पैरेंट्स दर्पण हैं, जिसमें बच्चे जिंदगी का प्रतिबिंब देखते हैं

July 03, 2023 ・0 comments

पैरेंट्स दर्पण हैं, जिसमें बच्चे जिंदगी का प्रतिबिंब देखते हैं

पैरेंट्स दर्पण हैं, जिसमें बच्चे जिंदगी का प्रतिबिंब देखते हैं
स्कूराल्फ वाल्डो नामक चिंतक ने कहा है कि आप का व्यक्तित्व इतनी तेज आवाज में बोलता है कि आप के कहे शब्द सुने नहीं जा सकते। पैरेंट्स जब बच्चे से अच्छे व्यवहार और अच्छे काम की अपेक्षा करता है तब यह बात नजरअंदाज नहीं होनी चाहिए। आचार ही प्रचार का श्रेष्ठ साधन है। आचार का असर धर्मग्रंथों के उपदेशों की अपेक्षा भी बढ़ जाता है।
एक अफसर अपने बच्चों को गोल्फ के मैदान में गोल्फ खेलने के लिए ले गया। उसने टिकट काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा, "अंदर जाने की टिकट कितने की है?"
वहां बैठे व्यक्ति ने जवाब दिया, "6 साल से ज्यादा उम्र वालों के लिए 3 डालर और उससे कम उम्र वालों के लिए कोई टिकट नहीं है।"
अफसर ने कहा, "छोटे की उम्र 3 साल है और बड़े की उम्र 7 साल है। इसलिए मुझे तुम्हें 6 डालर देने होंगे।"
टिकट काउंटर पर बैठे युवक ने कहा, "आप की लाटरी लगी है क्या? आप 3 डालर बचा सकते थे। आप मुझसे कह सकते थे कि बड़ा बेटा 6 साल का है। मुझे पता तो था नहीं।"
अफसर ने जवाब दिया, "मुझे पता है कि तुम्हें नहीं पता। पर बच्चों को तो पता चल जाता कि उनका पिता झूठ बोल रहा है। मेरे बच्चे मुझे झूठ बोलते सुनेंगे तो वे भी झूठ बोलने में नहीं हिचकेंगे।" आज के चुनौती भरे इस समय में नैतिकता पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए पैरेंट्स को अपने बच्चों के सामने अच्छा उदाहरण पेश करना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के व्यक्तित्व में अच्छी बातें चाहते हैं तो यही नियम अपनाएं।
ट्रेन में एक मम्मी और बच्चा यात्रा कर रहा था। 8-10 साल का बच्चा और उसकी मम्मी, दोनों किताबें पढ़ रहे थे। बगल में बैठे किसी व्यक्ति ने पूछा, "आज जब हर बच्चा मोबाइल का दीवाना है तो आप का बच्चा पुस्तक पढ़ रहा है, हैरानी की बात है?"
मम्मी ने हंस कर कहा, "बच्चा हम जो कहते हैं वह नहीं, जो देखता है उसका अनुसरण करता है।" बच्चे को अच्छा आदमी बनाने के लिए इन बातों का ध्यान रखें।
0 बच्चे की उपस्थिति में झूठ न बोलें
हम छोटीछोटी बातों में झूठ बोलते रहते हैं, इसलिए बच्चा मान लेता है कि झूठ बोलना खराब चीज नहीं है। अगर आप को किसी वजह से झूठ बोलना ही पड़े तो बच्चे के सामने दिलगिरी व्यक्त करें कि मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, ऐसा बोल कर मैंने गलत किया है। रियली, आई एम सारी। बच्चे को यह भी समझाएं कि हमारे आसपास अनेक लोग झूठ बोलते रहते हैं, बट इट्स नाट फेर... मैं और मम्मी सच बोलते हैं, इसलिए मेरा बेटा भी सच बोलेगा।

मोबाइल से बचें

आज पैरेंट्स मोबाइल के लिए बच्चों पर गुस्सा करते हैं। आज की पीढ़ी का मोबाइल के बिना चलता ही नहीं है। क्या यह बात उचित है? अगर पैरेंट्स चाहते हैं कि बच्चा हमेशा मोबाइल में व्यस्त रहने के बजाय कुछ रचनात्मक करे तो इसके लिए पहले पैरेंट्स को सुबह उठ कर मोबाइल में डूब जाना छोड़ना होगा। अगर सुबह समय है तो बच्चे के साथ घूमने जाएं, प्रार्थना करें और अगर सभी फ्री हों तो कार्ड्स वगैरह गेम खेलें। क्रिकेट या बैडमिंटन खेलने जाएं। म्यूजिक सुनें या पुस्तक पढ़ें। आप सोशल मीडिया में डूबे नहीं रहेंगे तो बच्चे पर आप की बात का असर होगा। पापा-मम्मी ऐसा करते हैं या नहीं करते हैं, इसी के आधार पर उचित-अनुचित की धारणा बनती है। पैरेंट्स का व्यवहार संतुलित होना अनिवार्य है।

 भाषा पर कंट्रोल

पैरेंट्स की भाषा का बच्चे पर सब से अधिक असर होता है। उनका शब्द भंडार पैरेंट्स द्वारा विकसित होता है। इसलिए आप बच्चे के सामने कैसे शब्द, कैसी भाषा और बोलते समय कैसी टोन का उपयोग करते हैं, इसका ध्यान रखना चाहिए। साला, गधा, बदमाश, बिना अक्ल का, पागल, बेवकूफ, नालायक या हरामी जैसे शब्द पैरेंट्स को किसी के भी लिए बोलते सुन बच्चा खुद भी बिना समझे ये शब्द बोलने लगता है। सार्वजनिक रूप से बच्चा ये शब्द बोलता है तो पैरेंट्स चिल्लाते हैं कि मैंने तुम्हें यही संस्कार दिए हैं? बच्चा संस्कार उपदेश से नहीं, आचरण से ग्रहण करता है। जब तक बच्चे में दुनियादारी की समझ न आए, तब तक वह अपने पैरेंट्स के ही व्यवहार को सही मानता है और जब बच्चे में समझ आ जाती है, तब तक बच्चे के व्यक्तित्व में अनेक गलत बातें समा जाती हैं।

पालिटिक्स

संयुक्त परिवार हो या विभक्त, ज्यादातर अभिभावक किसी न किसी मुद्दे पर पालिटिक्स खेलते रहते हैं। बच्चे की शार्प नजर में यह सब आता है। पर ठीक से विवेकबुद्धि विकसित न होने से या निर्दोषता होने के कारण ये आप के मन को समझ नहीं सकते और मन में लोगों के लिए गलत अभिप्राय बना लेते हैं और फिर वैसा ही व्यवहार करते हैं। इसलिए अपनी डर्टी पालिटिक्स की छाया बच्चों पर न पड़ने दें। वरना भविष्य में वही पालिटिक्स वे आप के साथ करेंगे। अगर अच्छी संतान चाहते हैं तो अच्छा बनना ही बेस्ट विकल्प है।

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Sneha Singh
स्नेहा सिंह
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