मैं मुस्कुराना सीखी हूं| mai muskurana seekhi hun| kavita
December 01, 2022 ・0 comments ・Topic: poem Prachi Sadana
मैं मुस्कुराना सीखी हूं| mai muskurana seekhi hun| kavita
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मैं मुस्कुराना सीखी हूं |
दर्द को छुपा कर गम को दफनाकर चंचलता का भाव दिखाकर आखिर मैं मुस्कुराना सीखी हूं कहां से
टूट चुकी मन से थक चुकी तन से जीवन में खुशियों के पल चले गए जीवन से हर पल गम के सागर में डूबे रहते हुए भी ना जाने मुस्कुराना सीखी हूं कहां से
चारों और खुशियों की महफिल में भी जा कर उदासियों का आलम दिल में छुपाकर ना जाने मुस्कुराना सीखी हूं कहां से
खुद की परिस्थितियों पर पर्दा लगा कर मन की पीड़ा मन में दबाकर रोने वाले को हंसने का अंदाज बताकर ना जाने मुस्कुराना सीखी हूं कहां से
कालचक्र की कुचक्रों में घिरी हर हालातो से निकलकर भाग्य के हर लेख से लड़कर खुद से नहीं अपनों से हार कर ना जाने भीर भी मुस्कुराना सीखी हूं कहां से
याद कर के बचपन की भाव मन की सारी बातों को बताओ दादी की डांट दादा का लाढ जीवन में ना ठहरा खुशियों का बौछार रोते में हंसते-हंसते में रोते मुस्कुराना सीखी हूं वहां से
काफी प्रश्न खुद से पूछने के बाद उत्तर का ख्याल आया मन में जीवन में प्रैक्टिकली वक्त ने सिखाया मुस्कुराने का सारा आलम है छाया
About author
नाम :-प्राची सदाना (पत्रकार )पता :-रायपुर छत्तीसगढ़
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