Story-बदसूरती/badsurati

November 06, 2022 ・0 comments

Story-बदसूरती

गांव भले छोटा था किंतु आप में मेल मिलाप बहुत था।सुख दुःख के समय सब एकदूरें के काम आते थे।कोई ऊंच नीच का भेद नहीं और न ही गरीब अमीर का भेद था।लेकिन जब मोहन पैदा हुआ तो रंग भेद जरूर आ गया था गांव में,जैसे आज से पहले कोई काला बच्चा पैदा ही नहीं हुआ हो।वह कहीं भी जाता तो उसे काले होने की उलाहना दी जाती थी और न हीं उससे कोई खेलता था।बाहर तो बाहर घर में भी सभी भाई बहनों में काला हो ए की वजह से उस से भेदभाव हुआ करता था।सभी भाई बहनों में छोटा होने की वजह से उसे ज्यादा प्यार मिलना चाहिए था किंतु उससे सब नफरत की भावना रखते थे।
वह भी अब सख्त दिल और मोटी चमड़ी का हो गया था जो मिले वह खाएं और फिर गांव के बाहर टीले पर पत्थर रख अपना आसन जमा के उस और राजाओं की तरह बैठ जाता था।सामने छोटे बड़े पत्थरों की हार बना कर उन्हें प्रजा समझ अकेला अकेला राजा और प्रजा खेलता रहता था।बहुत वार्तालाप करता था,खुद ही राजा और खुद ही प्रजा बन बोलता था।एक दिन एक सेठ उधर से गुजर रहें थे उन्होंने उसकी बातें सुनी तो हैरान रह गाएं,इतने छोटे बच्चे का धारा प्रवाह से बुद्धिमानी बातें करना देख, वे भी वहीं रुक उसकी सभी बातें सुनी तो हुआ कि क्यों न इस बालक को अपने साथ ले जाया जाएं और अच्छी शिक्षा दिलाई जाएं?लेकिन कैसे ले जाएं उसे? ये पाठशाला भी जाता होगा,परिवार वाले मानेंगे या नहीं ,ये सब सोच वे घर चले गए।वैसे उस गांव से उनको हमेशा गुजरना पड़ता था क्योंकि वह गांव मंडी से उनके गांव के रास्ते में आता था।कुछ दिन बाद फिर उन्होंने उसे देखा तो अपने आपको रोक नहीं पाएं।पास में गए तो वह उनसे दूर खड़ा हो गया क्योंकि उसे तो सिर्फ पत्थरों से बात करनी ही आती थी।लेकिन जब सेठजी ने प्यार से बुलाया तो वह बड़ी बड़ी आंखे देखा आश्चर्य से उन्हे देख रहा था,उनके द्वारा बोले शब्द उसे अनूठे भाव से भरे लगे और पसंद भी आएं।फिर तो सेठ जी ने इसे सारी बातें पूछ ली तो रूआंसा सा हो उस ने सब बातें बता दी।तो सेठजी तड़प उठे जो अत्याचार वह सहन कर रहा था वह तो असहनीय था।उन्हों ने उसे उनके गांव आने की बात पूछी तो वह तैयार हो गया।तब सेठजी ने उसे अपने ।आता पिता की आज्ञा ले कर आने की बात कही,लेकिन उसने बताया कि कोई पूछने भी नहीं आएगा आप चिंता नहीं करो।के कर लड़का खाना जो सेठजी लाएं थे टूट पड़ा,जैसे जन्मों जनम का भूखा हो। और वह बिना घर में किसी को बताएं ही चला गया।जिस गांव में उसने आठ साल काटे थे उसे छोड़ कर जाना मुश्किल था
लेकिन वह मन पक्का कर सेठ के साथ गांव से निकल गया।
बहुत साल बाद एक सेठ उसी गांव में आए और गांव में कारखाना लगाने की योजना जाहिर की तो सब गांव वालें खुश हुए कि गांव में रोजगारी बढ़ेगी।सब सम्मत हुए तो उसने गांव ने जमीन ली और टहलता टहलता अपने घर आंगन में जा खड़ा हुआ।देखा तो उसके बड़े भाई प्रौढ़ से दिखते थे जब वह खुद भी उनकी उम्र से थोड़ा छोटा होने के बावजूद युवान सा लगता था।लेकिन वह वहां से बिनबोले ही निकल लिया।कारखाने के काम की वजह से बार बार वह वहां जाता था तो उसके घर की ओर एक चक्कर जरूर लगता था।
एक दिन वह अपने घर के अंदर चला ही गया और अपने पिता से मिला तो वे सब हैरान से रह गए।भाई बहनें सब खुश हुए और अपने विगत बरताव के लिए शर्मिंदा थे।वह काला तो अभी भी था लेकिन एक झा दिखता था।

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Jayshree birimi
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद (गुजरात)

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