Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Bhawna_thaker, story

कहानी-आस्था ईश्वर पर रखिए

 “आस्था ईश्वर पर रखिए” भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर शादी के पहले दिन रिया सुबह नहा धोकर नीचे आई तो सासु …


 “आस्था ईश्वर पर रखिए”

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

शादी के पहले दिन रिया सुबह नहा धोकर नीचे आई तो सासु माँ ने कहा रिया तुम और आरव करुणानिधि स्वामी के आश्रम जाकर उनके आशीर्वाद लेकर आओ। बाबा जी की कृपा बनी रहेगी। रिया का दिमाग हिल गया साक्षात द्वारिकाधीश को ना पाय लागूं जो जीवन आधार है ऐसे बाबाजी के आगे क्यूँ नमूँ। हे भगवान छोटे से मोबाइल में हर चीज़ अपडेट करने वालें खुद की सोच को अपडेट करना कब सिखेंगे। पर शादी के पहले ही दिन आरव और घर वालों को नाराज़ करना नहीं चाहती थी रिया तो बेमन से गई आश्रम। बाबा जी के चेहरे पर रिया को देखकर जो भाव बदले उसे देखकर रिया के दिमाग में आग लग गई। 

क्या सोचा था ससुराल वालों के बारे में और क्या निकले पढ़े लिखें लोग भी इन बाबाओं की बातों में कैसे आ जाते है। ये बाबा कौन से भगवान है महज़ हमारे जैसे इंसान ही तो है इन पर इतनी आस्था क्यूँ? इस घर में तो हर छोटी-बड़ी बात के लिए बाबा, ज्योतिष और टोटकों पर ही सब निर्भर रहते है। रिया तिलमिला उठी पर रिश्ता बचाने की जद्दोजहद में आहिस्ता-आहिस्ता ससुराल वालों के साथ एडजस्ट करने की पूरी कोशिश करने लगी, पर हर रोज़ कोई ना कोई बात ऐसी हो जाती की मन आहत हो जाता। 21वीं सदी की पढ़ी लिखी रिया खुद को बहुत मुश्किल से इस अंधविश्वास भरे वातावरण में ढ़ाल रही थी। धीरे-धीरे करते शादी को एक साल हो गया एक डेढ़ महीने से रिया की तबियत ठीक नहीं रहती उल्टियां और जी मचलना रिपोर्ट करवाने पर पता चला रिया माँ बनने वाली है। आज घर में कितनी खुशी का माहौल था। रिया की प्रेग्नेन्सी की रिपोर्ट पोज़िटिव आई थी। रिया की सास ने आरव को बताया की बाबाजी कुछ मंत्र बोलकर भभूत देते है उस भभूत को खाने से बेटा पैदा होता है।

पहले तो आरव भड़का कि ये सब अंधविश्वास है मैं नहीं मानता। पर माँ के रोज़-रोज़ के दबाव ने और कुछ बेटे की चाह की भीतरी लालसा ने उकसाया। और आरव भी रिया पर दबाव ड़ालने लगा, रिया मेहरबानी करके मान जाओ न माँ का दिल रख लो सुनो मुझे बेटे की चाह नहीं बस माँ की खुशी के लिए चलते है ना बाबा के पास। सिर्फ़ कुछ भभूत ही तो खानी है तुम्हें अगर इतनी सी बात से बेटे का मुँह देखने को मिलता है तो क्या बुराई है।

रिया गुस्से से काँप उठी आरव बीज को बोये डेढ़ महीना हो गया जो बोया है वही उगेगा। क्या खेतों में जुवार बोने के बाद किसी भभूत के छिड़काव से गेहूँ उगते है। पढ़े लिखे होकर बच्चों जैसी बातें मत करो मैं नहीं जाऊँगी किसी बाबा के पास। पर रिया की सास के दिमाग में बाबजी का भूत और पोते की चाह ने रिया के ख़िलाफ़ बगावत का एलान कर दिया था तो सुबह से शाम तक रिया को प्रताड़ित करने का एक बहाना नहीं छोड़ती थी। और इस बात को लेकर घर में हो रहे झगड़े और तनाव के आगे रिया को झुकना पड़ा, बेमन से खाती रही भभूत। उसकी सास सबके सामने इतराती रहती देखना हमारे घर गुलाब जैसा बेटा ही आएगा। और पोते के सपनें देखने लगी घर में सबके मन में ये बात बैठ गई की बेटा ही होगा।

इतने में नौ महीने बीत गए और एक काली बरसाती रात में रिया को दर्द उठा और अस्पताल ले जाना पड़ा बाहर सब बेटे की प्रतिक्षा में बैठे थे की अभी खुशखबरी आएगी रिया की सास ने नर्स को बोला जल्दी से मेरे गुलाब जैसे पोते को ले आना मेरी गोद में। बारिश का मौसम था बिजली ज़ोर से कड़की और नर्स ने आकर एक और बिजली गिराई माताजी गुलाब नहीं जूही खिली है आपके आँगन में रिया को चाँद सी बेटी हुई है। सबके दिल बैठ गए ये क्या हो गया आरव ने जैसे-तैसे दिल बहलाया और बोला कोई बात नहीं बेटी तो लक्ष्मी का रुप होती है।

पर रिया की सास हारने को तैयार नहीं बोली बहू ने श्रद्धा से भभूत खायी होती तो जरुर बेटा होता। खैर अगली बार ढ़ंग से खिलाऊँगी, पर देख आरव बेटी बोझ होती है तू इसका कुछ इन्तज़ाम कर दे और अगली बार मुझे पोता ही चाहिए और उसके लिए तेरी दूसरी शादी भी करवा दूंगी हाँ। आरव ने उसी समय अपनी माँ को सख़्त शब्दों में डांट दिया माँ अब बस भी कीजिए आपके अंधविश्वास ने मेरे मन में भी बेटे-बेटी में फ़र्क का बीज बो दिया। मेरी बेटी मेरा अभिमान होंगी अब आप मुझे बख़्श दीजिए और आप भी ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर से निजात पाईये, आस्था ईश्वर पर रखी होती तो बिना मांगे बेटा देते। अपनी सोच बदलिए हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे है रिया और अपनी बच्ची के साथ मैं अलग हो जाऊँ उससे पहले सुधर जाईये, आप जैसे स्वभाव वाली सास की वजह से ही कहावत पड़ी होगी ससुराल गेंदा फूल। पर आज रिया खुश थी अपनी चाँद सी बेटी को पा कर और आरव को एक अंधविश्वास से बाहर निकलता देखकर।

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर


Related Posts

कहानी: दुपट्टे की गाँठ

कहानी: दुपट्टे की गाँठ

July 28, 2025

कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे बड़े सबक किसी स्कूल या किताब से नहीं, बल्कि एक साधारण से घर में, एक सादी-सी

कहानी-कहाँ लौटती हैं स्त्रियाँ

कहानी-कहाँ लौटती हैं स्त्रियाँ

July 24, 2025

कामकाजी स्त्रियाँ सिर्फ ऑफिस से नहीं लौटतीं, बल्कि हर रोज़ एक भूमिका से दूसरी में प्रवेश करती हैं—कर्मचारी से माँ,

कहानी – ठहर गया बसन्त

कहानी – ठहर गया बसन्त

July 6, 2025

सरबतिया …. ओ ..बिटिया सरबतिया…….अपनी झोपड़ी के दरवाज़े  के बाहर ,बड़ी हवेली हवेली वाले  राजा ठाकुर के यहाँ काम करने

दीपक का उजाला

दीपक का उजाला

June 10, 2025

गाँव के किनारे एक छोटा-सा स्कूल था। इस स्कूल के शिक्षक, नाम था आचार्य देवदत्त, अपने समय के सबसे विद्वान

Story parakh | परख

Story parakh | परख

December 31, 2023

 Story parakh | परख “क्या हुआ दीपू बेटा? तुम तैयार नहीं हुई? आज तो तुम्हें विवेक से मिलने जाना है।”

लघुकथा -बेड टाइम स्टोरी | bad time story

लघुकथा -बेड टाइम स्टोरी | bad time story

December 30, 2023

लघुकथा -बेड टाइम स्टोरी “मैं पूरे दिन नौकरी और घर को कुशलता से संभाल सकती हूं तो क्या अपने बच्चे

Next

Leave a Comment