व्यंग्य कविता -मासिक शासकीय पगार चौदह हज़ार है
December 12, 2022 ・0 comments ・Topic: kishan bhavnani poem vyang
यह व्यंग्यात्मक कविता भ्रष्टाचार की हदें पार है?क्योंकि मेरा वेतन केवल चौदह हज़ार है।पर एक महीनें में मेरा खर्चा लाखों है, प्रॉपर्टी बैंक बैलेंस सब है। ये सबकी नजरों में है फिर भी सुरक्षित हूं इस पर व्यंग्यात्मक वार है।
व्यंग्य कविता -मासिक शासकीय पगार चौदह हज़ार है
भ्रष्टाचार की कृपा से मुझे धन अपार हैइंडिगो कार फ़्लैट प्लाट अपरंपार है
घर में हरे गुलाबी के पहाड़ है
मासिक शासकीय पगार सिर्फ़ चौदह हज़ार है
मेरे पास दिमाग नहीं यह सेटिंग का आधार है
काम रेटफिक्सिंग के अनेकों प्रकार है
अंदर खाने प्राइवेट काम भी अपार है
मासिक शासकीय पगार सिर्फ़ चौदह हज़ार है
चौदह हज़ार पंद्रह दिन निजी खर्चे का जुगाड़ है
मदिरा तंबाकू खर्रा के शौक अपार है
ऊपरी कमाई की मलाई जोरदार मजेदार है
मासिक शासकीय पगार सिर्फ़ चौदह हज़ार है
गरीब आदमी हूं यह सबसे बड़ा हथियार है
अंदर खाने सेठों को मात देने धन कुबेर तैयार है
शासन को मालूम है कार्यवाही नहीं हमारी पार है
मासिक शासकीय वेतन सिर्फ़ चौदह हज़ार है
मौसेरे भाइयों की मालकी में मेरा व्यापार है
भ्रष्टाचार के करोड़ों लगे हैं मलाई अपरंपार है
शासन जनता एजेंसियां चुप हैं हमारी किस्मत है
मासिक शासकीय पगार सिर्फ़ चौदह हज़ार है
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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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