शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं | shaskeeye thappe wali vastuon ki heraferi karta hun
यह कविता अनाज सीमेंट इत्यादि शासकीय अलॉटमेंट वाली वस्तुओंं पर केंद्र या राज्य सरकार के ठप्पे लगे रहते हैं ।परंतु हमें मार्केट में ब्लैक में बिकती हुई दिख जाती है।कई बार पकड़ी भी जाती है। मिलीभगत पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष पर आधारित है
व्यंग्य कविता–शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं
शासन द्वारा अलॉटमेंट वस्तुओं पर नज़र रखता हूंयोजनाओं से हड़पकर बाजार में भेजता हूं
मिलीभगत से माल बाहर निकलवाता हूं
शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं
अनाज सीमेंट सभी पर नज़र रखता हूं
नीचे से ऊपर तक बात कर लेता हूं
चुपके से बाजार में पहुंचा देता हूं
शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं
निजी कंस्ट्रक्शन में ठप्पे वाला सीमेंट देता हूं
पांच किलो योजना को भी नहीं छोड़ता हूं
घपले को अनदेखा करनें छुट्टी पर चला जाता हूं
शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं
कंप्लेंट करने वाले को उल्टा फंसता हूं
ऑफिस में गाली गलौज का आरोप लगाता हूं
जांच रिपोर्ट अपने पक्ष में करवाता हूं
शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं
मिलीभगत चैन को पूरा खुश रखता हूं
हरे गुलाबी की बारिश करता हूं
हर साल फ्लैट प्लॉट की रजिस्ट्री करता हूं
शासकीय ठप्पे वाली वस्तुओं की हेराफेरी करता हूं
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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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