सुपरहिट:मुगल-ए-आजम की दूसरी अनारकली
नियति कहें या संयोग, कभी-कभी अमुक घटनाएं एक-दूसरे पर इस तरह प्रभाव डालती हैं कि बाद में हम उन्हें याद करते हैं तो लगता है कि यह चमत्कार कैसे हुआ था। आप हिंदी सिनेमा की सब से महान फिल्म 'मुगल-ए-आजम' की कल्पना मधुबाला के बिना कर सकते हैं? हां, ऐसा होते होते रह गया था। यहां आप को पता चलेगा कि मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच बोलचाल का भी संबंध नहीं था, फिर भी उन्होंने किस तरह दिल से अनारकली की भूमिका के साथ न्याय किया था। तीसरी नियति, 'मुगल-ए-आजम' के समय मधुबाला मर रही थीं। हां, उन्हें हृदय की बीमारी थी और डाक्टरों ने हाथ ऊपर कर दिए थे। फिर भी मधुबाला ने अपने कैरियर का श्रेष्ठ परफार्मेंस इस फिल्म में दिया था।'मुगल-ए-आजम' (1960) बनी तब मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच बोलचाल नहीं था। फिर भी उनकी व्यावसायिक ईमानदारी इतनी अच्छी थी कि सलीम और अनारकली के पात्र में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी। झगड़ा बी.आर.चौपड़ा की फिल्म 'नया दौर' (1957) के आऊट डोर शूटिंग में जाने को लेकर हुआ था। बैजयंतीमाला ने इसमें रजनी नाम की लड़की की जो भूमिका की थी, वह मधुबाला को करनी थी। उन्होंने एडवांस में पैसों की किस्त भी ले ली थी और 15 दिन की शूटिंग भी की थी।
इसकी एक आऊट डोर शूटिंग ग्वालियर में तय की गई थी। उस समय दिलीप कुमार और मधुबाला के रोमांस की बातें खूब उड़ी थीं। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान ने मधुबाला को आऊट डोर शूटिंग के लिए न फरमा दिया था। उन्हें लगता था कि दिलीप कुमार के कहने पर ही आऊट डोर शूटिंग रखी गई है। जिससे मधुबाला के साथ उन्हें खुला मैदान मिल सके। चोपड़ा ने दिलीप साहब से मदद मांगी। तब दिलीप साहब और मधुबाला का एंगेजमेंट हो गया था। दिलीप साहब ने मध्यस्थता की, पर मधुबाला ने पिता की अवज्ञा करने से मना कर दिया और आऊट डोर पर जाने से भी इनकार कर दिया।इसलिए चोपड़ा प्रोडक्शन ने मधुबाला पर मुकदमा कर दिया, जो एक साल चला।
इसी की वजह से दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया। मधुबाला ने किशोर कुमार से विवाह कर लिया, इसका मूल कारण यही ब्रेकअप था। मधुबाला को बचपन से ही वेंटिक्युलर सेप्टल डिफेक्ट नाम की बीमारी थी, जिसे हम हृदय में छेद कहते हैं। इस बैकग्राउंड के बीच दोनों 'मुगल-ए-आजम' में इकट्ठा हुए और इतिहास रच गया। 'मुगल-ए-आजम' के अमुक दृश्यों में मधुबाला फीकी नजर आती हैं, वह इसी खून की बीमारी की वजह से। फिल्म से जुड़े लोगों का कहना है कि 'मुगल-ए-आजम' की मुश्किल शूटिंग के कारण मधुबाला पर अधिक दबाव पड़ा था, पर वह जैसे मौत के सामने जिद कर बैठी थीं, इस तरह काम कर रही थीं। फिल्म के प्रसिद्ध गाने 'बेकस पे करम कीजिए...' की शूटिंग में शरीर पर निशान पड़ जाएं इस तरह लोहे की भारी जंजीरों में परफार्मेंस दिया था।
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि 'मुगल-ए-आजम' की आधी शूटिंग पूरी हो गई, तब तक हमारे बीच बोलचाल का संबंध नहीं था। फिल्म का जो यादगार दृश्य है, जिसमें हमारे दोनों के होठों के बीच परदा आता है, वह शूट हुआ था तब हम दोनों एक दूसरे की ओर देखते भी नहीं थे।'
आज आप 'मुगल-ए-आजम' की अनारकली की भूमिका में मधुबाला के अलावा किसी दूसरी ऐक्ट्रेस की कल्पना भी नहीं कर सकते। पर हकीकत यह है कि इस भूमिका के लिए मधुबाला पहली पसंद नहीं थीं। यह तीसरी नियति की बात है। सोफिया नाज नाम की पाकिस्तान स्थित कवयित्री ने सनसनीखेज दावा किया है कि 'मुगल-ए-आजम' में अनारकली के रोल के लिए पहली पसंद उनकी मां शहनाज बिया थीं। परंतु परिवार के फिल्मों के प्रति विरोध के कारण उन्हें यह रोल छोड़ना पड़ा था। मधुबाला को उनके बाद पसंद किया गया था।
पाकिस्तान के प्रतिष्ठित 'डाॅन' समाचारपत्र में एक लेख में नाज ने यह दावा किया है। उनके कहने के अनुसार, 1950 के शुरुआत में भोपाल से शादी कर के उनकी मां मुंबई आईं तो एक नाटक में उन्होंने अनारकली की भूमिका की थी। के.आसिफ ने उस नाटक को देखा था और उन्हें अनारकली की भूमिका के लिए वह कलाकार पसंद भी आ गया था। उन्होंने 'मुगल-ए-आजम' के सेट्स पर इस अनारकली के दो सौ फोटो भी लिए थे। जिसमें एक प्रसिद्ध वह फोटो भी था, जिसमें सलीम उसे चुंबन करने जाता है तो अनारकली के चेहरे पर एक परदा लहराता है। नाज कहती है कि यह और अनेक फोटो अलबम में थे और मां कराची में स्थाई हुईं तो बारबार खोल कर देखती थीं। उसमें मुंबई की फिल्मी पार्टियों, दिलीप कुमार और जवाहरलाल नेहरू के साथ के अनेक फोटो थे।
नाज का दूसरा सनसनीखेज खुलासा यह भी है कि घर में उनकी मां को बहुत मारा जाता था (उनका पति उन्हें 'चालू' कहता था)। उनका पति राजनेता और बैरिस्टर था। सात सालों तक उनकी मां (मार के निशान न दिखाई दें इसलिए) चेहरे पर पालव डाल कर उनके साथ सभा और यात्रा पर जाती थीं। उस समय के मुंबई के प्रसिद्ध डा. वी.एन.शिरोडकर ने उनकी मां से यह भी कहा था कि अगर इन्होंने जल्दी डिवोर्स नहीं लिया तो मार खा खा कर छह महीने में मर जाएंगी।
उन्होंने डिवोर्स तो लिया, पर पति ने दो बच्चों को कब्जे में ले लिया। इसके बाद वह शादी कर के कराची में स्थाई हो गईं। फिर वह 20 साल तक बच्चों के लिए लड़ती रहीं। पर बच्चे भी मिलने को तैयार नहीं थे। पति ने बच्चों के भी दिमाग में भर दिया था कि वह 'चालू' औरत है।
सोफिया नाज लिखती हैं कि 'मैं अपनी मां की ये बातें पहली बार सार्वजनिक कर रही हूं। 2012 में उनकी मौत हो गई थी। उनका पहला पति अब जिंदा नहीं है। मुंबई में लोग उसे इस्लामिक स्कालर और लेखक के रूप में याद करते हैं। मेरे सौतेले भाई-बहन मेरी मां के साथ हिंसा की बात से इनकार करते हैं। मैंने उनकी बात मानी होती और मैंने भी मान लिया होता कि मां 'चालू' थी तो आज मैं भी उसी घर में होती। पर मैं अपनी मां को टूटने नहीं देना चाहती थी।
दिलचस्प बात यह है कि 'डाॅन' अखबार में छपे इस पूरे लेख में सोफिया ने अपने सौतेले पिता का नाम नहीं लिखा। एकदम अंतिम लाइन में उसने 'शहनाज' नाम का उल्लेख किया है, जो अधूरा है। जबकि बाद में जानकारों ने कहा कि उसका नाम शहनाज बिया था। सोफिया लिखती है, 'मेरी मां के इंतकाल के बाद मैंने अपनी मां और पिता के सहनाम को त्याग दिया और बीच का नाम नाज अपना लिया। नाज भी मुझे उन्होंने अपने मुख्य नाम को तोड़कर दिया था। शहनाज 'अपना' इस अर्थ में या वह जब पांच साल की थीं, तब परिवार द्वारा दिए नाम को ठुकरा कर उन्होंने खुद अपना शहनाज नाम पसंद किया था। अब अपनी मां की बेटी सोफिया नाज के रूप में मातृत्व का यह दायित्व अपनी मौत तक गर्व से निभाऊंगी। सोफिया ने अपनी मां के जो फोटो शेयर किए हैं, वे खासे आकर्षक हैं।
यह लेख इसलिए भी चर्चित हुआ है कि सोफिया ने अगस्त, 2020 में अपनी मां 'शहनाज' के नाम पर एक पुस्तक भी लिखी थी। इस किताब में उसने दावा किया था कि मुंबई में उसकी मां के नाटक 'अनारकली' के तीन सप्ताह हो गए थे। इसके बाद के.आसिफ उनके ड्रेसिंग रूम में आए थे और उसकी मां के सामने घुटनो के बल बैठ कर दोनों हाथ जोड़कर कहा था कि 'अनारकली, तुम मुझे मिल गई हो और मैं तुम्हें हिंदुस्तान की सब से प्रसिद्ध स्त्री बना दूंगा। तुम्हें 'मुगल-ए-आजम' में काम करना है।'
के.आसिफ ने 'मुगल-ए-आजम' के सेट पर अनारकली के ड्रेस में शहनाज की कुछ तस्वीरें ली थीं। इसी के साथ रुपए की गड्डी ले कर वह शहनाज के घर 'सौदा' पक्का करने गए थे। सोफिया के लिखे अनुसार, उस दिन घर में शहनाज के दो भाई अलिम मियां और धनी मियां संयोग से हाजिर थे। के.आसिफ ने स्टूडियो में खींची तस्वीर के साथ रुपए की गड्डी मेज पर रख दी। यह देख कर दोनों भाई भड़क गए थे। अलिम मियां ने एक फोटो उठा कर फाड़ते हुए कहा था, 'तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की। गेट आऊट।'
के.आसिफ एक शब्द बोले बगैर घर से बाहर निकल गए थे। उसी दिन मुंबई की 'दूसरी' अनारकली का स्वप्न बिखर गया था।
(सोफिया नाज अनेक सांस्कृतिक पत्रिकाओं में अंग्रेजी-उर्दू में लिखती हैं। इनके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। यह दक्षिण एशियाई साहित्य के साप्ताहिक द सनफ्लावर क्लेक्टिव की पोएट्री एडीटर हैं। सोफिया महिला कवियों को समर्पिय वेबसाइट भी चलाती हैं।)
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