Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, poem

इसांनियत पर कविता| insaniyat par kavita

भावनानी के भाव इसांनियत को जाहिर कर स्वार्थ को मिटाना है इसांनियत को जाहिर कर स्वार्थ को मिटाना हैबस यह …


भावनानी के भाव

इसांनियत को जाहिर कर स्वार्थ को मिटाना है

इसांनियत को जाहिर कर स्वार्थ को मिटाना है

इसांनियत को जाहिर कर
स्वार्थ को मिटाना है
बस यह बातें दिल में धर
एक नया भारत बनाना है

एकता अखंडता भाईचारा दिखाना है
यह जरूर होगा पर
इसकी पहली सीढ़ी
अपराध को ह्रदय से निकालना है

सरकार कानून सब साथ देंगे
बस हमें कदम बढ़ाना है
हम जनता सबके मालिक हैं
यह करके दिखाना है

कलयुग से अब सतयुग हो
ऐसी चाहना है
हम सब एक हो ऐसा ठाने
तो ऐसा युग जरूर आना है-3

पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
ऐसी चाहना है
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है

सबसे पहले खुद को
इस सोच में ढलाना हैं
फिर दूसरों को प्रेरित कर
जिम्मेदारी उठाना है

ठान ले अगर मन में
फिर सब कुछ वैसा ही होना है
हर नागरिक को परिवार समझ
दुख दर्द में हाथ बटाना है

इस सोच में सफल हों
यह जवाबदारी उठाना है
मन में संकल्प कर
इस दिशा में कदम बढ़ाना है

पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
ऐसी चाहना है
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 
गोंदिया महाराष्ट्र 

Related Posts

रसेल और ओपेनहाइमर

रसेल और ओपेनहाइमर

October 14, 2025

यह कितना अद्भुत था और मेरे लिए अत्यंत सुखद— जब महान दार्शनिक और वैज्ञानिक रसेल और ओपेनहाइमर एक ही पथ

एक शोधार्थी की व्यथा

एक शोधार्थी की व्यथा

October 14, 2025

जैसे रेगिस्तान में प्यासे पानी की तलाश करते हैं वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं। अब

खिड़की का खुला रुख

खिड़की का खुला रुख

September 12, 2025

मैं औरों जैसा नहीं हूँ आज भी खुला रखता हूँ अपने घर की खिड़की कि शायद कोई गोरैया आए यहाँ

सरकार का चरित्र

सरकार का चरित्र

September 8, 2025

एक ओर सरकार कहती है— स्वदेशी अपनाओ अपनेपन की राह पकड़ो पर दूसरी ओर कोर्ट की चौखट पर बैठी विदेशी

नम्रता और सुंदरता

नम्रता और सुंदरता

July 25, 2025

विषय- नम्रता और सुंदरता दो सखियाँ सुंदरता व नम्रता, बैठी इक दिन बाग़ में। सुंदरता को था अहम स्वयं पर,

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

Next

Leave a Comment