पुस्तक समीक्षा: ‘ज़िंदगी के उजास’ में भीगती कहानियाँ
साहित्य जीवन का दर्पण होता है और कहानी उसकी धड़कन। जब शब्दों में संवेदना उतरती है, तब वे केवल वाक्य नहीं रह जाते, वे जीवन की सच्चाइयों के साक्षी बन जाते हैं। साहित्य के समृद्ध आंगन में, “ज़िंदगी का उजास” एक रत्न की भांति प्रकट होता है, जहाँ शब्दों के परदे पर जीवन की विविधता और भावनाओं की गहराई उभरती है। उत्कृष्ट साहित्यिक अमृत है। इस संग्रह में नृपेन्द्र अभिषेक “नृप” ने मनोभावों के सूक्ष्म रंगों को परिलक्षित करते हुए प्रेम, त्याग, संघर्ष एवं आशा के संगम को जीवंत किया है। सजग और सहज अभिव्यक्ति के माध्यम से लेखक ने पाठक के हृदय में संवेदनाओं का दीप प्रज्वलित कर दिया है।
लेखक नृपेन्द्र अभिषेक अपने लेखन से हिन्दी साहित्य को एक नई ऊर्जा प्रवाहित कर रहे हैं। उन्होंने अपने लेखन के लिए सहज भाषा का चयन किया है, जिससे आमजन भी पढ़ सके और समझ सके। उनके रचनाओं में ज़िंदगी के विभिन्न आयाम देखने को मिलते हैं, कभी सुख की सुखद अनुभूति, तो कभी दुख की पीड़ा, संसार की चाटुकारिता, मोह-माया, तो कभी जीवन की यथार्थ गहराई की अनुभूति देखने को मिलती है। उनकी रचनाएँ दिन-प्रतिदिन विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।
‘ज़िंदगी का उजास’ में भिन्न-भिन्न भावों की कुल 14 कहानियाँ हैं, जो अपने आप में जीवन की विभिन्न समस्याओं, संवेदनाओं से समेटी हुई हैं। मानो हर एक कहानी का पात्र जीवंत हो। इस पुस्तक की पहली कहानी ‘ज़िंदगी का उजास’ में अंतर्मन की व्याकुलता और शांति में सामंजस्य स्थापित करने की संवेदनाओं को दिखाया गया है, तो दूसरी कहानी ‘त्याग का दीपक’ में दिव्या की नीट की परीक्षा में उत्तीर्ण हो डॉक्टर बनने के सपने की ओर अग्रसर होने के पीछे दिव्या के पिता, जो रिक्शा चलाकर जीवनयापन करते हैं, उनके अपार त्याग, संघर्ष उकेरित किया गया है।
‘माटी की याद’ शीर्षक कहानी में शहरीकरण और आधुनिकता की चकाचौंध का सामंजस्य दिखाया गया है और पारिवारिक मूल्यों के महत्व को बताते हुए कहा गया है, घर केवल ईंट-पत्थर से नहीं बनता, बल्कि उसमें बसे प्रेम, अपनापन और संस्कार उसे जीवंत बनाते हैं। ‘भूख की तड़प’ में सामाजिक असमानता को उजागर किया गया है, किस प्रकार से गरीबी में मजबूर इंसान खाने को तरसता है और वहीं दूसरी तरफ अमीरी में लोग व्यर्थ भोजन कूड़े में फेंकते हैं। साथ ही रामू की मेहनत और ईमानदारी से दो वक़्त की रोटी कमाने का संघर्ष बताया गया है और सामाजिक विषमता दूर करने का चिंतन तथा आपसी एकता स्थापित करने का द्वंद्व दर्शाया गया है।
‘अनोखा युद्ध’ शीर्षक में तकनीकी विकास के क्षेत्र में मानव-निर्मित रोबोट के बीच भावनाओं का उत्पन्न होना तथा समाज की तकनीकी प्रगति और मानवीय संवेदनाओं के बीच अंतर्द्वंद्व का खूबसूरत तरीके से चित्रण किया गया है, जहाँ समाज किस प्रकार तकनीकी पर निर्भर हो गया है। हालांकि ‘अनोखा युद्ध’ में शब्दों की जटिलता भी देखने को मिलती है, पर पाठक इस कहानी को पढ़कर नैतिक और तकनीकी विकास में सामंजस्य का होना क्यों जरूरी है, यह समझ सकते हैं। ‘सपनों का सरगम’, ‘बसंती दुपट्टा’ आदि कहानियाँ प्रेम की रसानुभूति करवाती हैं, जिनमें प्रेम, मिलन, विरह, इंतज़ार इत्यादि का चित्रण किया गया है। जहाँ वर्षों की प्रतीक्षा, अनगिनत रातों की बेचैनी के बाद मखमली प्रेम का एहसास मिलता है।
इस प्रकार “ज़िंदगी का उजास” कहानी संग्रह हिन्दी साहित्य जगत में एक नया आयाम स्थापित करेगी, जिससे पाठक पढ़ने के बाद जीवन के विविध पहलुओं को बारीकी से समझ सकेंगे। इसमें जीवन का यथार्थ ही नहीं, बल्कि जीवन की गहराई में डूबकर एक नई सकारात्मक ऊर्जा से जीवन निर्वाह करने की प्रेरणा मिलती है।
समीक्षक – ममता कुशवाहा
पुस्तक – ज़िंदगी का उजास
लेखक – नृपेन्द्र अभिषेक नृप
प्रकाशक – समृद्ध पब्लिकेशन, नई दिल्ली
मूल्य – 260 रुपये
पृष्ठ – 133






