पशु चिकित्सा को चिकित्सा की जरूरत
सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं को पशु चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही नये पशु अस्पतालों का निर्माण और उनमें आवश्यक स्टाफ की नियुक्ति, आवश्यक दवाइयों की उपलब्धता,हर पशु का बीमा, खण्ड स्तर पर पशु धन मेलों का आयोजन और पालकों को हरसंभव मदद मुहैया करवाकर उन्हें दूध का सही दाम मिलना जरूरी है।दुग्ध क्रांति सफल हो भी कैसे, क्योंकि प्रदेश के लगभग सात हजार गांव, ढाणी, कस्बों और शहरों में से केवल आधे से भी कम गांव में पशु अस्पताल खोले गए हैं। प्रदेश का बहुत बड़ा क्षेत्र अब भी ऐसा है जहां पशु चिकित्सा हेतु कोई पशु अस्पताल नहीं है। इसके अतिरिक्त यदि रात्रि समय कोई पशु बीमार पड़े तो उसका इलाज कहां कराएं, यह पशुपालकों की गंभीर समस्या है।हरियाणा सरकार द्वारा पशुपालकों के लिए पशु धन किसान क्रेडिट कार्ड योजना पशु खरीदने की बनाई गई योजना सराहनीय है। मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आजकल घरों की बजाय अधिकतर गाय सडक़ों, गली और गांवों में आवारा घूमती दिखाई दे रही हैं।इसका प्रमुख कारण है गोवंश की कृषि कार्यों में उपयोगिता कम होना और सरकार द्वारा पशु मेलों पर रोक लगाना। प्रदेश में दुग्ध क्रांति लाए जाने को लेकर सरकार करोड़ों रुपयों का बजट खर्च करने के बावजूद फिलहाल सफल नहीं हो पाई हैं। नतीजतन आज भी लोग केमिकल युक्त पैकेट बंद दूध व दूध से बने पदार्थ घरों में उपयोग करने के लिए मजबूर हैं। पशुपालकों को दूध का सही दाम कभी मिला नहीं। पशुपालन लगातार महंगा होता जा रहा है। दुधारू पशुओं के बांझ बनने पर लोग उन्हें आवारा घूमने के लिए छोड़ देते हैं।सरकार ने सूअर पालन के साथ भेड़ बकरी पालन और गायों के लिए गोशालाओं का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन ये कदम पर्याप्त नहीं हैं। दुग्ध क्रांति सफल हो भी कैसे, क्योंकि प्रदेश के लगभग सात हजार गांव, ढाणी, कस्बों और शहरों में से केवल आधे से भी कम गांव में पशु अस्पताल खोले गए हैं। प्रदेश का बहुत बड़ा क्षेत्र अब भी ऐसा है जहां पशु चिकित्सा हेतु कोई पशु अस्पताल नहीं है। इसके अतिरिक्त यदि रात्रि समय कोई पशु बीमार पड़े तो उसका इलाज कहां कराएं, यह पशुपालकों की गंभीर समस्या है। पशु चिकित्सालयों में चिकित्सकों और वीएलडीए के पद खाली पड़े हैं जिन्हें भरा नहीं जा रहा है। ऐसे में पशु पालकों को सही सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।सर्पदंश और बिजली करंट से किसी दुधारू पशु की मौत पर चिकित्सक पशु पालक को आर्थिक मदद मिलने की संस्तुति करते हैं।
-प्रियंका सौरभ
अगर किसी गर्भवती दुधारू पशु की मौत गंभीर बीमारी से होने पर पशु चिकित्सक ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार नहीं करते हैं, ऐसे में पशु पालकों को हजारों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। वर्तमान दौर में सरकार की ओर से पशुपालकों को ऐसी कोई भी सुविधा फिलहाल उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है।वैटरनरी सर्जन को चूंकि नॉन प्रैक्टिस अलाउंस मूल वेतन में जोड़कर दिया जाता है इसलिए उनका वेतन लाखों में है जबकि वीएलडीए सहित अन्य कर्मचारियों को मिलने वाला वेतनमान ऊंट के मुंह में जीरा डालने वाली बात है। पशु पालकों को जब भी ऐसे स्टाफ को अपने बीमार मवेशियों की जांच करने के लिए घर बुलाना पड़ता है, तब उन्हें अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। पशु चिकित्सालयों में बहुत कम दवाइयां उपलब्ध रहने की वजह से पशुपालकों को मेडिकल स्टोरों से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। एक तो दवाईयों की खरीददारी, ऊपर से स्टाफ को भी पैसे देने पड़ते हैं। ऐसे में पशु पालकों को सरकार की तरफ से कौनसी सुविधाएं मिल रही हैं, जिससे दुग्ध क्रांति प्रदेश में लाई जा सके। राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान योजना के तहत पशुपालकों को घर-द्वार पर ही निशुल्क गर्भधारण की सुविधा दी गई है। इसके तहत पशुओं को टैग लगाए जाते हैं। कहने का मतलब है कि दुधारू पशुओं के कानों में यह टैग लगाकर उनका ऑनलाइन पंजीकरण भी किया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता और उत्तम नस्ल की संतति करके दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सके। प्रत्येक जिला के पशुपालकों को प्रजनन योग्य गाय और भैंस को उत्तम नस्ल के वीर्य गुणों की मदद से निशुल्क गर्भधारण की सुविधा दिए जाने का लक्ष्य सरकार ने रखा है।
सरकार द्वारा वीएलडी डिप्लोमा कोर्स हेतु निजी संस्थानों को मान्यता प्रदान की जा रही है जहां से प्रति वर्ष हजारों डिप्लोमा धारक कोर्स करके निकलते हैं लेकिन इन डिप्लोमा धारकों के डिप्लोमा के पंजीकरण और संचालन हेतु कोई परिषद का गठन न होने से इनको बड़ी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन को पशु चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए यह बहुत जरूरी है। इसके साथ ही नये पशु अस्पतालों का निर्माण और उनमें आवश्यक स्टाफ की नियुक्ति, आवश्यक दवाईयों की उपलब्धता,हर पशु का बीमा, खण्ड स्तर पर पशु धन मेलों का आयोजन और पालकों को हरसंभव मदद मुहैया करवाकर उन्हें दूध का सही दाम मिलना जरूरी है। किसानों, पशुपालकों की सुविधाओं के लिए पूर्व वर्षों में कृषि मेलों का आयोजन किया जाता था। मेलों में पशु पालकों को सब्सिडी पर दुधारू पशु दिए जाते थे। पशु चिकित्सालयों में औजार, कृषि बीज, दवाइयां और उर्वरक दिए जाते थे। वर्तमान समय में ऐसा बहुत कम देखने को मिल रहा है। पशु चिकित्सालयों में पशुपालकों को सुविधाएं नहीं मिलने की वजह से लोग पशुपालन से विमुख हो रहे हैं। हरियाणा जैसे राज्य, जहां बेरोजगारी की बड़ी समस्या है, में पशुपालन रोजगार का बड़ा साधन है। इसलिए इस बार के बजट में इसके लिए अलग प्रावधान होना चाहिए।
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प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
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