Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

mainuddin_Kohri, poem

माँ – तूम धन्य हो !

 माँ – तूम धन्य हो ! मईनुदीन कोहरी”नाचीज बीकानेरी” माँ … तेरा प्यार – दुलार माँ तेरी ममता माँ ,तूने …


 माँ – तूम धन्य हो !

मईनुदीन कोहरी"नाचीज बीकानेरी"
मईनुदीन कोहरी”नाचीज बीकानेरी”

माँ …

तेरा प्यार – दुलार

माँ तेरी ममता

माँ ,तूने औलाद की खातिर

क्या – क्या नहीं सहा ।

माँ , तुमने मन को मार कर

 समय के साथ -साथ

दृढ़ता से जूझ कर

ज़हर के घूंट पी- पी कर

औलाद को तुमने पाला ।

तुमने सहे हैं ताने

तुमने खाई है फटकारें

सास , ननद , देवरानी – जेठानी की

प्रताड़नाओं को फ़क़त- औलाद की खातिर 

उनकी इच्छाओं – अरमानों को पूरा करने का सपना संजोया था ।

माँ , धन्य है तूँ

आँखों की नीन्द, दिल का चैन -सुकून न्योछावर किया था

औलाद पर ।

क्या औलाद रूपी उस वृक्ष की छाया में

सुख की साँस लेने के इरादे से तो

नहीं पाला था ।

माँ

आज उसी औलाद के मुख से , 

माँ – शब्द सुनने को तरसती हो !

माँ , बड़े जतनों से

मुहँ का नवाला दे कर

सपनों के संसार को

अपनी आँखों के सामने टूटते देखने के लिए

औलाद को पाला था ।

माँ कहाँ गई , तेरी ममता – करुणा दया ,अपनापन की तपस्या -त्याग का फल

क्या तुम यूँ ही टुगर – टुगर देखती -देखती

आँखों में आँसूं छलकते रहने व् ये दिन देखने औलाद को पाला था ।

गरजते झंझावतों , सर्दी – गर्मी – धुप की तपन में 

धतनार वृक्ष की तरह जिस औलाद को कलेजे से लगाकर रखा था , 

आज उसी औलाद के मुख से….

माँ -माँ …

सुनने को व्याकुल क्यों हो ?

  माँ तुम इतनी उदास ,विचलित -लाचार सी

घट – घुट जीने को मजबूर

फुटबॉल सी बन

कभी उस औलाद केकभी …… 

तुम भार बन चुकी हो

क्या मौत से पहले ?

मौत को गले लगाने के लिए

औलाद को पाला था

माँ , तुम धन्य हो !

माँ , तुम 

धन्य हो , माँ

धन्य हो ! धन्य हो !! धन्य हो !!!

मईनुदीन कोहरी “नाचीज़ बीकानेरी”


Related Posts

रसेल और ओपेनहाइमर

रसेल और ओपेनहाइमर

October 14, 2025

यह कितना अद्भुत था और मेरे लिए अत्यंत सुखद— जब महान दार्शनिक और वैज्ञानिक रसेल और ओपेनहाइमर एक ही पथ

एक शोधार्थी की व्यथा

एक शोधार्थी की व्यथा

October 14, 2025

जैसे रेगिस्तान में प्यासे पानी की तलाश करते हैं वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं। अब

खिड़की का खुला रुख

खिड़की का खुला रुख

September 12, 2025

मैं औरों जैसा नहीं हूँ आज भी खुला रखता हूँ अपने घर की खिड़की कि शायद कोई गोरैया आए यहाँ

सरकार का चरित्र

सरकार का चरित्र

September 8, 2025

एक ओर सरकार कहती है— स्वदेशी अपनाओ अपनेपन की राह पकड़ो पर दूसरी ओर कोर्ट की चौखट पर बैठी विदेशी

नम्रता और सुंदरता

नम्रता और सुंदरता

July 25, 2025

विषय- नम्रता और सुंदरता दो सखियाँ सुंदरता व नम्रता, बैठी इक दिन बाग़ में। सुंदरता को था अहम स्वयं पर,

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

Next

Leave a Comment