प्रेमी पेड़ में मानव मन | premi ped me manav man
May 26, 2024 ・0 comments ・Topic: Bhaskar datta poem
प्रेमी पेड़ में मानव मन
मानव की ज़मीन रूपी आत्माआज संसार में बीज रोपण का
नवीनतम संस्कार चाहती है
पर मैं पूछता हूँ
क्या तुम्हारी मानवीयता
संवैधानिक अंकुरण को
अपने सांचे में अंकुरित होने देगी?
वे अंकुरित इच्छाएँ
जो किसी जड़ में
अपनेपन का सहारा ढूढ़ती हैं..
लेकिन वृक्षों का अंत:स्थल
पहले भी देख चुका है
प्रेमी इच्छाओं के तीखे फल
इसलिए कौन जाने
फिर से उग आयें ...
ईर्ष्या की हवायें
यादों का बरकटा
विरह के फूल
और झरोखे से
अकेलेपन की पत्तियाँ
इसी प्रेमी वृक्ष की अंतडि़यों में,
उसकी धड़कनों में प्रवाहित
धरती का जल
सूखने लगता है
फुनगियों में चर्चाओं की तेजी
इशारों में बादलों को घूरती हैं
कि इस बार मत बरसना
क्योंकि मेरी आँखों में
बादलों से कहीं अधिक रौनक है..
किंतु
मेरी बात न मानकर
यदि कहीं बरस गये
और मनुष्यों ने मेरा संहार किया
तो इसकी जिम्मेदारी
सिर्फ और सिर्फ
आसमान की होगी...
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