राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक - एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023 - नीति आयोग बनाम संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
भारत में 5 वर्षों में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए - अब हितधारकों की अपडेट सूची जल्द जारी करना ज़रूरी
सुनिए जी ! अब मैं गरीब आदमी हूं कहना बंद कर दीजिएगा ! संयुक्त राष्ट्र और नीति आयोग की रिपोर्ट आ गई है, फ्राड पर अब कार्रवाई होगी - एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर कुछ वर्षों से भारत के बढ़ते रुतबे साख प्रतिष्ठा को सारी दुनियां देख रही है जिस तेजी के साथ भारत विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है, अपने नागरिकों का जीवनस्तर ऊंचा करने के लिए जी जान से भिढ़कर अनेक हितकारी योजनाओं को धरातल पर उतारकर लोक कल्याण में भिड़ गया है, उसके दूरगामी परिणामों का नतीजा आना वैश्विक व राष्ट्रीय रिपोर्ट में शुरू हो गया है जिसे हमने 11 जुलाई 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट बहुआयामी गरीबी सूचकांक अपडेट 2023 में बताया कि भारत में पिछले 15 वर्षों में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। इस रिपोर्ट से पड़ोसी, विस्तारवादी और अन्य मुल्कों में हड़कंप मचा दिया है, क्योंकि यह रिपोर्ट हमने नहीं, देश की नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र ने पेश की है और अभी दिनांक 17 जुलाई 2023 को शाम नीति आयोग द्वारा एकरिपोर्ट राष्ट्रीयबहुआयामी गरीबी सूचकांक- एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023 जारी की है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में सबसे तेज गिरावट 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई है।रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 5 वर्षों में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं, जबकि यूएन रिपोर्ट में 15 साल में 41.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर बताया गया है। बता दें कि यह सूचकांक अनेक क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य शिक्षा जीवनस्तर पोषण सहित 12 इंडिकेशंस पर आधारित होता है। सबसे बड़ी बात पहले संयुक्त राष्ट्र जिसमें 200 से अधिक सदस्य देश हैं उसपर रिपोर्ट जारी की है उसके बाद भारतीय नीति आयोग द्वारा रिपोर्ट जारी की गई है। अब गेंद सरकार के पाले में है कि कितनी जल्द हित धारकों की अपडेट सूची तैयार कर जारी करता है क्योंकि एक बड़ा हिस्सा हितधारकों का बाहर होगा तो बाकी बचे लोगों को भी शीघ्रता से गरीबी रेखा से बाहर निकालने में सुविधा होगी और देश अपने विज़न 2047 में डेडलाइन के पूर्व ही सफलता अर्जित कर विकसित देश की और शीघ्रता से बढ़ेगा। चूंकि आज नीति आयोग ने भी सूचकांक जारी किया है इसलिए आज हम पीआईबी में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,भारत में 5 वर्षों में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं अब हितधारकों की अपडेटेड सूची जल्द जारी करना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 17 जुलाई 2023 को नीति आयोग द्वारा जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023 की करें तो, इस रिपोर्ट का नाम राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांकः एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023 है। इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में सबसे तेज गिरावट 32.59 प्रतिशत से घटकर19.28 प्रतिशत हो गई है।भारत 2030 की समय सीमा से बहुत पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 हासिल करने की राह पर है। रिपोर्ट की मानें तो जमीनी स्तरपर सभी 12 एमपीआई संकेतकों में पर्याप्त सुधार देखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2015-16 से 2019-21 के दौरान रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं। यूपी में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है, इसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का स्थान आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीच बहुआयामी गरीबों की संख्या में 24.85 प्रतिशत से 14.96 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ के साथ गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई,पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा के वर्षों, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन ने गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. राष्ट्रीय एमपीआई स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के तीन समान रूप से भारित आयामों में एक साथ अभावों को मापता है, जो 12 एसडीजी संरेखित संकेतकों द्वारा दर्शाया गया है. इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई गैस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, परिसंपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं, सभी में उल्लेखनीय सुधार देखे गए हैं। पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य में अभावों को कम करने में योगदान प्रदान किया है, जबकि स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन जैसी पहलों ने देशभर में स्वच्छता संबंधी सुधार किया है. स्वच्छता अभावों में इन प्रयासों के प्रभाव के परिणामस्वरूप तेजी से और स्पष्ट रूप से 21.8 प्रतिशत अंकों का सुधार हुआ है। पीएम उज्जवला योजना के माध्यम से सब्सिडी वाली रसोई गैस के प्रावधान ने जीवन कोसकारात्मक रूप से बदल दिया है। रसोई गैस की कमी में 14.6 प्रतिशतअंकों का सुधार हुआ है।इस रिपोर्ट के तहत एमपीआई जारी किया गया है, जिसको निकालने के लिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस-5, 2019 से 2021) के आंकड़ों को आधार बनाया गया है।
साथियों अगर हम शासकीय योजनाओं की करें तो सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) और समग्र शिक्षा जैसी पहलों ने भी बहुआयामी गरीबी को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।विशेष रूप से बिजली के लिए अत्यन्त कम अभाव दर, बैंक खातों तक पहुंच तथा पेयजल सुविधा के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति प्राप्त करना नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने तथा सभी के लिए एक उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है। एमपीआई के आकलन में तीन डाइमेंशन- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर की बराबर हिस्सेदारी होती है. ये तीनों डाइमेंशन भी 12 इंडिकेटर्स पर आधारित होते हैं. ये इंडिकेटर्स हैं- पोषण, बाल एवम् वयस्क मृत्यु, मातृ स्वास्थ्य, स्कूलिंग के साल, स्कूल उपस्थिति खाना बनाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने योग्य पानी, बिजली, आवास संपत्ति और बैंक अकाउंट. यह सारे इंडिकेटर्स एसडीजी के साथ समन्वय रखते हैं।यूएन द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी इंडेक्स मेंभी भारत की स्थितिमेंजबरदस्त सुधार।यूएन द्वारा 11 जुलाई को जारी की गई एक रिपोर्ट में भी भारत में गरीबी को लेकर सकारात्मक आंकड़े सामने आए हैं। इस रिपोर्ट में वैश्विक बहुआयामी गरीबी इंडेक्स जारी किया गया है।संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2005/2006 से लेकर 2019/2021 तक यानी 15 साल के भीतर कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। ये रिपोर्ट दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए राहत देने वाली है।वैश्विक बहुआयामी गरीबी इंडेक्स के नए आंकड़े संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रमऔर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल द्वारा जारी किए गए हैं। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण [एनएफएचएस-5 (2019-21)] के आधार पर राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) का यह दूसरा संस्करण दोनों सर्वेक्षणों, एनएफएचएस-4 (2015-16) और एनएफएचएस-5 (2019-21) के बीच बहुआयामी गरीबी को कम करने में भारत की प्रगति को दर्शाता है। इसे नवम्बर 2021 में लॉन्च किए गए भारत के एमपीआई की बेसलाइन रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया है। अपनाई गई व्यापक कार्य पद्धति वैश्विक कार्य पद्धति के अनुरूप है।राष्ट्रीय एमपीआई स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के तीन समान रूप से भारित आयामों में एक साथ अभावों को मापता है, जो 12 एसडीजी संरेखित संकेतकों द्वारा दर्शाया गया है। इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई गैस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, परिसंपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं, सभी में उल्लेखनीय सुधार देखे गए हैं।
साथियों बात अगर हम नीति आयोग द्वारा जारी सूचकांक 2023 की रिपोर्ट को गहराई से देखें तो, रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बहुआयामी गरीबों की संख्या जो वर्ष 2015-16 में 24.85 प्रतिशत थी गिरकर वर्ष 2019-2021 में 14.96 प्रतिशत हो गई जिसमें 9.89 प्रतिशत अंकों की उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। इस अवधि के दौरान शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से गिरकर 5.27 प्रतिशत हो गई, इसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी तीव्रतम गति से 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई है। 36 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों और 707 प्रशासनिक जिलों के लिए बहुआयामी गरीबी संबंधी अनुमान प्रदान करने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि एमपीआई मूल्य 0.117 से लगभग आधा होकर 0.066 हो गया है और वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच गरीबी की तीव्रता 47 प्रतिशत से घटकर 44 प्रतिशत हो गई है, जिसके फलस्वरूप भारत 2030 की निर्धारित समय सीमा से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा कम करने का लक्ष्य) को हासिल करने के पथ पर अग्रसर है। इससे सतत और सबका विकास सुनिश्चित करने और वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलनपर सरकार कारणनीतिक फोकस और एसडीजी के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का पालन परिलक्षित होता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक - एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023 - नीति आयोग बनाम संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट भारत में 5 वर्षों में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए -अब हितधारकों की अपडेट सूची जल्द जारी करना ज़रूरी।सुनिए जी ! अब मैं गरीब आदमी हूं कहना बंद कर दीजिएगा ! संयुक्त राष्ट्र और नीति आयोग की रिपोर्ट आ गई है, फ्राड पर अब कार्रवाई होगी।
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