Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

जीने का अनुराग नहीं – डॉ हरे कृष्ण मिश्र

जीने का अनुराग नहीं प्यासी है नदियां प्यासा है सावन,बर्षा की बेला प्यासा है चातक ,प्यासी है धरती प्यासा है …


जीने का अनुराग नहीं

जीने का अनुराग नहीं - डॉ हरे कृष्ण मिश्र

प्यासी है नदियां प्यासा है सावन,
बर्षा की बेला प्यासा है चातक ,
प्यासी है धरती प्यासा है बादल,
संतों की वाणी में भींगेगा पानी ।।

संतों और ग्रंथों की महिमा है जानी,
ग्रंथों की भाषा मुनियों से जानी,
अपना न कोई अपनी न दुनिया,
मंजिल है अपनी चलना है मुझको ।।

संतो से सीखा है हमने,
सहनशीलता होती अपनी,
धैर्य और शौर्य है अपना ,
यही जीवन का संबल है। ।।

शेष स्मृतियां काव्यायनी बनकर,
मेरे जीवन तट पर बहती आयी,
छंद लोरियां बंध तेरे स्वर आयी,
गीतों की धारा लायी जीवन में ।।

काव्यायनी के हर छंदों में ,
स्मृतियां तुम्हारी दिखती है,
बोल तुम्हारी अपनी उसमें,
मैं भी तो स्वर दे देता हूं ।।

गाते हम सदा आए ,
मधुर संगीत जीवन के,
बिछड़ने का दर्द इतना,
टूटा स्वर हमारा है। ।।
ज्ञान अधूरा प्रयास न पूरा,
अंधकार में जीवन अपना,
टूटे-फूटे राहों पर चलना ,
इतना तो आसान नहीं है ।।

जल बिना सरिता की महिमा ,
धरा धाम पर घट जाती है,
प्यासे मानव को जल देकर,
सरिता प्यास बुझाती है। ।

धड़कन रुक रुक कहती है,
आहट तो उसकी मिलती है ,
दूर्दिन की घड़ियां गिन गिन ,
जिंदगी मेरी सिमट गयी है। ।।

अंतरिक्ष से मेरे मन को,
जब कोई संकेत मिला हो,
व्याकुल हो मैं चल पड़ता हूं,
ठौर ठिकाना भूल गया हूं ।।

जीवन का विश्लेषण करना,
अल्प ज्ञान में सब खोया है ,
अब पछताने से क्या होगा ,
देखो बंधन मेरा टूट गया है ।।

प्रेम तुम्हारा फलता फूलता ,
जीवन के हर क्षण में देखा ,
आज तुम ही से दूर खड़ा हूं
मौन हमारा जीवन चुप है ।।

अब चिंता बनी हुई दूरी की,
आगे दिखता अंधकार है ,
अब जीना आसान न होगा,
चलना कितना और पड़ेगा ।।???

भावभीनी क्या विदाई ,
दर्दभीनी दी विदाई,
दर्द से रिश्ता है अपना,
हर गीत मेरे दर्द के ।।

मैं अतिथि बना तेरे पहले पहल,
खुशी भी मुझे अपनों की तरह,
मिली तू मुझे आश्रम के निकट,
दोनों थे हम अजनबी की तरह ।।

पता ही नहीं था मिलन इस तरह,
बदलेगी रेखा मानो किस तरह,
फिर बातें बढ़ी और बढ़ती गई ,
यूं धागे भी बटते रहे प्यार के ।।

संजोग हमारा मिलन बन गया,
टूटेगा बंधन ना सोचा कभी ,
बेपरवाह था जीवन तेरा मेरा ,
कश्ती लगी थी किनारे मेरी ।।

सोचा न जीवन छोटा मेरा,
आयु तेरी यू घिसक क्यों गई ,
चलते गए हम सत्य पर सदा,
विचलित न पथ से हुए हम कभी ।।

छोड़ जाएगी मुझको ऐसे यहां,
ऐसा भी होता है बंधन कहां ,
कसमें और रसमें बड़े हैं मेरे,
रिश्ते यहां कभी टूटते नहीं ।।

प्रेम मैं लिखता रहा हूं,
प्रेम मैं पढ़ता रहा हूं,
प्रेम खोया गम यही है,
जिंदगी रोती रही है ।।

इक गुजारिश जिंदगी से,
प्रेम मय जीवन हो मेरा ,
दर्द दिखता हो जहां भी,
जीवन समर्पित हो हमारा ।।

तुम गई अनुदान देकर ,
दर्द का उपहार देकर ,
याचना तो है ना मेरा ,
दुख दर्द का परिहार मेरा ।।

पूछता है मन हमारा आज,
हम लिखेंगे किसको लिखेंगे ,
सुनने को रहा न कोई पास ,
बना कैसा जीवन अज्ञात। ।।???

दुनिया तो है बहुत बड़ी ,
कहना कितना आसान है,
मैं बोलूं तो किससे बोलूं ,
मेरी दुनिया उजड़ गई है। ।।

जीने का अभिप्राय नहीं है ,
दर्द बांटना बहुत कठिन है,
बांटू तो भी किससे बांटू ,
जीने का अनुराग नहीं है ।।

मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।


Related Posts

रसेल और ओपेनहाइमर

रसेल और ओपेनहाइमर

October 14, 2025

यह कितना अद्भुत था और मेरे लिए अत्यंत सुखद— जब महान दार्शनिक और वैज्ञानिक रसेल और ओपेनहाइमर एक ही पथ

एक शोधार्थी की व्यथा

एक शोधार्थी की व्यथा

October 14, 2025

जैसे रेगिस्तान में प्यासे पानी की तलाश करते हैं वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं। अब

खिड़की का खुला रुख

खिड़की का खुला रुख

September 12, 2025

मैं औरों जैसा नहीं हूँ आज भी खुला रखता हूँ अपने घर की खिड़की कि शायद कोई गोरैया आए यहाँ

सरकार का चरित्र

सरकार का चरित्र

September 8, 2025

एक ओर सरकार कहती है— स्वदेशी अपनाओ अपनेपन की राह पकड़ो पर दूसरी ओर कोर्ट की चौखट पर बैठी विदेशी

नम्रता और सुंदरता

नम्रता और सुंदरता

July 25, 2025

विषय- नम्रता और सुंदरता दो सखियाँ सुंदरता व नम्रता, बैठी इक दिन बाग़ में। सुंदरता को था अहम स्वयं पर,

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

Next

Leave a Comment