विश्व सिंधी भाषा दिवस 10 अप्रैल 2023 पर विशेष
भारतीय भाषाओं रूपी गुलदस्ते का एक ख़ूबसूरत फूल है सिंधी भाषाआंखें गई जहांन खत्म, भाषा गई पहचान ख़त्म - अपनी मातृभाषा को संजोकर, विलुप्तता से बचाने मातृभाषा में बात करना ज़रूरी - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारत में अनेकता में एकता की भावना अत्यंत गहराई के साथ समृद्ध है। हालांकि संविधान में 22 भारतीय भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें सिंधी भाषा भी शामिल है। परंतु यहां हजारों भाषाएं उप भाषाएं बोलीयां उपबोलीयां है, जो शायद पूरी तरह से हमें भी मालूम नहीं होगी याफिर उन भाषाओं के लिए कोई प्रबुद्ध मंच उपलब्ध नहीं होगा, इसलिए उन अनभिज्ञ भाषाओं बोलियों को शासन द्वारा संज्ञान में लेकर उन्हें उचित मंच पर लाकर मुख्यधारा में शामिल करना चाहिए। मातृभाषा को अपनाने मुख्य पटल पर लाने के लिए न केवल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रावधान किए गए हैं बल्कि पूर्व उपराष्ट्रपति, वर्तमान उपराष्ट्रपति, पीएम, गृहमंत्री इत्यादि ने भी अलग-अलग अनेक मंचों पर मातृभाषा पर मातृभाषा पर बल दिया है। मातृभाषा को तेजी से आगे बढ़ाने, विकास करने, बोलचाल में लाने से लेकर डॉक्टर, इंजीनियरिंग तक की पढ़ाई अब मातृभाषा में करने की होड़ पर बल दिया जा रहा है। दिनांक 30 मार्च 2023 को ही माननीय गृहमंत्री ने एक कार्यक्रम के संबोधन में कहा था 20 ऐसे विश्वविद्यालय हो गए हैं जहां मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण की जा रही है। चूंकि 10 अप्रैल 2023 को विश्व सिंधी भाषा दिवस है, जो प्रतिवर्ष वैश्विक स्तरपर अति उल्लाहपूर्ण और धूमधाम से मनाया जाता है, इसलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारतीय भाषाओं रूपी गुलदस्ते का एक खूबसूरत फूल है सिंधी भाषा।
साथियों बात अगर हम 10 अप्रैल को सिंधी भाषा दिवस पर्व के रूप में उत्साह के साथ मनाने की करें तो, 10 अप्रैल 1967 को भारतीय संविधान की आठवींं अनुसूची में भारत की प्राचीन सिंधी भाषा को शामिल किया गया था और इसी दिन संविधान में सिंधी भाषा को मान्यता दी गई थी तभी से विश्व सिंधी दिवस प्रतिवर्ष 10 अप्रैल को हजारों वर्षों पुरानी सिंध की संस्कृति को याद करते हुए उसे संरक्षित रखने के लिए मनाया जाता है। शहर, देश-प्रदेश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रह रहे सिंधी समाज के परिवारों ने एक-दूसरे को सोशल मीडिया व फोन पर बधाई दी एवं मिठाई बांटी जाती है। सिंध के मूल निवासियों जो 1947 में भारत और पड़ोसी मुल्क के बंटवारे के बाद सिंध के अधिकांश हिंदू और सिख यहां से भारत या अन्य देशों में जाकर बस गए पड़ोस में सिंधी भाषा नस्तालिक (यानीअरबी लिपि) में लिखी जाती है जबकि भारत में इसके लिए देवनागरी और नस्तालिन दोनों प्रयोग किए जाते हैं।
साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा से संबंधित अनेक राज्यों में स्थापित सिंधी अकादमी की करें तो सिंधी भाषा में दर्जापूर्ण लेखन को बढावा देना तथा सिंधी साहित्यकारों की कृतियों को प्रकाशित करना और साहित्य सृजनशील पाठकवर्ग तक लेकर जाने सिंधी भाषा के प्रचार-प्रसार भाषा के विकास संरक्षण एवं संवर्धन के लिए की गई थी सिंधी अकादमी अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु निरंतर अग्रसर है अकादमी द्वारा सिंधी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रति वर्ष विद्युत संगोष्ठी छात्र प्रतियोगिताओ का आयोजन छात्र प्रोत्साहन वृत्ति वितरण प्रदेश एवं राज्य स्तर के कवियों द्वारा विद्वानों साहित्यकारों को आमंत्रित कर राष्ट्रीय स्तर के कवि सम्मेलनों का आयोजन कराया जाता रहा है। सिंधी भाषा में रुचिता लाने हेतु सिंधी नाटक लोकगीत जैसे कार्यक्रमों का आयोजन भी कराया जाता है इसके अतिरिक्त लेखकों को प्रोत्साहन अर्थ अकादमी द्वारा सिंधी पुस्तकों को प्रकाशित कराना एवं पुस्तकों के प्रकाशन हेतु अनुदान देना तथा अन्य ऐसे कार्य जिनसे सिंधी भाषा व संस्कृति को बढ़ावा मिल सके अकादमी द्वारा समय-समय पर सुरुचिपूर्ण ढंग से किए जाते रहे हैं। कुछ राज्यों में सिंधी अकादमी की प्रमुख योजनाएं (1)- सिंधी भाषा साहित्य संस्कृति एवं कला को प्रोत्साहित किए जाने हेतु सम्मेलनों गोष्ठियों कार्यशाला का आयोजन करना (2)- सिंधी भाषा के मौलिक साहित्यिक एवं हस्तलिखित रचनाओं का प्रकाशन तथा इस प्रयोजन नार्थ विद्वानों को सहायता प्रदान करना (3) सिंधी भाषा में बाल साहित्य का प्रकाशन (4)- सिंधी भाषा में संदर्भ ग्रंथों की रचना एवं उनका प्रकाशन करना (5)- अप्रकाशित श्रेष्ठ साहित्यिक रचनाओं को सिंधी भाषामें प्रकाशितकरना (6) सिंधी भाषा के प्रतिभावान छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान करना (7)- पंजीकृत सिंधी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं को आर्थिक सहायता देना (8)- सिंधी भाषा के सुयोग्य लेखकों को रचनाओं के प्रकाशन में सहायता करना (9)- सिंधी भाषा के बुजुर्ग एवं जरूरतमंद लेखकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना (10)- महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओं का सिंधी भाषा में अनुवाद करना इत्यादि है।
साथियों बात अगर हम इंदौर के संसद द्वारा इतिहास में पहली बार संसद में शपथ लेने से लेकर चर्चा तक सिंधी भाषा में किए हैं, जिसका विरोध एक पार्टी ने भी किया था, उसकी करें तो इसपर सांसद का कहना था कि सिंधी उनकी मातृभाषा है और संसद में इस जुबान में उनके शपथ लेने को लेकर अनर्गल विवाद खड़ा नहीं किया जाना चाहिये। लोकसभा सदस्यों का अलग-अलग भाषाओं में शपथ लेना दिखाता है कि देश में अनेकता में एकता की भावना समृद्ध है।अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार चुनकर लोकसभा पहुंचे 57 वर्षीय नेता ने कहा,मैंने संसद में केवल 40 सेकंड की शपथ सिंधी में ली।
साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा लिपि की करें तो, सिंधी भाषा मुख्यत-दो लिपियों में लिखी जाती है, अरबी-सिंधी लिपि (अरबी वर्णाक्षरों का परिवर्तित तथा परिवर्द्धित रूप), जिसे ब्रिटिश सरकार ने 1853 में मानकीकृत किया और जिसमें 52 अक्षर हैं तथा देवनागरी-सिंधी लिपि (देवनागरी, जिसमें सिंधी भाषा की अंत:स्फोटात्मक ध्वनियों के लिए चार अतिरिक्त अक्षर शामिल किए गए है)। इसके अलावा, सिंधी भाषा की अपनी प्राचीन देशी लिपि 'सिंधी' भी है, जिसकी उत्पत्ति आद्य-नागरी, ब्राह्मी और सिंधु घाटी लिपियों से हुई है। लेकिन इसका उपयोग अब कुछ व्यापारियों के वाणिज्यिक पत्र व्यवहार और सिंध के इस्माईली खोजा मुस्लिम समुदाय के धर्मग्रन्थों तक सीमित है। भारत में सिंधियों की वर्तमान सामाजिक सांस्कृतिक स्थिति को देखते हुए देवनागरी-सिंधी लिपि का अधिकाधिक उपयोग उनकी साहित्यिक व सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और उसे बढ़ावा देने के लिए हो रहा है।
साथियों बात अगर हम सिंधी भाषा के इतिहास की करें तो 18वीं शताब्दी का पूर्वार्ध सिंधी साहित्य का स्वर्ण युग कहलाता है। इस समय शाह इनायत, शाह लतीफ, मखदूम मुहम्मद जमान मखदूरा अब्दुल हसन, पीर मुहम्मद बका आदि बड़े-बड़े कवि हुए हैं। ये सब के सब सूफी थे। इन लोगों ने सिंधी काव्य में नए छंदों, नई विधाओं और गंभीर दार्शनिक विचारों का प्रवर्तन किया। सिंधी मसनवियों और काफियों के रूप में तसव्वुक का भारतीयकरण यहीं से आरंभ होता है। शाह इनायत ने उम्र मारूई, मोमल मेंघर लीला चनेसर तथा जाम तमाची और नूरीनाम के किस्सों के अतिरिक्त मुक्तक दोहे और सुर लिखे। इनका प्रकृति वर्णन विशद और कलापूर्ण है और इनके उपमान मौलिक और अनूठे हैं। शाह लतीफ (1689-1752 ई.) सिंधी के सबसे बड़े और लोकप्रिय कवि माने गए हैं। इन्होंने नए विचार, नए विषय, नई कल्पनाएँ और नई शैलियाँ देकर सिंधी भाषा और साहित्य को समुन्नत किया। इनका रिसालो सिंधी की मूल्यवान निधि हैं। एक शताब्दी से कुछ पहले तक सिंधी लेखन के लिए चार लिपियाँ प्रचलित थीं। हिंदु पुरुष देवनागरी का, हिंदु स्त्रियाँ प्राय: गुरुमुखी का, व्यापारी लोग (हिंदू और मुसलमान दोनों) हटवाणिको उर्फ़ हटकाई का (जिसे 'सिंधी लिपि' भी कहते हैं) और मुसलमान तथा सरकारी कर्मचारी अरबी-फारसी लिपि का प्रयोग करते थे। इधर भारत के सिंधी लोग नागरी लिपि को सफलतापूर्वक अपना रहे हैं।भारतीय सिन्धु विद्यापीठ या इण्डियन इंस्टीटयूट ऑफ सिन्धोलॉजी सिन्धी भाषा, साहित्य, संस्कृति, कला और शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत अध्ययन एवं शोध का केन्द्र है। यह गुजरात के कच्छ के आदिपुर में स्थित है। इसकी स्थापना अक्टूबर, 1989 में की गयी थी। सिन्धी समाज की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखना एवं उसका निरन्तर विकास करना ही इस संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व सिंधी भाषा दिवस 10 अप्रैल 2023 पर विशेष।भारतीय भाषाओं रूपी गुलदस्ते का एक ख़ूबसूरत फूल है सिंधी भाषा।आंखें गई जहांन खत्म, भाषा गई पहचान ख़त्म-अपनी मातृभाषा को संजोकर,विलुप्तता से बचाने मातृभाषा में बात करना ज़रूरी है।
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