क्रोध पर कविता | krodh par kavita
January 30, 2023 ・0 comments ・Topic: Nandini_laheja poem
मेरी बात मेरे जज़्बात
क्रोध
पंच विकारों में एक क्रोध से,मानव दानव बन जाता है।
सुधबुध, विवेक सब खो देता,
पाप कई कर जाता हैं।
क्रोध जगाता भावना बदले की,
ज्वाला तन मन में भबकाता हैं।
स्वयं भी जलता मानव उसमे,
औरो को भी जलाता हैं।
क्रोध से बढ़ता अहम मानव में,
भले बुरे का भेद भुलाता है।
आवेश में आकर फिर वह ,
पाप कर्म करवाता हैं।
मुख से निकले बोल कटीले,
दूजे के ह्रदय को घायल कर जाता हैं।
घाव लगते हैं, रिश्तों पर ऐसे,
किसी मरहम से न वो भर पाता हैं।
About author
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
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