दर्पण दिखलाना, बेंच देते गंजे को कंघा देखो! कैसा आ गया जमाना। लंगड़े दौड़ लगाते दिखते अंधे हमको राह दिखाते, लूले हैं खैरात बांटते। चोर उचक्के नेता बनकर शहर शहर सरकार चलाते। उल्टा पुल्टा हो गया सब नहीं किसी की बात मानते, अजब गजब … Read more