50 लाख साल में पृथ्वो से पुरुषों की प्रजाति गायब हो जाएगी?
वैज्ञानिक इसका कारण समझाते हुए कहते हैं कि मां के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग निश्चित करने वाले 'वाई' क्रोमोसोम (गुणसूत्र) धीरे-धीरे घट रहे हैं। जिसके कारण पुरुष से पैदा होने वाली संतान लड़की ही होगी, लड़का नहीं।
हम सभी जानते हैं कि गर्भ में पलने वाले बच्चे का लिंग निश्चित करने में यानी कि वह बेटा होगा या बेटी, यह एक्स और वाई क्रोमोसोम में रहने वाले जींस पर निर्भर करता है। पुरुषों में वाई क्रोमोसोम धीरे-धीरे घट रहा है। स्पष्ट रूप से कहें तो पुरुष के वीर्य से वाई क्रोमोसोम गायब हो रहा है। जिस समय यह गुणसूत्र शुक्राणु से पूरी तरह गायब हो जाएगा तो उसके बाद दुनिया की कोई भी स्त्री पुत्र को जन्म नहीं दे सकेगी। डिलीवरी मात्र बेटियों की होगी।
मेडिकल साइंस के अनुसार स्त्री के गर्भधारण करने के 12 सप्ताह बाद पुरुष के वाई क्रोमोसोम पर मास्टर जीन एसआरवाई का निरूपण होता है। इसी जीन द्वारा ही गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग (लड़का या लड़की) तय होता है। इसी एसआरवाई जीन से ही बच्चे में पुरुष जैसी जननेंद्रियों का विकास होता है।
अब हम मुद्दे की बात करते हैं। क्या पुरुष के बगैर जगत की कल्पना की जा सकती है? शायद ज्यादा लोगों का जवाब न में ही आएगा। पर अब पुरुषों के अंत की शुरुआत हो गई है। यह दावा चोटी की एक महिला वैज्ञानिक ने किया है। अब पुरुषों की जाति की लुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। फिर भी पुरुषों को पूरी तरह लुप्त होने में लगभग 50 लाख साल का समय लग जाएगा। उस समय धरती पर पुरुष बिलकुल नहीं रहेंगे।
आस्ट्रेलिया के सब से प्रतिष्ठित और धाकड़ वैज्ञानिकों में से एक ऐसे प्रोफेसर ग्रेव्स का मानना है कि महिलाएं सेक्स की जंग में पुरुषों को मात दे देंगीं। उन्होंने कहा है कि यह कोई गप नहीं नहीं है, पूरी तरह सच बात है।
उनका कहना है कि पुरुष के सेक्स के क्रोमोजोम (गुणसूत्र) वाई में तेजी से कमी आने के कारण पुरुष जाति पर असर हो रहा है। प्रोफेसर ग्रेव्स की भविष्यवाणी के अनुसार, पुरुष और स्त्री के सेक्स क्रोमोसोम के जीन की संख्या के आधार पर तय किया गया है।
महिला के एक्स क्रोमोसोम में लगभग एक हजार स्वस्थ जीन होते हैं। इसलिए ये पुरुषों की अपेक्षा अधिक मजबूत होती हैं। महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम होते हैं, जबकि पुरुष में मात्र एक एक्स और एक वाई क्रोमोसोम होने से उसे आधिक असर होता है। महिलाओं में जोड़ी क्रोमोसोम होने के कारण अगर उन्हें कोई नुकसान होता है तो रिपेयर होपे की संभावना अधिक होती है, जबकि पुरुषों में नष्ट हो जाते हैं। हर पुरुष के लिए यह बहुत ही खराब समाचार है।
जबकि अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पुरुषों को घबराने की जरूरत नहीं है। एक सेक्स क्रोमोसोम विशेषज्ञ प्रोफेसर राॅबिन लोवेल का कहना हे कि वाई क्रोमोसोम ने कम से कम पिछले 25 लाख सालों में कोई जीन नहीं खोया है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि इस मामले मे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर भविष्य में ऐसा कुछ होता है तो इसकी कमी को रोकने के लिए दवाएं बन जाएंगी। तब तक मेडिकल साइंस को प्रगति करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा और वह इस दिशा में आगे बढ़ जाएगा। इसलिए इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।
एक रिसर्च यह भी कहता है कि चूहों की एक प्रजाति का वाई क्रोमोसोम एकदम घट जाए, तो उसके पहले ही उसने नया क्रोमोसोम विकसित कर लिया था। जिसके द्वारा नर चूहा पैदा हो सकता है। पृथ्वी पर से पुरुषों की प्रजाति एकदम से गायब हो जाने की बात तो बहुत दूर की है, पर यह बात सौ प्रतिशत सच है कि पुरुषों के वीर्य की क्वालिटी और क्वांटिटी लगातार घट रही है।
भारत में पहली बार 'हेल्पिंग फैमिलीज' नाम की संस्था ने देश के नौ छोटेबड़े शहरों और गांवों मे 31 से 41 साल के 2562 युवा दंपतियों पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पता चला कि 46 प्रतिशत युगल वंध्यत्व या नपुंसकता का शिकार हैं।
इसके अलावा इस सर्वेक्षण में दूसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला है कि दिल्ली में 40 प्रतिशत दंपति प्रजनन क्षमता रहित (इन्फर्टाइल) हैं। जबकि यहां की अपेक्षा मुंबई महानगर में इस तरह के 51 प्रतिशत युगल प्रजनन क्षमता से वंचित हैं। 30 से 40 साल के युवाओं में से 49 प्रतिशत युवाओं ने आईवीएफ (इन्ट्रा विनस फर्टिलाइजेशन) का इलाज कराया है और बाकी के दंपति यह इलाज कराने की सोच रहे हैं।
सदैव बढ़ रहा मानसिक तनाव, प्रदूषित पर्यावरण, धूम्रपान, नशीले पदार्थों का सेवन और स्वच्छंद यौन संबंधों के परिणामस्वरूप पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी से बड़ी समस्या खड़ी हो रही है। एक आईवीएफ के विशेषज्ञ के अनुसार बीस साल पहले शुक्राणुओं की नार्मल संख्या चार करोड़ या इससे अधिक होती थी। पर अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह संख्या घटा कर शुक्राणुओं की संख्या डेढ़ करोड़ नार्मल मान लिया है।
साल 1950 के साल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 'वीर्यवान' पुरुष की व्याख्या घोषित की थी। उसके अनुसार, तनदुरुस्त के वीर्य में पर मिलीलीटर 11.3 करोड़ शुकाणु होना आम बात थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन को उत्तरोत्तर इस संख्या को घटाते रहने की जरूरत पड़ी थी। साल 2009 के अंत में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो गाइड लाइन घोषित की थी, उसके अनुसार जिस पुरुष के वीर्य में प्रति मिलीलीटर 2 करोड़ शुक्राणु हों, उसे भी सामान्य पुरुष माना जाएगा।
मुंबई में प्रथम वीर्य बैंक की स्थापना करने वाली डा. अंजलि मालपानी के अनुसार उन्होंने आज से चार दशक पहले अपनी स्पर्म बैक शुरू की थी, तब उनके पास प्रति मिलीलीटर 4 से 6 करोड़ शुक्राणु वाले पुरुष बड़ी संख्या में आते थे। पर आज जो पुरुष स्वैच्छिक वीर्यदान करने आते हैं, उनका स्पर्म काउंट घट कर तीन करोड़ और कुछ का तो दो करोड़ से कुछ ज्यादा पहुंच गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार वे दो करोड़ से कम स्पर्म काउंट वाले पुरुष का वीर्य स्वीकार नहीं करतीं।
एक ओर सरोगेसी (कोख किराए पर देना) और वीर्यदान के मार्फत गर्भधारण करने का चलन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में दूसरी ओर शहर की वीर्य (स्पर्म) बैंकों को अच्छे वीर्य के सेम्पल मिलने में मुश्किल हो रही है। इन विट्रो फर्टिलिटी (आईवीएफ) स्पेशलिस्ट हर दस आदमी में से 8 को रिजेक्ट कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि वीर्यदान करने के इच्छुक पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं का कम होना। चिकित्सीय भाषा में इस कमी को ओलिगोस्पार्मिया कहते हैं। कुछ पुरुषों के वीर्य में तो एक भी शुक्राणु नहीं होता और इसे अजूस्पर्मिक कहते हैं।
पुरुष में शुक्राणु की कमी हो ऐसे संतानविहीन दंपति संतान के लिए वीर्यदाता के स्पर्म का विकल्प आजमाने वाले दंपति वीर्यदाताओं की शैक्षिक योग्यता, दिखाव और धार्मिक तथा सामाजिक बैकग्राउंड बारे में चिंतित होते हैं। लेकिन डाक्टर उनकी हर पसंद पूरी नहीं कर सकता, क्योंकि अच्छे वीर्यदाता बहुत मुश्किल से मिलते हैं।
गर्भधारण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस के अनुसार पुरुष के वीर्य में प्रति मिलीलीटर दो करोड़ शुक्राणु होना जरूरी है। परंतु वीर्यदान (डोनेशन) के समय शुक्राणुओं की संख्या कम से कम छह करोड़ होनी चाहिए। इसलिए कि वीर्य बैंक में दान किया वीर्य फ्रीज कर के माइनस 196 डिग्री में क्रायओविव के लिक्विड नाइट्रोजन सिलेंडरों में स्टोर कर के रखा जाता है। छह महीने बाद इस स्पर्म वियल्स को बाहर निकाला जाता है तो लगभग 50 प्रतिशत शुक्राणु मर गए होते हैं और उनकी संख्या घट कर पर मिलीलीटर लगभग तीन करोड़ हो गई होती है। इसलिए डाक्टर यह आग्रह रखते हैं कि वीर्यदान करते समय दाता के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या छह करोड़ होनी चाहिए।
ब्लड डोनेशन से बिलकुल अलग भारत में स्पर्म डोनेशन अभी भी एक समस्या है। धूम्रपान, शराब का सेवन और स्ट्रेस के अलावा खानपान की आदतें तथा प्रदूषण के कारण पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है। डाक्टर डोनर का वीर्य स्वीकार करने से पहले उसका ब्लड ग्रुप चेक करते हैं। इसके अलावा उस पर एचआईवी, हिपेटाइटिस, छुआछूत वाले रोग और थेलेसेमीया जैसे जेनेटिक रोगों का भी टेस्ट करते है। इन सभी कसौटियों पर खरा उतरने वाले डोनरों की संख्या पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गई है।
भारत के पुरुषों की घट रही फलद्रूपता के बारे में शोध कर रहे डा. पी एम भार्गव कहते हैं कि पश्चिम में पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु घट रहे हैं, इस बात का ख्याल 1990 के दशक में आया था। पश्चिम को शोधकर्ताओं के अध्ययन के अनुसार सालाना दो प्रतिशत की दर से स्पर्म काउंट घट रहा है। अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो आज से 50 साल बाद स्त्री के अंडाणु को फलित कर सके, ऐसा देखने को नहीं मिलेगा। डाक्टर भार्गव एक चौंकाने वाली बात यह कहते हैं कि जो पुरुष प्लास्टिक की बोतल का पानी या ठंडा पीते हैं, उनके वीर्य में भी शुक्राणुओं के घटने की संभावना रहती है। डाक्टर भार्गव के अनुसार प्लास्टिक में से स्त्री के हार्मोन एस्ट्रोजन से साम्यता रखने वाले हार्मोन निकलते हैं। ये पदार्थ पुरुष के शरीर में जाते हैं तो उनमें स्त्रैणता आती है और उनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या घटती है। एक जानकारी के अनुसार पुरुष के लिंग में माइक्रोप्लास्टिक का 0.5 एमएम का कण मिला है। इस तरह का प्लास्टिक प्रदूषण वीर्य की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाता है।
आजकल महिलाएं अधिक उम्र तक कुंवारी रहती हैं। इसके कारण भी उनकी गर्भधारण करने की क्षमता घट जाती है। अधिक उम्र में शादी करने वाली महिलाओं की गर्भधारण करने की क्षमता कम हो गई होती है।इसके अलावा शादी के बाद भी कुछ सालों तक बच्चा न हो, इसके लिए गर्भनिरोधक साधनों का उपयोग करती हैं। जिसका विपरीत असर उनके गर्भधारण करने की शक्ति पर पड़ सकता है। ये स्त्रियां जब मां बनना चाहती हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए फर्टिलिटी संचालक कहते हैं कि जिन स्त्रियों को मां बनना है, उन्हें समय से विवाह कर लेना चाहिए।
पुरुषों में घट रहे शुक्राणुओं से मात्र वैज्ञानिक ही नहीं, समाजशास्त्री भी चिंतित हैं। हमारे समाज में पुरुष और स्त्री की भूमिका में जो परिवर्तन आया है, उसके कारण पत्नी नौकरी करती है तो पति को घर के कान करने पड़ते हैं और बच्चों का ध्यान रखना पड़ता है। मानसिक रूप से स्त्री की मूमिका अदा करने की वजह से भी पुरुषत्व पर असर पड़ता है। पर अभी तक इस मामले का कोई वैज्ञानिक शोध नहीं हुआ है। अगर मनुष्य जाति को टिकाए रखना है तो पुरुषत्व को भी टिकाए रखना अनिवार्य है। इसके लिए अपने आहार-विहार में और अपनी लाइफस्टाइल में उचित परिवर्तन लाने के अलावा और कोई दूसरा उपाय नहीं है।
About author
वीरेंद्र बहादुर सिंहजेड-436ए, सेक्टर-12,
नोएडा-201301 (उ.प्र.)
Keywords
Y Chromosome (वाई क्रोमोसोम), Gender Determination (लिंग निर्धारण), Scientific Research (वैज्ञानिक अनुसंधान), Human Genetics (मानव आनुवंशिकी), Male Population Decline (पुरुष जनसंख्या गिरावट), Future Predictions (भविष्यवाणियाँ), Genetic Evolution (आनुवंशिक विकास), Reproductive Health (प्रजनन स्वास्थ्य), Infertility (बांझपन), Chromosomal Disorders (गुणसूत्र विकार), Medical Science (चिकित्सा विज्ञान), Environmental Factors (पर्यावरणीय कारक)
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