बच्चे अपंग (आलसी) हो जाएं, इतनी भी सुविधा न दें
सुबह-सुबह स्कूल जाने का समय होते ही ऋषि और रिया में झगड़ा शुरू हो जाता। रीमा एक ओर किचन संभालती, दूसरी ओर राज और बच्चों को नाश्ता कराती। तीसरी ओर मशीन में कपड़े डालती, बर्तन सिंक में डाल कर अपना लंच पैक करती और भागते हुए नौकरी पर जाती। इसमें बच्चों का यह झगड़ा। राज कभी बच्चों के झगड़े में पड़ता ही नहीं था। रीमा कभी इस बारे में राज से कुछ कहती तो उसके पास एक ही जवाब होता था, "मुझे गुस्सा आ जाता है। मार देता हूं तो कहती हो कि बच्चों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए।"
उस दिन सुबह से ही ऋषि रिया को परेशान कर रहा था। 'रिया मेरा स्कूल बैग ले आओ। रिया तुम ने मेरा लंच बाक्स क्यों नहीं रखा? रिया तुम ने अपनी वाटर बोटल भर ली, मेरी वाटर बोटल क्यों नहीं भरी?"
रिया चिढ़ जाती और मम्मी से शिकायत करती, "मम्मी, भइया को रोको न, मुझे क्यों हैरान करता है?"
"बेटा तुम अपनी बोटल भरती हो तो उसी के साथ भाई की भर दिया करो। इस तरह झगड़ा मत करो।" रीमा के यह कहने पर रिया तुरंत कहती, "यही बात तुम भाई से भी तो कह सकती हो। वह बड़ा है, बैग भरने में उसे मेरी मदद करनी चाहिए। उसे मेरी वाटर बोटल भर कर देनी चाहिए। हमेशा तुम मुझे ही शांत रहने और काम करने को कहती हो। भाई को तो कुछ नहीं कहती हो। कुछ दिन पहले कामवाली नहीं आई थी तो मैंने घर में झाड़ू लगया था। भाई बैठा टीवी देख रहा था। घर के काम की छोड़ो, वह अपना खुद का भी काम नहीं करता। अब मैं उसका एक भी काम नहीं करने वाली।"
राज ने उसे समझाते हुए कहा, "भाई का थोड़ा काम करने में इतना गुस्सा नहीं किया जाता। तुम दोनों को मिलजुल कर रहना चाहिए।"
"पापा, यही बात आप को भाई को भी समझानी चाहिए। इसे केवल छोटी बहन पर हुकुम चलाना आता है।"
"यह इतना गुस्सा क्यों कर रही है रीमा? थोड़ा सा काम करने में इतनी किचकिच? यह सब कौन सिखाता है इसे?"
"पापा कोई नहीं सिखाता। मैं अपनी सभी फ्रेंड्स के घरो में देखती हूं, सभी लड़कियों को ही काम करने की सलाह देते हैं। जबकि लड़को को भी बराबर काम करना चाहिए। और प्लीज, आप भी थोड़ी मम्मी की मदद किया कीजिए। बेचारी पूरा दिन काम करती रहती हैं।" इतना कह कर रिया घर से तेजी से निकल गई। पर घर का वातावरण तनावपूर्ण हो गया। राज को लगा कि रीमा यह सब सिखाती है। रीमा को लगा कि रिया की बात सच है। ऋषि भी कुछ बोले बगैर चला गया।
वैसे तो यह पूरी बात टीनएज में प्रवेश कर चुके सभी बच्चों की है। एक खास उम्र के बाद बच्चों में सोचने और अपनी मर्जी के अनुसार व्यवहार करने की लालसा तीव्र होती है। सही-गलत के निर्णय करने की समझ भी आ जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे थोड़ा आक्रामक हो जाते हैं। वे जिद करने लगते हैं। अपनी बात को सामने रखते हैं। पर उनकी जिद या बात बिना किसी लाॅजिक की नहीं होती। वे अपने आसपास जो देखते हैं, उसे समझते और सीखते हैं और कोई बात गलत होती है तो उसका विरोध भी करते हैं। उस समय दबाव डालने या अपनी बात जबरदस्ती मनवाने की कोशिश पर बच्चे अधिक आक्रामक हो जाते हैं। वैसे उनकी ज्यादातर बातें सच ही होती हैं और उनकी बातों के पीछे एक निश्चित वजह भी होती है।
जैसे कि रिया की बात सच थी। घर के हर आदमी को हर काम करना चाहिए। लड़का होने से किसी को काम सौंप देने या काम न करने की छूट नहीं मिल जाती। आज के जमाने में किचन का काम हो या घर का कोई अन्य काम, लड़कों को भी सीखना पड़ता है। बच्चे जब तक पढ़ते हैं, मां-बाप उनके सारे काम कर देते हैं। उसमें लड़का हुआ तो उसे तो जैसे सारे कामों से मुक्ति मिल जाती है। मम्मी काम करते हुए थक जाती हैं, तब भी लड़के मदद के लिए नहीं आते। घर में एक आदमी काम कर रहा हो और बाकी सब बैठे हों या आराम कर रहे हों तो बड़ा अजीब लगता है। बच्चे घर में पापा या दादा को काम करते देखें तो यह आदर्श परिस्थिति है और ऐसे घरों में लड़के अपने आप काम करने लगते हैं। परंतु जिन घरों में पुरुष यानी पापा या दादा महिलाओं की काम में मदद नहीं करते, उस घर के लड़के उन्हीं का अनुसरण करते हैं और मम्मी के साथ काम करवाने की भावना उनमें विकसित नहीं होती।
बच्चों को सुख-सुविधा देनी अच्छी बात है, पर इतनी अधिक भी नहीं देनी चाहिए कि वे अपंग यानी आलसी हो जाएं अथवा 'यह काम तो मम्मी का है, मेरा नहीं' यह बात उनके मन में बैठ जाए। यह परिस्थिति अनुचित है। बचपन से ही बच्चे को अपने काम करने आने चाहिए और किसी को अकेले काम करता देख कर दौड़ कर मदद करने की आदत होनी चाहिए। ऐसा होने पर बच्चों का उचित विकास होगा और समाज का संतुलन भी नहीं बिगड़ेगा।
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स्नेहा सिंह
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