कविता – तितली | kavita Titli

कविता :तितली | kavita – Titli  आसमान है रंग-बिरंगीरातों की झिलमिल-झिलमिलऔ तारों की चमक सुनहलीतितली के पंखों – सी उड़ी हुई तितली पूछो कहां तुम्हारा घर है?कहां तुम्हें मिलती है इतनीरंग-बिरंगी आज़ादी …. या फिर रखती हो पौधों परअपने रस का स्वर संवेदऔर अगर तुम बतलाओगीअपनी उड़न कहानी तो … ग़ायब होते देश बिक रहे … Read more

कविता –औरत संघर्ष

कविता –औरत संघर्ष मेरी दोस्त! जब मैंने तुम्हें पढा़,तब मुझे एक जीवंत स्त्रीत्व का बीता हुआ कल स्मरण हो आया..राजनीतिक साहित्य&साहित्यिक राजनीति के सम्पूर्ण लोकोन्मुखी साहित्य मेंवासनात्मक आँखें,जो इस आकाँक्षा में निरत हैं कि उतरते कपडों में सराबोर कर दे ,मेरी राक्षसी रूह को किसी बंद कमरे में। और जो सवाल पैदा करती है बच्चों … Read more

गंगा में काशी और काशी में गंगा

गंगा में काशी और काशी में गंगा बनारस एक ऐसी संस्कृति रूपी  प्राचीनतम धरोहर है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति तन रूपी सौंदर्य से मनोवांछित गंगा की धारा में सस्वर भासमान होना चाहता है ,क्योंकि नित्य प्रातःकाल भगवान भास्कर भी अपनी भास्वर किरणों से गंगा मइया के चरणस्पर्श कर चरणामृत स्वरूप काशी विश्वनाथ का मुक्तभाव से दर्शन … Read more

देश की राजनीति और राजनीति का देश

“देश की राजनीति & राजनीति का देश “ सचमुच! यह तो ‘भारत’ हैभारत! हाँ, वही भारत, जहाँ चाणक्य थे। चाणक्य? हाँ भाई, चाणक्य अर्थात् ‘कौटिल्य’, नाम तो सुना होगा….क्या बताऊँ बेटा! – अब मेरी उम्र हो गयी कुछ स्मरण ही नहीं रहता.. तुम भी तो नहीं बताते… मैं तो युवा हूँ बाबा! पर नौकरी का … Read more

कविता – रातों का सांवलापन

रातों का सांवलापन आकाश रात में धरती को जबरन घूरता हैक्योंकि धरती आसमान के नीचे हैऔर मेरा मनऊपर खिले उस छोटे से फूल कोजो सबको बराबर दिखता हैदिन में नहीं, केवल रातों को दिखाई देता हैमगर सांवली रात हो तो…. आंखें चांद को एकटक घूरती हैंठीक उसी तरह जैसेआसमान नीचे घूरता हैदोनों में अंतर है … Read more

कविता –मंदिर में शिव जी

मंदिर में शिव जी मैं भक्ति का स्वांगी नहीं , पर आस्तिक जरूर हूँहालात बयां करूँया शिकायत मुझे बेल पत्तों की हरियाली मेंभांग की रंगत, धतूरे की सुगंधऔर जल के ऊपरी लिबास परराखी की चमक घिसटती नज़र आ रही हैबावजूद इसके हम सभी सावन में प्रत्येक सोमवार कोमहादेव की वंदना करते हैं‘बिना किसी इच्छा और … Read more

झांसी की रानी पर कविता | poem on Rani laxmi bai

झांसी की रानी पर कविता | poem on Rani laxmi bai रणचंड भयंकर और प्रचंड किया झांसी की रानी नेअपना अखंड विश्वास अमरभारत की वही कहानी मेंदे मिट्टी को अमरत्व औरघोड़े , तलवार निशानी मेंखुद एक भारती माँ बनकर रक्षार्थ हुई मर्दानी में… ~भास्कर दत्त शुक्ल   English version   Ranchand fierce and furiousdid the queen … Read more

Kavita :आत्मायें मरा नहीं करती

आत्मायें मरा नहीं करती आत्मायें मरा नहीं करतीमैंने बचपन में सुना थाकिसी नायाब मुख से वे जिंदा रहती हैंअपने खेतों- खलिहानों मेंएक नन्हें पौधे की तरहपर आज ? आज आत्मायें ही नहीं हैं, तो जीवन का प्रश्न कैसा ? वे मर चुकी हैं वैसेजैसे नीत्शे ने कहा था ईश्वर के लिए!!! About author भास्कर दत्त … Read more

कविता –मैं और मेरा आकाश

मैं और मेरा आकाश मेरा आकाश मुझमें समाहितजैसे मैप की कोई तस्वीरआँखों का आईना बन जाती हैआकाश की सारी हलचलजिंदगी की भाग-दौड़ बन जाती हैसंघर्ष जिंदगी और जिंदगी संघर्ष बन जाती हैलेकिन गाँवों,शहरों में हल्ला होता हैदेखो,पट्ठा मेहनती और परिश्रमी है।जैसे कोई मुकदमें की तारीख पड़ती हैजिससे गाँव शहर और शहर गाँव बन जाता है,उसी … Read more

Kavita : ओ मेरी हिंदी

 ओ मेरी हिंदी मेरी हिंदी मुझे तुम्हारे अंतस् मेंमाँ का संस्कार झलकता हैक्योंकि तू मेरी माँअर्थात् मातृभाषा हैऔर मातृभाषा- मातृभूमि का ही पर्याय है उस मातृभूमि का जिसमें हम सभी जीवित हैंएक साथ संवाद करते हुएसदियों सेबिना किसी आपसी प्रतिरोध के… About author भास्कर दत्त शुक्ल  बीएचयू, वाराणसी