कल्पना के पृष्ठ नूतन पढ़ रही हूँ।
शीर्षक:-कल्पना के पृष्ठ नूतन पढ़ रही हूँ। किसकी छवि जंगल-जंगल ढूँढ़ रही हूँ, ख्वाब किसके खयालों में गढ़ रही हूँ। मृग समान दिग्भ्रमित पागल मन...
शीर्षक:-कल्पना के पृष्ठ नूतन पढ़ रही हूँ। किसकी छवि जंगल-जंगल ढूँढ़ रही हूँ, ख्वाब किसके खयालों में गढ़ रही हूँ। मृग समान दिग्भ्रमित पागल मन...
शीर्षक:-कल्पना के पृष्ठ नूतन पढ़ रही हूँ। किसकी छवि जंगल-जंगल ढूँढ़ रही हूँ, ख्वाब किसके खयालों में गढ़ रही हूँ। मृग समान दिग्भ्रमित पागल मन...
आखिर तुम हो मेरे कौन? खिलते हो मुरझाते हो, आकर रोज सताते हो। सुन्दर गीत एक सुनाकर, मन बेचैन दर्पण बनाकर । सुधि आते हो बारम्बार, करते हो मुझप...
समय का अनुकूलन: व्यस्त दुनिया में उत्पादकता बढ़ाना" आज के तेज़-तर्रार माहौल में, सफलता प्राप्त करने और तनाव को कम करने के लिए समय का प्...
जन्माष्टमी : हे कृष्ण आओगे न! हे किशन-कन्हैया, सारे जग के तुम हो खिवइयां, नाराज़ हूँ मैं तुमसे, कब तक ये बासुरी बजाओगे. छलनी हो रहा तन-मन और ...