महकता है घर जिसमें बच्चे बसते हैं
March 28, 2023 ・0 comments ・Topic: kishan bhavnani poem
भावनानी के भाव
महकता है घर जिसमें बच्चे बसते हैं
महकता है घर जिसमें बच्चे बसते हैं
संस्कारवान बच्चे धन सम्मान सेवा के रस्ते हैं
बच्चों में भगवान बसते हैं
हर छल कपट दांवपेंच से दूर रहते
अबोध बच्चे खिलखिलाकर हंसते हैं
किसी के ऊपर ताने तंग नहीं कस्ते हैं
क्योंकि बच्चों में भगवान बसते हैं
बच्चे न कोई शिकायत गिले-शिकवे करते हैं
वह बेटी या बेटा हूं अनजान रहते हैं
ना किसी की बुराई ना गुणगान करते हैं
क्योंकि बच्चों में भगवान बसते हैं
नारी को मां बनने का सम्मान देते हैं
पिता के गौरव और अभिमान होते हैं
मत मारो कोख में वह एक नन्हीं सी जान है
बच्चे में समाए होते भगवान हैं
गम खुशी नहीं समझते हमेशा हंसते हैं
दिल जुबां में कुछ नहीं बस हंसते हैं
स्कूल जाते पीठ पर भारी बसते हैं
तकलीफ नहीं बताते बस हंसते हैं
About author
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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