बेटी का हक
पिताजी की बातें सुन सनाया सन्न हो सोच में पड़ गई। ओह! पिताजी बेटा और बेटी में कितना फर्क रखते है। क्या बेटा ही औलाद कहलाता है,बेटी नहीं ? आज दीदी इतनी मुसीबत में हैं,रहने को छत नहीं।
सोचते-सोचते सयाना उबल पड़ी, ” आपको जो सोचना हैं सोचिए पिताजी।पर मैं तो दीदी को उनका हक दिलवाकर मानूंगी। यह पैतृक संपत्ति है। आपने नहीं उपार्जन किया है। इस संपत्ति में आपके बेटे और बेटी का पूरा हक बनता है।कल ही मैं वकील को बुलवाती हूँ । आपको बेटी का हक देना होगा।
बेटी की बात रामनाथ बाबू ह्क्के- बक्के हो गये। कानूनी हक के विरोध में कोई जवाब न सूझा।




